बुद्ध ने कहा था - 'तृष्णा दुख का कारण है' किंतु जब बुद्ध के महान संदेश लेकर संत भिक्षु भारत से बाहर जाकर अहिंसा का संदेश दे रहे थे ,तब विदेशी बर्बर हमलावरों ने अपने खलीफा के नरभक्षी आदेशों का अनुसरण कर संपूर्ण भारतभूमि को रक्तरंजित कर डाला!
हमारे पूर्वज व्यक्तिगत तौर पर यही समझते रहे कि उनकी गुलामी और दुखों का कारण वह है,जो शास्रों और महामुिनयों की वाणी में झंक्रत होता रहा है!
जबकि सतत पराधीनता का कारण वे नये सिद्धांत थे ,जो नंग धडंग बाबाओं, मक्कार भिक्षुओं ने वेदोक्त अहिंसा सिद्धांत से लिये थे, और वेदों की ही आलोचना में जड़ दिये!
इस विशाल भारत की करोडों जन गण को कायरता और गुलामी की ओर धकेलने वाले तत्व भी यही थे, जिनके अनुयाई आजकल मनुवाद और ब्राह्नणवाद की तीव्र आलोचना में जुटे हुए हैं!
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