शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी.....

 एक ऋचा ऋग्वेद की प्रस्तुत है:-

*ऊँ सह न अवतु सह भुनत्तु
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु
मा विद्विसामहै।*
अर्थ:- हम सब साथ साथ रहे, साथ साथ वस्तुओं का उपभोग करें ,साथ ही साथ पराक्रम भी करें।हम साथ साथ यश को प्राप्त करें,आपस में विद्वेष न करें।
* * *
ईशावास्योपनिषद का पहला श्लोक है:-
ईशावास्यं इदम् सर्वं यत् किचित् जगत्यां जगत।
तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा घृदः कस्यविद्धनम्।
अर्थ:- संसार में यह जो कुछ भी है सबमें ईश्वर का वास है, इनका उपभोग त्यागपूर्वक करें, लोभ न करें, यह धन,सम्पत्ति किसकी?अर्थात किसी की नहीं है।)
उक्त दोनों ही पदों में आरम्भिक साम्यवाद के बीज हैं।
* * *
गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा:-
"जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी।
सो नृप अवस नरक अधिकारी।"
अर्थ:- जिस राजा के राज्य में प्रजा दुःखों हो उसे नर्क होता है।प्रजा कौन है, मेहनत या श्रम के द्वारा समाज की सेवा करने वाला ही प्रजा है।आज साधारण जन की दशा क्या है?राजा कौन है? वही नरक अधिकारी है!
निष्कर्ष:- सभी धर्मों के अंदर बहुत से ऐैंसे प्रसंग हैं जो समता और समानता की बात करते हैं पर लुटेरों के लिए वे प्रसंग ग्राह्य नहीं हैं।वे राम को तो मानते हैं,किंतु राम की कही गई बातें उन्हें या तो मालूम नहीं या पसंद नही!

देवताओं से मदद मागने में कोई बुराई नहीं है

 हनुमान चालीसा पढ़ने से,महाम्रत्यंजय मंत्र जाप करने से,कुरान,कलमा पढ़ने से गुरू वाणी जाप से किसी का कोई नुकसान नहीं होता! बल्कि जो लोग आस्तिक होते हैं, शुद्ध श्रद्धावान-आस्थावान होते हैं,उनका आत्म विश्वास बढ़ता है और चित्त शांत हो जाता है!

किंतु यह कहना सरासर गलत है कि :-
" केवल हरिनाम जपने से, हनुमान चालीसा का पाठ करने से ,महामृत्युञ्जय का पाठ करने से,मंदिर में आरती करने-घंटा बजाने से, मस्जिद में नमाज पढ़ने-अजान देने से चर्च,गुरुद्वारा में धर्मग्रंथ पढ़ने से यदि कोरोना खत्म हो जाता तो बैक्सीन के आविष्कार की जरूरत भी नही पड़ती! दरसल यह सब करने से आस्थावान मनुष्य का आत्मसंबल बढ़ने लगता है,सकारात्मक सोच उन्नत होने लगती है,इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ने लगती है,किंतु रोग का निदान नही हो सकता ! यदि ईश्वर भजन अथवा यज्ञ कर्म कांड अथवा त्याग से रोग मिट पाता तो आदि शंकराचार्य 32 वर्ष की आयू में और तरूणसागर 50 वर्ष की उम्र में नही मरते!
यदि हनुमान चालीसा पढ़ने से या हनुमान जी के प्रताप से कोरोना ठीक हो सकता या अन्य महारोग आधि ब्याधि दूर हो सकती तो मूर्छित मरणासन्न लक्ष्मणजी को बचाने के लिय स्वयं प्रभूु हनुमानजी को लंका से सुषेण वैद्य का अपहरण नही करना पड़ता!और सुषेण वैद्य द्वारा बताई गई संजीवनी बूटी के लिये हनुमान जी को सुदूर हिमालय तक भी भटकना न पड़ता ! भरत के बाण से घायल न होना पड़ता!
जिन लक्ष्मण के पास साक्षात हनुमानजी थे, उन्हें भी दवा की जरूरत पड़ी! किसी ने कहा है कि :-
'रोग घटे कछु औषधि खाए'
दरसल शास्त्रों,पवित्र ग्रंथों और मंत्रों को पढ़ने एवं देवताओं से मदद मागने में कोई बुराई नहीं है!किंतु यह सारा संसार जानता है कि देवता और ईश्वर उसीकी सहायता करते हैं,जो सच्ची लगन से निष्काम कर्म करे और संकट में जब कोई राह न बचे,तो खुशी खुशी हरि इच्छा पर छोड़ दे!
सच्चा आस्तिक वह नही है जो बात बात में अपने हर काम को ईश्वर,अल्लाह या GOD पर छोड़ दे! यह तो ईश्वर या देवी शक्तियों के साथ नौकर जैसा व्यवहार है! आस्तिक वह नही जो मंदिरों, मस्जिदों,गुरुद्वारों की दहलीज पर अपने निजी स्वार्थ के लिये मस्तक नवाता है या घंटे घडियाल बजाता है!आस्तिक वह नही जो हर समय ईश्वर से कुछ न कुछ मांगता रहता है!
बल्कि आस्तिक वह है जो अन्याय,शोषण, उत्पीड़न के खिलाफ लड़ता है और निस्वार्थ भाव से अपने कर्म करता हुआ,कमजोर वर्ग को अन्याय ले लड़ना सिखाता है और उनका पक्षधर होता है!भगवान श्रीकृष्ण की तरह सत्य का साथ देने वाला ही आस्तिक होता है!धर्म के नाम पर सत्ता हथियाने वाले और दूसरों के धर्म मजहब से नफरत करने वाले साम्प्रदायिक पापी हो सकते हैं,आस्तिक नहीं!

