हनुमान चालीसा पढ़ने से,महाम्रत्यंजय मंत्र जाप करने से,कुरान,कलमा पढ़ने से गुरू वाणी जाप से किसी का कोई नुकसान नहीं होता! बल्कि जो लोग आस्तिक होते हैं, शुद्ध श्रद्धावान-आस्थावान होते हैं,उनका आत्म विश्वास बढ़ता है और चित्त शांत हो जाता है!
किंतु यह कहना सरासर गलत है कि :-
" केवल हरिनाम जपने से, हनुमान चालीसा का पाठ करने से ,महामृत्युञ्जय का पाठ करने से,मंदिर में आरती करने-घंटा बजाने से, मस्जिद में नमाज पढ़ने-अजान देने से चर्च,गुरुद्वारा में धर्मग्रंथ पढ़ने से यदि कोरोना खत्म हो जाता तो बैक्सीन के आविष्कार की जरूरत भी नही पड़ती! दरसल यह सब करने से आस्थावान मनुष्य का आत्मसंबल बढ़ने लगता है,सकारात्मक सोच उन्नत होने लगती है,इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ने लगती है,किंतु रोग का निदान नही हो सकता ! यदि ईश्वर भजन अथवा यज्ञ कर्म कांड अथवा त्याग से रोग मिट पाता तो आदि शंकराचार्य 32 वर्ष की आयू में और तरूणसागर 50 वर्ष की उम्र में नही मरते!
यदि हनुमान चालीसा पढ़ने से या हनुमान जी के प्रताप से कोरोना ठीक हो सकता या अन्य महारोग आधि ब्याधि दूर हो सकती तो मूर्छित मरणासन्न लक्ष्मणजी को बचाने के लिय स्वयं प्रभूु हनुमानजी को लंका से सुषेण वैद्य का अपहरण नही करना पड़ता!और सुषेण वैद्य द्वारा बताई गई संजीवनी बूटी के लिये हनुमान जी को सुदूर हिमालय तक भी भटकना न पड़ता ! भरत के बाण से घायल न होना पड़ता!
जिन लक्ष्मण के पास साक्षात हनुमानजी थे, उन्हें भी दवा की जरूरत पड़ी! किसी ने कहा है कि :-
'रोग घटे कछु औषधि खाए'
दरसल शास्त्रों,पवित्र ग्रंथों और मंत्रों को पढ़ने एवं देवताओं से मदद मागने में कोई बुराई नहीं है!किंतु यह सारा संसार जानता है कि देवता और ईश्वर उसीकी सहायता करते हैं,जो सच्ची लगन से निष्काम कर्म करे और संकट में जब कोई राह न बचे,तो खुशी खुशी हरि इच्छा पर छोड़ दे!
सच्चा आस्तिक वह नही है जो बात बात में अपने हर काम को ईश्वर,अल्लाह या GOD पर छोड़ दे! यह तो ईश्वर या देवी शक्तियों के साथ नौकर जैसा व्यवहार है! आस्तिक वह नही जो मंदिरों, मस्जिदों,गुरुद्वारों की दहलीज पर अपने निजी स्वार्थ के लिये मस्तक नवाता है या घंटे घडियाल बजाता है!आस्तिक वह नही जो हर समय ईश्वर से कुछ न कुछ मांगता रहता है!
बल्कि आस्तिक वह है जो अन्याय,शोषण, उत्पीड़न के खिलाफ लड़ता है और निस्वार्थ भाव से अपने कर्म करता हुआ,कमजोर वर्ग को अन्याय ले लड़ना सिखाता है और उनका पक्षधर होता है!भगवान श्रीकृष्ण की तरह सत्य का साथ देने वाला ही आस्तिक होता है!धर्म के नाम पर सत्ता हथियाने वाले और दूसरों के धर्म मजहब से नफरत करने वाले साम्प्रदायिक पापी हो सकते हैं,आस्तिक नहीं!
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