हिंदी में कहावत है कि:-
"बहरे आगे गावना,
गूँगे आगे गल्ल !
अंधे आगे नाचना,
तीनों अल्ल बिरल्ल !! "
* * *
घटिया आलोचना पर खीसें निपोरने वाले सैकड़ों मिल जावेंगे,किंतु वैचारिक धरातल पर शिद्दत से लिखे गये समसामयिक विचारों को पढ़ने का वक्त उनके पास नही है!
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