गुरुवार, 29 जुलाई 2021

आरक्षण के आधार पर सरकारी नौकरी

 आपातकाल के बाद भारत में यह चलन चल पड़ा कि जो अलगाववादी हैं ,जो मजहबी कट्टरपंथी हैं ,जो नक्सलवादी-माओवादी हैं ,वे ही देशद्रोही हैं। दुर्भाग्य से कभी-कभी कुछ लेखकों और बुद्धिजीवियों को भी देशद्रोह के आरोपों से जूझना पड़ा। हाथ में बन्दूक लेकर जो देश के खिलाफ युद्ध छेड़ेगा वह तो देश का दुश्मन है ही। किन्तु जो देश की बैंकों का अकूत धन डकारकर विदेश भाग जाए ,जो बैंकों का उधार चुकाने से इंकार कर दे , दिवाला घोषित कर दे ,जो सरकार का मुलाजिम होकर भी देश के साथ गद्दारी करे ,जो सरकारी नौकरी पाकर भी मक्कारी करे, जो बिना रिष्वत के कोई काम न करे,जो जातीय आरक्षण के आधार पर सरकारी नौकरी पाकर भी रिस्वतखोरी करे वही धनपशू है! उसे सामाजिक असमानता की शिकायत का हक नहीं!

जो स्वार्थपूर्ण आचरण करे ,जो सरकारी नौकरी में रहकर जातीय दवंगई दिखाए और काम दो कौड़ी का न करे ,उलटे दारु पीकर सरकार को ही गालियाँ दे , जो खुद का इलाज न कर सके और सरकारी डाक़्टर बन जाए , जो 'राष्ट्रवाद' की परिभाषा भी न जाने और मंत्री बन जाए,जो ठेकेदारों के घटिया निर्माण की अनदेखी करे और कमीशन खाये ,जिसकी वजह से पुल ,स्कूल अस्पताल ढह जाएँ ,मरीज मर जाएँ , सड़कें बह जाएँ तो इन अपराधों के लिए भारत में भी चीन की तरह मृत्यु दण्ड क्यों नहीं होना चाहिए ?

सोमवार, 26 जुलाई 2021

*Banana Democracy* से तो 'यूटोपियाई पूँजीवाद' ही बेहतर है!!

