मैं ऐंसे दर्जनों सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को जानता हूँ,जिनके यहाँ रिस्वत का पैसा खूब आता है,तीन चार मकान हैं,बड़े- बड़े कृषि फार्म हैं और जो वेतन को हाथ भी नही लगाते ! ये लोग संकटकाल में भी आम आदमी का खून चूसना नही छोड़ सके! किसी भी सरकारी विभाग में चले जाइये,बिना रिस्वत या बिना सिफारिश के फायल की धूल नही झड़ती!
इसी तरह कुछ लोग सम्पन्न होते हुए भी भोपाल गैस कांड का अरबों खरबों रुपया डकार गये! जबकि असल हितग्राही टापते ही रह गये! कुछ राजनैतिक महानुभाव तो बीपीएल धारक भी हैं! कुछ आरक्षणधारी महानुभाव भी हैं जो करोड़पति हैं, किंतु हर सरकारी सहायता उन्हें सबसे पहले चाहिये!
इनको यदि कोरोना हो जाये तो सरकार से मुफ्त इलाज भी चाहिये!
कुछ छुटभैये नेता,जमाखोर-मुनाफाखोर तो कोरोना संकटकाल में भी कमाई में जुटे हैं! सरकारी सहायता का अधिकांस लाभ वे ही उठा रहे हैं !खुद खा रहे हैं और अपने वालों को घर बैठे खिला रहे हैं!
दूसरी तरफ मैं ऐंसे हजारों लोगों को जानता हूँ,जो वास्तव में गरीब हैं,गरीबी के कारण पढ़ भी नही पाये,जो बेरोजगार हैं,गांव में मामूली ऊसर जमीन है और जिनके पास बीपीएल कार्ड भी नही है! और उसे बनवाने के लिये उनके पास रिस्वत के पैसे भी नही है! उनके पास मकान,प्लॉट और सरकारी नौकरी भी नही है!इन वंचितों को कोरोना काल में भी मुठ्ठी भर अन्न नही मिला! जन धन खाता नहीं खुलवा सके उनके लिये प्रधानमंत्री सहायता के 500 भी नसीब नही हुए!
केंद्र और राज्य सरकारें इसे गंभीरता से नही ले रहीं!इन मुद्दों को उठाने के बजाय,मीडिया वाले सत्ताधारी नेताओं के गुणगान में मस्त हैं!और पूंजीवादी टूटा फूटा विपक्ष जीर्ण शीर्ण हो रहा है,कुछ जनाधारविहीन नेता फोकट में गाल बजाते रहते हैं!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें