जैसे की रेलगाड़ी में हिन्दू,मुस्लिम ,ईसाई,पारसी,सिख और जैन सभी एक साथ यात्रा करते हैं,एक साथ अपने गंतव्य पर पहुँचते हैं, और दुर्घटना होने पर एक साथ मरते भी हैं। जैसे कुदरत फर्क नहीं करती उसे तरह सच्ची लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले राष्ट्र अपने देश की जनता में फर्क नही करते। लोकतान्त्रिक राष्ट्र के जनगण संविधान से ऊपर किसी को नहीं मानते। उनके लिए संविधान और राष्ट्र पहले है, धर्म-मजहब बाद मेंआता है। यदि कोई व्यक्ति 'लोकतंत्र' से घृणा करता है ,चुनाव में धर्म -मजहब -जाति का दुरूपयोग करता है या देश तथा उसके संविधान से ऊपर अपने 'धर्म-मजहब-पन्थ' को मानता है तो उसे 'देशद्रोही' माना जा सकता है।
यह सिद्धांत सिर्फ भाजपा के लिएnhin है,yahसभी पार्टियों के लिए है , क्योंकि भाजपा ने अभी तक किसी jagah यह नहीं कहा की देश के संसाधनों पर पहला हक हिन्दुओं का है , नहीं तो मनमोहन सिंह जी ने साफ कहा था की देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है फिर वह क्या था , सांप्रदायिक हिंसा अधिनियम 2012 क्या था , देश का तालिबानी करण करना चाहते थे , हिन्दुओं की हालत अफगानिस्तान में या पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं से भी बदतर हो जाती. yadi vikas ki बात करने की बजाय जिन्ना का जिक्र करने वाले अखिलेश यादव सही है, फिर तो भाजपा को भी हिन्दू धर्म की बात करने का अधिकार है ।
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