भारत की वर्तमान छल-छदम की और सामाजिक राजनैतिक विद्वेष की राजनीति से बदतर ,दुनिया में अन्य कोई राजनैतिक व्यवस्था नहीं है। यहाँ गरीब मतदाताओं के वोट पाने के लिए 'भाई लोग' अपनी अपनी पार्टी की महानता का बखान किया करते हैं!
ऐन केन प्रकारेण जब-तब आम सभाओं में नौटंकी पेश करते रहते हैं।
यहाँ 'बहुजन समाज' के वोट हड़पने के कोई आरक्षण की दुहाई देता है,कोई चुनावी जीत केलिए ,दलित-पिछड़ेपन के जातीय विमर्श को हमेशा जिन्दा रखने के लिएर एक पैर पर खडा है! उन्होंने सारे बहुजन समाज क [Educate,Agitate,Orgenize] करने के बजाय एससी/एसटी को वोटों का भंडार बना डाला है।
उन्होंने शोषित-दलित उत्थानके बहाने जातीयता की राजनीति को अपनी निजी जागीर बना डाला है। जातीयतावादी नेताओं द्वारा जाती को राजनीति का केंद्र बना लेने से भारतीय समाज में विध्वंशक जातीय संघर्ष की नौबत आ गयी है । सत्ता के भूंखे लोगोंने दमनकारी जातीयताके खिलाफ संघर्ष छेड़ने के बजाय उसे सत्ता प्राप्ति का राजनैतिक अवलम्बन बना लिया गया है। इन हालात में किसी सकारात्मक क्रांति या कल्याणकारी राज्य की कोई समभावना नहीं है।
अतएव वर्तमान जातीय-मजहबी नेताओं के चोंचलों से तो 'यूटोपियाई पूँजीवाद ' ही बेहतर है ! स्मरण रहे कि भारत के एक प्रख्यात हीरा व्यापारी सावजी ढोलकिया 10 हजार करोड़ की सम्पत्ति के मालिक हैं। उन्होंने कुछ वर्ष पहले अपने कर्मचारियों को दीवाली पर तोहफे में फ्लेट और कारें दीं थीं। किंतु इन्ही ढोलकिया जी ने अपने एकलौते बेटे को अपने बलबूते पर अपनी आजीविका निर्वहन और हैसियत निर्माण का सुझाव दिया था,तद्नुसार उनके बेटे ने कोचीन में ४ हजार रुपया मासिक की प्रायवेट नौकरी की! यह नौकरी हासिल करने के लिए भी उसे तकरीबन ६० बार झूँठ बोलना पड़ा। और कई दिन तक एक टाइम अधपेट भोजन पर रहना पड़ा । क्योंकि पिता ने उसे घर से चलते वक्त जो ७०० रूपये दिए थे, उसमें से एक पैसा खर्च नही किया! वे पैसे तथा अपनी कमाई के पैसे जब ढोलकिया को सौंपे तो पिता ने अपनी कंपनी का डायरेक्टर बना दिया! कहने का तात्पर्य यह है कि 'खुद स्वावलंबी बनो '! यदि सावजी ढोलकिया जैसे पूँजीपति देश के नेता बनते हैं या प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनके हाथों में यह देश ज्यादा सुरक्षित होगा और ज्यादा गतिशील और विकासमान होगा! लेकिन भारतीय लोकतंत्र पर ऐंसे लोग काबिज हैं, जिन्होंने जिंदगी में कभी खुद कमाकर नही खाया!

जब क्रिकेटर सुरेश ने अपनी जाति बताई तो आप क्यों रोये ?

  जब सुरेश रैना के खुद को ब्राह्मण बताने पर बिलबिलाए मूर्खों को देखा। ये तब भी बिलबिलाए थे जब रविन्द्र जडेजा ने स्वयं को राजपूत बताया था। ये तब भी बिलबिलाए थे जब मनोज मुन्तजिर ने चंद्रशेखर आजाद के लिए "जय जय चंद्रशेखर आजाद(तिवारी) जनेऊधारी" लिखा था। कुछ मनोरोगी हमेशा हर बात पर बिलबिला जाते हैं।

