केचुवा की भूमिका संदिग्ध है।
यह बात लगातार उठती रही है। लेकिन सिर पर जीत का सेहरा बांधने को बेताब बैठे सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया।इनको कभी आवश्यकता महसूस नहीं हुई कि विपक्ष का एक मजबूत पक्ष कुसंघी तंत्र भी है जो हर हाल में अपने आका को जीताने का प्रयास करेगा अतः उसके विरुद्ध संगठित होकर आंदोलन करना चाहिए।तुम्हारा पाला किसी लोकतांत्रिक, नैतिक और मूल्यवान व्यवस्था से नहीं पड़ा है। ये वो लोग है जो छल, छद्म और आतंक जैसे सारे विध्वंसक हथियारों से लैस है।
अपनी जीत के प्रति पूर्णतया आश्वस्त "एसी बबुवा" urf Akhilesh Yadav ने अबतक सार्वजिनक मंचो से केवल अपने घमंड का ही प्रदर्शन किया है। अब परिणाम भी भोगेंगे।
लोकतंत्र में विपक्ष का खत्म होना एक खतरनाक स्थिति की ओर इशारा करता है।
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