रविवार, 13 फ़रवरी 2022

पार्टी कान्फ्रेंस हेतु प्रस्ताव:-

 आगामी पार्टी कान्फ्रेंस हेतु प्रस्ताव:-

"जब तलक जनता जनार्दन पूंजीवादी लोकतंत्र की बेजा खामियों के खिलाफ स्वत: स्फूर्त रूप से उठ खड़ी नही होती तब तक किसी किस्म की सर्वहारा क्रांति असंभव है" :- एंटोनियो ग्राम्सी
भारतीय वामपंथी दलों ने इस मुल्क के गरीबों, मजूरों और आम आदमी के हित की अनेक लड़ाइयां लड़ीं, किंतु *मर्ज बढ़ता ही गया,ज्यों ज्यो, दवा की*
वास्तव में भारतीय संविधान की हालत किसी भिखारी के उस पुराने कोट की तरह है,जिसमें सैकड़ों पैबंद लग चुके हैं! यही बजह है कि न केवल दक्षिण एशिया के छोटे छोटे देश हमसे आगे निकल गये हैं ,बल्कि हम से बाद मे आजाद हुए देश वियतनाम, बांग्लादेश और चीन इत्यादि हर विषय में साइंस टेक्नालॉजी और आत्मनिर्भर्ता में भारत से आगे निकल चुके हैं! किंतु हम भारत के जन गण अतीत की हारी हुईं रक्त रंजित लड़ाइयों के जख्म सहला रहे हैं!
दरसल भारतीय राजनीति 'नौ दिन चले अढ़ाई कोस' पर टिकी है।यहाँ राजनीति के हम्माम में लगभग सभी पूँजीवादी दल नंगे हैं। कांग्रेस,डेमोक्रेटिक विपक्ष और वामपंथ सहित सभी गैर भाजपाई ये आरोप जड़ते रहते हैं कि मोदी सरकार सब कुछ गलत कर रही है। लेकिन किसान आंदोलन,मेंहगाई निजीकरण ,बेरोजगारी के बारे में इतने सारे आंदोलन करने के उपरांत भी मोदी सरकार ने जब कोई बात नही मानी तो विपक्षी दल अब जनता को बताते क्यों नही कि इतने बड़े राष्ट्र का विकास करने के लिये धन कहां से आयेगा? सही कदम क्या होना चाहिए ?
विपक्ष का तकिया कलाम यह है कि मोदी सरकार यदि यह करेगी तो हम संसद में विरोध करेंगे । यदि वह करेगी तो हम सड़कों पर विरोध करेंगे। चूँकि कांग्रेस ,सपा, वसपा जदयू, और अन्य पूँजीवादी दल तो बिना सींग के साँड़ हैं ,उन्हें देशकी या देशके बाहर की फ़िक्र क्यों होने लगी ? गरीबों को तीन साल से मुफ्त राशन मिल रहा है,लेकिन कोई विपक्षी दल इसके लिये गलत नही कहता, जबकि उन्हें कहना चाहिये कि आप देश के सार्वजनिक उपक्रम बेचकर जनता को मुफ्त खिलाने के बजाय सार्वजनिक उपक्रम चालू रखिये,बेरोजगारों को काम दीजिये! देश की जनता को भिखारी बनाने से व्यक्ति या देश दोनों का विकास नही हो सकता!
वामपंथ को तो यह अवश्य सोचना चाहिये कि वे ही इस देश के बेहतरीन विकल्प हैं। किंतु मौजूदा चुनावी सिस्टम अथवा -जातिवाद और सम्प्रदायवाद की जकड़न का लाभ केवल दक्षिणपंथी दलों को ही मिलेगा! अत: वे भाजपा विरोध ,मोदी विरोध या संघ विरोध का अमोघ अश्त्र हर मौके पर बार-बार इस्तेमाल नहीं कर सकते । क्योंकि इससे नागनाथ की जगह सांपनाथ तो सत्ता में आ जाएंगे, किंतु संसदीय लोकतंत्र में वामपंथ की ताकत घटती चली जाएगी !
विरोध की इस निरंतरता के कारण न केवल विचारधारा और सिद्धांतों की विश्वसनीयता खतरे में है,बल्कि अधिकांस धर्मनिरपेक्ष नर नारी भी दिग्भर्मित होकर या मुफ्त का माल खाकर वामपंथ से दूर छिटकते जाएंगे! दरसल वामपंथ को यह कहना चाहिए कि मोदी सरकार यदि देश की जनता के साथ अन्याय करेगी तो हम उसका विरोध करेंगे। और यदि मोदी सरकार ने वामपंथ के बताये विकल्प का अनुसरण किया या जनाकांक्षा
के अनुरूप समाजहित या देशहित में काम किया तो हम (वामपंथ) जनता द्वारा निर्वाचित हरेक सरकार का समर्थन करेंगे।
नोट:- सभी कामरेडों से निवेदन है कि CPI(M) की आगामी पार्टी कान्फ्रेंस के लिये मेरे प्रस्तावों पर अपने विचार रखें और मेरे प्रस्ताव को पार्टी कान्फ्रेंस तक पहुंचाने लायक बनाने में मेरी मदद करें:-
श्रीराम तिवारी

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