जानते हैं सुरेश रैना ब्राह्मण क्यों है? सुरेश रैना ब्राह्मण है क्योंकि जब मध्यकाल में क्रूर विदेशी लुटेरे रोज ही हजारों ब्राह्मणों की हत्या कर उनके जनेव तौलते थे, तब भी उसके पूर्वज डरे नहीं और अपना धर्म नहीं छोड़ा। जब क्रूर मुगलों के राक्षस सैनिक मन्दिरों पर हमला कर के सारे निहत्थे ब्राह्मणों को काट डालते थे, वे तब भी नहीं डरे और अपना धर्म नहीं छोड़ा। जब कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकियों ने हिन्दुओं का जीवन नरक बना दिया, वे तब भी नहीं डरे और अपने धर्म पर अडिग रहे। आठ सौ वर्षों के अत्याचार के बाद भी अपने धर्म के साथ खड़े रहने वाले वीरों की सन्तति को यह अधिकार है कि वह छाती ठोक कर अपनी जाति बताये और गर्व से कहे कि हम हम हैं।
मिशनरियों से मिले चन्द सिक्कों के बदले अपना ईमान बेंच चुके वामी धूर्तों ने पिछले कुछ समय से ऐसा मूर्खतापूर्ण मीडियाई माहौल गढ़ दिया है कि वहाँ ब्राह्मण होने का अर्थ कठघरे में खड़ा होना हो गया है। इस देश में न एक बोरा चावल के बदले रिलीजन का धंधा करने वालों को शर्म नहीं आती, न ही मासूम वनवासी बच्चियों को बेचने का धंधा करने वाले लोग शर्मिंदा होते हैं। इस देश में जाति के नाम पर चल रही सैकड़ों प्राइवेट लिमिटेड पार्टियों के लोगों को भी कभी शर्म नहीं आयी, न ही किसी धूर्त ने उनसे जाति का नाम लेने के कारण प्रश्न पूछा। जो लोग कहते हैं कि हमारे सम्प्रदाय में जातियां नहीं होतीं, वे भी रिजर्वेशन का लाभ लेने के लिए अपनी जाति बताते हैं और उन्हें शर्म नहीं आती। और ब्राह्मण से यह उम्मीद कि वह स्वयं को सेक्युलर बना दे? किसे मूर्ख समझते हो बौद्धिक टुच्चों?
कोई व्यक्ति ब्राह्मण हो, राजपूत हो, यादव हो, वैश्य हो या किसी भी जाति का हो, वह यदि अपने धर्मनिष्ठ पूर्वजों की महान परम्परा पर गर्व करना चाहता है, तो वह गर्व कर सकता है। वह गर्व कर सकता है शिवाजी या बाजीराव पर, वह गर्व कर सकता है प्रताप और पृथ्वीराज पर, वह गर्व कर सकता है आल्हा-ऊदल या गोकुल पर... वह गर्व कर सकता है अपने किसान बाप-दादाओं पर...हमारे माथे पर जो तिलक और सर पर जो शिखा है न बाबू, वह हमारे पूर्वजों की हजारों वर्ष की कठिन तपस्या का फल है। चन्द बिके हुए लोगों की धूर्त धारणाएं हमसे हमारा अधिकार नहीं छीन सकतीं।
और शोषण की बी ग्रेड कथाएं ले कर मत उतरना धूर्तों; क्योंकि तुम्हारे:-
'वैचारिक आका भी इस प्रश्न का कभी उत्तर नहीं दे पाये कि जब आठ सौ वर्ष तक भारत में मुश्लिम गुलाम,तुर्क,खिलजी,अफगान लोधी का शासन रहा और ढाई सौ वर्ष तक ब्रटिश शासन रहा तो ब्राह्मण शोषण कैसे कर सकते थे?
और हाँ! सम्भव है कि कल सुरेश रैना तुम्हारी किचकिच से बचने के लिए माफी मांग लें, पर मैं कह रहा हूँ *अहम ब्रह्मास्मि* बिगाड़ लो जो बिगाड़ सकते हैं ! जब क्रिकेटर सुरेश ने अपनी जाति बताई तो आप क्यों रोये

विषधरों की वामी में क्यों आ गए हम ?


निकले थे घर से जिसकी बारात लेकर ,
उसी के जनाजे में क्यों आ गए हम ?
चढ़े थे शिखर पर जो विश्वास् लेकर ,
निराशा की खाई में क्यों आ गिरे हम ?
गाज जो गिराते हैं नाजुक दरख्तों पै ,
उन्ही की पनाहों में क्यों आ गए हम ?
फर्क ही नहीं जहाँ नीति -अनीति का-उस
संगदिल महफ़िल में क्यों आ गए हम ?
खींचते रहे जो चीर गंगाजमुनी तहजीव का ,
ऐंसे कौरवों के शासन में क्यों आ गए हम ?
लगाते हैं दावँ पर जो सैकड़ों पांचालियां,
उन धूर्तों के जुआ घर में क्यों आ गए हम ?
कर सकते नहीं कद्र अपने ही बुजुर्गों की जो,
उनके पाखंड की जदमें क्यों आ गए हम ?
बर्बर अंधेरी अमानवीय अतिभयानक है जो,
उस विषधरों की वामी में क्यों आ गए हम ?
श्रीराम तिवारी

*वो दवाई नही है, मैं तो पेन चलाकर देख रहा था

 *पेशेंट* : *"डॉक्टर साहब, इस प्रिस्कीप्शन में आपने जो दवाइयाँ लिखी हैं, उनमे से सबसे ऊपर की नही मिल रही हैं.*

