शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी.....

 एक ऋचा ऋग्वेद की प्रस्तुत है:-

*ऊँ सह न अवतु सह भुनत्तु
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु
मा विद्विसामहै।*
अर्थ:- हम सब साथ साथ रहे, साथ साथ वस्तुओं का उपभोग करें ,साथ ही साथ पराक्रम भी करें।हम साथ साथ यश को प्राप्त करें,आपस में विद्वेष न करें।
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ईशावास्योपनिषद का पहला श्लोक है:-
ईशावास्यं इदम् सर्वं यत् किचित् जगत्यां जगत।
तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा घृदः कस्यविद्धनम्।
अर्थ:- संसार में यह जो कुछ भी है सबमें ईश्वर का वास है, इनका उपभोग त्यागपूर्वक करें, लोभ न करें, यह धन,सम्पत्ति किसकी?अर्थात किसी की नहीं है।)
उक्त दोनों ही पदों में आरम्भिक साम्यवाद के बीज हैं।
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गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा:-
"जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी।
सो नृप अवस नरक अधिकारी।"
अर्थ:- जिस राजा के राज्य में प्रजा दुःखों हो उसे नर्क होता है।प्रजा कौन है, मेहनत या श्रम के द्वारा समाज की सेवा करने वाला ही प्रजा है।आज साधारण जन की दशा क्या है?राजा कौन है? वही नरक अधिकारी है!
निष्कर्ष:- सभी धर्मों के अंदर बहुत से ऐैंसे प्रसंग हैं जो समता और समानता की बात करते हैं पर लुटेरों के लिए वे प्रसंग ग्राह्य नहीं हैं।वे राम को तो मानते हैं,किंतु राम की कही गई बातें उन्हें या तो मालूम नहीं या पसंद नही!

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