एक बार नबीए करीम हुजूर स अ व हजरत मुहम्मद साहब ने अपने सहाबियों [अनुयाइयों] को सम्बोधित करते हुफरमाया ''खुदा के दीन में न कोई गनी है ,न कोई मुंहताज है ,न कोई बादशाह है ,न कोई गुलाम है ,सभी उसके बंदे हैं और बराबर बंदगी का अखित्यार रखते हैं ''आपने पुनः फरमाया ''बक्त-बक्त पर मुसलमान अपना खलीफा मुकर्रर करेंगे ,इमाम होंगे ,वली होंगे ,गौस और कुत्बों अब्दाल होंगे और ये सब मिल्लते इस्लाम के रहबरो पासबाँ होंगे ये खुदा का दीन [मजहब] है ,उसी ने हमें बख्शा है वही उसकी परवर्दी भी करेगा !
जो मेहनत -मजदूरी से इंकार करे ,जो उनके दीन की निंदा करे वह काफिर है। और
नबी ए करीम स अ वसल्लम ने यह भी फरमाया है ''किसी मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी उसे मिल जानी चाहिए ''! तालीमे - इस्लाम की असल तस्वीर यही है। कट्टरपंथियों ने जेहाद के नाम पर न केवल इंसानियत का क़त्ल किया है ,न केवल दुनिया में दहशतगर्दी को बढ़ावा दिया है बल्कि हुजूर मुहम्मद साहिब की शान में गुस्ताखी के गुनहगार भी ये हैं। क्योंकि इन आतंकवादियों ने कभी भी मुहमम्द साहिब के बताए किसी एक सिद्धांत का भी ठीक से पालन या आचरण नहीं किया है ।"
श्रीराम तिवारी !
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