😐😕😟
*डॉक्टर*: " *वो दवाई नही है, मैं तो पेन चलाकर देख रहा था,चल रहा है कि नहीं ...!!!*
*पेशेंट*: *अबे कमीने...मैं 52 मेडिकल शॉप घूम के आया हूँ तेरी हैंडराइटिंग के चक्कर में*। 😡
*साला एक मेडिकल वाले ने तो ये भी कहा! कल मंगा दूँगा....*🙏
*दूसरा कह रहा था....ये कंपनी बंद हो गयी....दूसरी कंपनी की दूँ क्या??* 🥺
*तीसरा कह रहा था....इसकी बहूत डिमाण्ड चल रही है.....ये तो ब्लेक में ही मिल पायेगी!* 😫
*साला चौथा तो बहूत ही एडवांस था...ये तो Corona third wave की एडवांस दवाई है... किसको हो गया अभी से ही ???*

I LOVE THIS फेस्टिवल😍👍😍😜😜😜

 ऑनलाइन क्लासेस में टीचर ने बच्चों को कोरोना पर निबन्ध लिखने को बोला ..एक बच्चे ने जिसको सबसे ज्यादा नम्बर मिले थे, उसका निबन्ध आप भी पढ़िए!

😄🎊😝😝😝😝
कोरोना एक नया त्यौहार है जो होली के बाद आता है | इसके आने पर बहुत सारे दिन की होलीडे हो जाती है | सब लोग थाली,और ताली और घंटा बजाकर और खूब सारे दिए जलाकर इस त्यौहार की शुरुआत करते हैं | स्कूल और ऑफिस सब बंद हो जाते हैं | सब लोग मिलकर घर पर रहते हैं | मम्मी रोज नये फ़ूड बनाकर फेसबुक पर डिस्प्ले करती हैं | पापा बर्तन और झाड़ू पोछा करते हैं | कोरोना का त्यौहार मास्क पहन कर और नमस्ते करके मनाया जाता है उसके अलावा एक कडवा काढ़ा पीना भी जरुरी होता है |इस त्यौहार में नए कपडे नहीं पहने जाते | पापा बरमूडा और बनियान पहनते हैं और मम्मी गाउन या कुछ भी पहन कर इस त्यौहार को सेलिब्रेट करती हैं | इस त्यौहार में मम्मी पापा के फ्रेंड या हमारे नेबर भी घर नहीं आते इसलिए दीपावली की तरह घर भी डेकोरेट नहीं करना पड़ता | इस त्यौहार की सबसे अच्छी बात ये है कि जो मम्मी हमें फोन खुद देती हैं अब फोन छूने पर डांट नहीं पड़ती | मेरे सारे फ्रेंड्स के अलावा इण्डिया के बाहर भी सब लोग New Year की तरह इस त्यौहार को मनाते हैं |
I LOVE THIS फेस्टिवल😍👍😍😜😜😜

वे राम को तो मानते हैं,किंतु राम की कही गई बातें नहीं

 एक ऋचा ऋग्वेद की प्रस्तुत है:-

*ऊँ सह न अवतु सह भुनत्तु
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु
मा विद्विसामहै।*
अर्थ:- हम सब साथ साथ रहे, साथ साथ वस्तुओं का उपभोग करें ,साथ ही साथ पराक्रम भी करें।हम साथ साथ यश को प्राप्त करें,आपस में विद्वेष न करें।
* * *
ईशावास्योपनिषद का पहला श्लोक है:-
ईशावास्यं इदम् सर्वं यत् किचित् जगत्यां जगत।
तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा घृदः कस्यविद्धनम्।
अर्थ:- संसार में यह जो कुछ भी है सबमें ईश्वर का वास है, इनका उपभोग त्यागपूर्वक करें, लोभ न करें, यह धन,सम्पत्ति किसकी?अर्थात किसी की नहीं है।)
उक्त दोनों ही पदों में आरम्भिक साम्यवाद के बीज हैं।
* * *
गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा:-
"जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी।
सो नृप अवस नरक अधिकारी।"
अर्थ:- जिस राजा के राज्य में प्रजा दुःखों हो उसे नर्क होता है।प्रजा कौन है, मेहनत या श्रम के द्वारा समाज की सेवा करने वाला ही प्रजा है।आज साधारण जन की दशा क्या है?राजा कौन है? वही नरक अधिकारी है!
निष्कर्ष:- सभी धर्मों के अंदर बहुत से ऐैंसे प्रसंग हैं जो समता और समानता की बात करते हैं पर लुटेरों के लिए वे प्रसंग ग्राह्य नहीं हैं।वे राम को तो मानते हैं,किंतु राम की कही गई बातें उन्हें या तो मालूम नहीं या पसंद नही!
संकलन:- Ravi Mishra ...

भारत का गौरव- मीराबाई चानू....

 भारत का गौरव- मीराबाई चानू....

उस समय उसकी उम्र 10 साल थी। इम्फाल से 200 किमी दूर नोंगपोक काकचिंग गांव में गरीब परिवार में जन्मी और छह भाई बहनों में सबसे छोटी मीराबाई चानू अपने से चार साल बड़े भाई सैखोम सांतोम्बा मीतेई के साथ पास की पहाड़ी पर लकड़ी बिनने जाती थी।
एक दिन उसका भाई लकड़ी का गठ्ठर नहीं उठा पाया, लेकिन मीरा ने उसे आसानी से उठा लिया और वह उसे लगभग 2 किमी दूर अपने घर तक ले आई।
शाम को पड़ोस के घर मीराबाई चानू टीवी देखने गई, तो वहां जंगल से उसके गठ्ठर लाने की चर्चा चल पड़ी। उसकी मां बोली, ''बेटी आज यदि हमारे पास बैलगाड़ी होती तो तूझे गठ्ठर उठाकर न लाना पड़ता।''
''बैलगाड़ी कितने रुपए की आती है माँं ?'' मीराबाई ने पूछा
''इतने पैसों की जितने हम कभी जिंदगीभर देख नहीं पाएंगे।''
''मगर क्यों नहीं देख पाएंगे, क्या पैसा कमाया नहीं जा सकता ? कोई तो तरीका होगा बैलगाड़ी खरीदने के लिए पैसा कमाने का ?'' चानू ने पूछा तो तब गांव के एक व्यक्ति ने कहा, ''तू तो लड़कों से भी अधिक वजन उठा लेती है, यदि वजन उठाने वाली खिलाड़ी बन जाए तो एक दिन जरूर भारी-भारी वजन उठाकर खेल में सोना जीतकर उस मेडल को बेचकर बैलग़ाड़ी खरीद सकती है।''
''अच्छी बात है, मैं सोना जीतकर उसे बेचकर बैलगाड़ी खरीदूंगी।'' उसमें आत्मविश्वास था।
उसने वजन उठाने वाले खेल के बारे में जानकारी हासिल की, लेकिन उसके गांव में वेटलिफ्टिंग सेंटर नहीं था, इसलिए उसने रोज़ ट्रेन से 60 किलोमीटर का सफर तय करने की सोची।
शुरुआत उन्होंने इंफाल के खुमन लंपक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से की।
एक दिन उसकी रेल लेट हो गयी.. रात का समय हो गया। शहर में उसका कोई ठिकाना न था, कोई उसे जानता भी न था। उसने सोचा कि किसी मन्दिर में शरण ले लेगी और कल अभ्यास करके फिर अगले दिन शाम को गांव चली जाएगी।
एक अधूरा निर्माण हुआ भवन उसने देखा जिस पर आर्य समाज मन्दिर लिखा हुआ था। वह उसमें चली गई। वहां उसे एक पुरोहित मिला, जिसे उसने बाबा कहकर पुकारा और रात को शरण मांगी।
''बेटी मैं आपको शरण नहीं दे सकता, यह मन्दिर है और यहां एक ही कमरे पर छत है, जिसमें मैं सोता हूँ । दूसरे कमरे पर छत अभी डली नहीं, एंगल पड़ गई हैं, पत्थर की सिल्लियां आई पड़ी हैं लेकिन पैसे खत्म हो गए। तुम कहीं और शरण ले लो।''
''मैं रात में कहाँ जाऊंगी बाबा,'' मीराबाई आगे बोली, ''मुझे बिना छत वाले कमरे में ही रहने की इजाजत दे दो।''
''अच्छी बात है, जैसी तेरी मर्जी।'' बाबा ने कहा।
वह उस कमरे में माटी एकसार करके उसके ऊपर ही सो गई, अभी कमरे में फर्श तो डला नहीं था। जब छत नहीं थी तो फर्श कहां से होता भला। लेकिन रात के समय बूंदाबांदी शुरू हो गई और उसकी आंख खुल गई।
मीराबाई ने छत की ओर देखा। दीवारों पर ऊपर लोहे की एंगल लगी हुई थी, लेकिन सिल्लियां तो नीचे थीं। आधा अधूरा जीना भी बना हुआ था। उसने नीचे से पत्थर की सिल्लियां उठाईं और ऊपर एंगल पर जाकर रख ​दी और फिर थोड़ी ही देर में दर्जनों सिल्लियां कक्ष की दीवारों के ऊपर लगी एंगल पर रखते हुए कमरे को छाप दिया।
