अन्याय अत्याचार हम सहते चले गये !
मुर्दे की मानिंद बाढ़ में बहते चले गये !!
भय भूख भ्रस्टाचार सतत समृद्धि की ओर,
मजहब जाति के नाम पर लड़ते चले गये!
ईर्ष्या द्वेष कपट छल क्रोध बढ़ता चला गया
हम प्रेम की दरिया किनारे प्यासे रह गये!!
राजनीति में परिवारवाद बढ़ता चला गया,
नेताअफसर अमीर,हम वोटर ही रह गये!
जिनके पुरखे स्वाधीनता संग्राममें थे नदारद,
उनके बाल बच्चे मुल्क के मालिक हो गये !!
श्रीराम तिवारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें