यह सच है कि भारत में *स्थाई* होने के बाद *सरकारी अधिकारी/ कर्मचारी* का रवैया बदल जाता है! इसीलिये शायद आम जनता निजीकरण के खिलाफ आक्रोश नही जता रही! गोकि चीन, जापान,जर्मनी,फ्रांस से हम टैक्नालॉजी तो ला सकते हैं,किंतु नैतिकता या अनुशासन नही!
उन लोगों में नैतिकता,राष्ट्रवाद और देश के प्रति जिम्मेदारी का रंचमात्र भाव नही जो इस मुल्क को चरागाह समझते हैं या हमेशा अपने अधिकारों की बात करते हैं,आरक्षण की बात करते हैं!
असली राष्ट्रवाद तो क्रांतिकारी और ऊँचे दर्जे के महामानवों में खुद के अंतस से ही स्वत:स्फूर्त हो सकता है!ऐंसा प्रतीत होता है कि सैकड़ों सालकी गुलामी ने कुछ भारतियों को स्थाई रूप से अनैतिक,स्वार्थी,लालची और अनुशासनविहीन बना डाला है!
सुप्रीम कोर्ट यदि कह रहा है कि कोरोना संकट काल में कावड़ यात्रा मत निकालो,तब भी देश में कई जगहों पर श्रद्धालुजन इसकी धज्जियां उड़ा रहे हैं! इयह सच है कि स्थाई होने के बाद सरकारी कर्मचारी का रवैया बदल जाता है!चीन और जापानसे तकनीक तो आ सकती है,किंतु नैतिकता या अनुशासन नही!उसी तरह दूसरे धर्म मजहब के लोग भी इस कोरोना संकट की तीसरी लहर का चोरी छिपे मजहबी इंतजाम करने पर आमादा हैं! ऐंसा आभासित हो रहा है कि भारतीय समाज को लोकतंत्र रास नही आ रहा है! क्या भारत को,इंदिरा गांधी, नेपोलियन या स्टालिन जैसा नेतत्व चाहिये है?
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