उसके बाद वहां एक बरसाती पन्नी पड़ी थी वह सिल्लियों पर डालकर नीचे से फावड़ा और तसला उठाकर मिट्टी भर—भरकर ऊपर छत पर सिल्लियों पर डाल दी। इस प्रकार मीराबाई ने छत तैयार कर दी।
बारिश तेज हो गई, और वह अपने कमरे में आ गई। अब उसे भीगने का डर न था, क्योंकि उसने उस कमरे की छत खुद ही बना डाली थी।
अगले दिन बाबा को जब सुबह पता चला कि मीराबाई ने कमरे की छत डाल दी है तो उसे बहुत ही आश्चर्य हुआ। उसने उसे मन्दिर में हमेशा के लिए शरण दे दी, ताकि वह खेल की तैयारी वहीं रहकर कर सके, क्योंकि वहाँं से खुमन लंपक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स निकट था।
बाबा उसके लिए खुद चावल तैयार करके खिलाते और मीराबाई ने कक्षों को गाय के गोबर और पीली माटी से लिपकर सुन्दर बना दिया था।
समय मिलने पर बाबा उसे एक किताब थमा देते, जिसे वह पढ़कर सुनाया करती और उस किताब से उसके अन्दर धर्म के प्रति आस्था तो जागी ही साथ ही देशभक्ति भी जाग उठी।
इसके बाद मीराबाई चानू 11 साल की उम्र में अंडर-15 चैंपियन बन गई और 17 साल की उम्र में जूनियर चैंपियन का खिताब अपने नाम किया।
लोहे की बार खरीदना परिवार के लिए भारी था। मानसिक रूप से परेशान हो उठी मीराबाई ने यह समस्या बाबा से बताई, तो बाबा बोले, ''बेटी चिंता न करो, शाम तक आओगी तो बार तैयार मिलेगा।''
वह शाम तक आई तो बाबा ने बांस की बार बनाकर तैयार कर दी, ताकि वह अभ्यास कर सके।
बाबा ने उनकी भेंट कुंजुरानी से करवाई। उन दिनों मणिपुर की महिला वेटलिफ़्टर कुंजुरानी देवी स्टार थीं और एथेंस
ओलंपिक
में खेलने गई थीं।
इसके बाद तो मीराबाई ने कुंजुरानी को अपना आदर्श मान लिया और कुंजुरानी ने बाबा के आग्रह पर इसकी हर संभव सहायता करने का बीड़ा उठाया।
जिस कुंजुरानी को देखकर मीरा के मन में विश्व चैंपियन बनने का सपना जागा था, अपनी उसी आइडल के 12 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को मीरा ने 2016 में तोड़ा, वह भी 192 किलोग्राम वज़न उठाकर।
2017 में विश्व भारोत्तोलन चैम्पियनशिप, अनाहाइम, कैलीफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका में उसे भाग लेने का अवसर मिला।
मुकाबले से पहले एक सहभोज में उसे भाग लेना पड़ा। सहभोज में अमेरिकी राष्ट्रपति मुख्य अतिथि थे।
राष्ट्रपति ने देखा कि मीराबाई को उसके सामने ही पुराने बर्तनों में चावल परोसा गया, जबकि सब होटल के शानदार बर्तनों में शाही भोजन का लुत्फ ले रहे थे।
राष्ट्रपति ने प्रश्न किया, ''इस खिलाड़ी को पुराने बर्तनों में चावल क्यों परोसा गया, क्या हमारा देश इतना गरीब है कि एक लड़की के लिए बर्तन कम पड़ गए, या फिर इससे भेदभाव किया जा रहा है, यह अछूत है क्या ?''
''नहीं महामहिम ऐसी बात नहीं है,'' उसे खाना परोस रहे लोगों से जवाब मिला, '' इसका नाम मीराबाई है। यह जिस भी देश में जाती है, वहाँं अपने देश भारत के चावल ले जाती है। यह विदेश में जहाँ भी होती है, भारत के ही चावल उबालकर खाती है। यहाँ भी ये चावल खुद ही अपने कमरे से उबालकर लाई है ।''
''ऐसा क्यों ?'' राष्ट्रपति ने मीराबाई की ओर देखते हुए उससे पूछा।
''महामहिम, मेरे देश का अन्न खाने के लिए देवता भी तरसते हैं, इसलिए मैं अपने ही देश का अन्न खाती हूँ।''
''ओह् बहुत देशभक्त हो तुम, जिस गांव में तुम्हारा जन्म हुआ, भारत में जाकर उस गांव के एकबार अवश्य दर्शन करूंगा।'' राष्ट्रपति बोले।
''महामहिम इसके लिए मेरे गांव में जाने की क्या जरूरत है ?''
''क्यों ?''
''मेरा गांव मेरे साथ है, मैं उसके दर्शन यहीं करा देती हूँं।''
''अच्छा कराइए दर्शन!'' कहते हुए उस "मूर्ख" लड़की की बात पर हंस पड़े राष्ट्रपति।
मीराबाई अपने साथ हैंडबैग लिए हुए थी,उसने उसमें से एक पोटली खोली, फिर उसे पहले खुद माथे से लगाया फिर राष्ट्रपति की ओर करते हुए बोली, ''यह रहा मेरा पावन गांव और महान देश।''
''यह क्या है ?'' राष्ट्रपति पोटली देखते हुए बोले, ''इसमें तो मिट्टी है ?''
''हाँ यह मेरे गांव की पावन मिट्टी है। इसमें मेरे देश के देशभक्तों का लहू मिला हुआ है, इसलिए यह मिट्टी नहीं, मेरा सम्पूर्ण भारत हैं...''
''ऐसी शिक्षा तुमने किस विश्वविद्यालय से पाई चानू ?''
''महामहिम ऐसी शिक्षा विश्वविद्यालय में नहीं दी जाती, ऐसी शिक्षा तो गुरु के चरणों में मिलती है, मुझे आर्य समाज में हवन करने वाले बाबा से यह शिक्षा मिली है, मैं उन्हें धार्मिक पुस्तकें पढ़कर सुनाती थी, उसी से ​मुझे देशभक्ति की प्रेरणा मिली।''
''कल गोल्डमैडल तुम्हीं जितोगी,'' राष्ट्रपति आगे बोले, ''मैंने पढ़ा है कि तुम्हारे भगवान हनुमानजी ने पहाड़ हाथों पर उठा लिया था, लेकिन कल यदि तुम्हारे मुकाबले हनुमानजी भी आ जाएं तो भी तुम ही जितोगी... तुम्हारा भगवान भी हार जाएगा, तुम्हारे सामने कल।''
चानू चावल खा चुकी थी, उसमें एक चावल कहीं लगा रह गया, तो राष्ट्रपति ने उसकी प्लेट से वह चावल का दाना उठाया और मुँह में डालकर उठकर चलते बने।
''बस मुख से यही निकला, ''यकीनन कल का गोल्ड मैडल यही लड़की जितेगी, देवभूमि का अन्न खाती है यह।''
और अगले दिन मीराबाई ने स्वर्ण पदक जीत ही लिया, लेकिन किसी को इस पर आश्चर्य नहीं था, सिवाय भारत की जनता के...
अमेरिका तो पहले ही जान चुका था कि वह जीतेगी, बीबीसी जीतने से पहले ही लीड़ खबर बना चुका था ।
जीतते ही बीबीसी पाठकों के सामने था, जबकि भारतीय मीडिया अभी तक लीड खबर आने का इंतजार कर रही थी।
इसके बाद चानू ने 196 किग्रा, जिसमे 86 kg स्नैच में तथा 110 किग्रा क्लीन एण्ड जर्क में था, का वजन उठाकर भारत को 2018 राष्ट्रमण्डल खेलों का पहला स्वर्ण पदक दिलाया।
इसके साथ ही उन्होंने 48 किग्रा श्रेणी का राष्ट्रमण्डल खेलों का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया।
2018 राष्ट्रमण्डल खेलों में विश्व कीर्तिमान के साथ स्वर्ण जीतने पर मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने ₹15 लाख की नकद धनराशि देने की घोषणा की।
2018 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया।
यह पुरस्कार मिलने पर मीराबाई ने सबसे पहले अपने घर के लिए एक बैलगाड़ी खरीदी और बाबा के मन्दिर को पक्का करने के लिए एक लाख रुपए उन्हें गुरु दक्षिणा में दिए।🌷
"वेद वृक्ष की छांव तले" पुस्तक का एक अंश, लेखक अंकित।
ओलंपिक
में रजत पदक जीतने पर हार्दिक
बधाई
एवं शुभकामनाएं।
(व्हाट्सएप से मिली यह खबर आंशिक ‌संपादन के साथ प्रस्तुत है, इसके तथ्यों की जांच आप स्वयं कर सकते हैं)