“सिर्फ मेहनत से कामयाब होना एक मिथ है, जिसे बहुत मेहनत से खड़ा किया गया है।”
जब भी कोई दावा करे कि वह अपने मेरिट से और अपने संघर्ष से बड़ा बना/बनी है तो उस व्यक्ति का सोशल कैपिटल यानी नेटवर्क, कनेक्शन, संपर्क, पैरवी करा पाने की क्षमता, जान पहचान का दायरा ज़रूर चेक करना चाहिए।
संघर्ष के क़िस्सों के पीछे पहला मौक़ा या अमिताभ बच्चन जैसे केस में असफल होने के 17 मौक़े कैसे मिले, ये समझने की ज़रूरत है। शाहरुख खान को मुंबई में पहला मौक़ा क्यों और कैसे मिला। उसे पहला फ़्लैट रहने को किसने दिलाया?
वे मेहनती हैं। लेकिन मेहनत करने का मौक़ा उन्हें कैसे मिला? किसने दिलाया?
इन तस्वीरों में अमिताभ बच्चन और शाहरुख़ खान की माताएँ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से गपशप कर रही हैं। समझिए नेटवर्क की ताक़त।
सोशल कैपिटल के बारे में ज़्यादा जानने के लिए अपने आसपास के सफल लोगों का बैकग्राउंड चेक करें या पियरे बॉरद्यू (Bourdieu) की थीसिस - The Forms of Capitals पढ़ें।
जिन परिवारों के लोग तीन या चार पीढ़ी से अमेरिका जा रहे हैं, वे कनेक्शन के दम पर वहाँ जाते हैं और कहते हैं कि मैं अपने टैलेंट के कारण यहाँ पहुँचा हूँ। करोड़ों स्टूडेंट्स को यही नहीं पता कि GRE और GMAT क्या है। उन्हें बताएगा कौन?
कनेक्टेड परिवार के बच्चे MA के बाद PhD या विदेश जाने की सोचते हैं। कनेक्शन या आस पास ऐसे लोग न हों, तो MA का टॉपर बच्चा BEd कर लेता है। इस फ़र्क़ को समझिए कि ऐसा क्यों होता है।
आपको संपर्क विरासत में भी मिलता है। जैसे संपत्ति मिलती है। आपके संपर्कों की क्वालिटी आपके जीवन की उपलब्धियों को काफ़ी हद तक निर्धारित करती है। कल्पना कीजिए उस परिवार के वारिस की जिन्होंने 1901 की जनगणना में अपनी भाषा इंग्लिश लिखाई थी। हो पाएगा मुक़ाबला?
मैं ऐसे परिवारों को जानता हूँ जो ज़मीन बेचकर करोड़पति बने। लेकिन उन्हें पता ही नहीं कि बच्चा विदेश कैसे भेजते हैं। इन्वेस्टमेंट कैसे करते हैं। एक पीढ़ी में वे अपेक्षाकृत गरीब पर कनेक्टेड परिवारों से काफ़ी नीचे हो गए। उनके किराएदार उनसे आगे निकल गए।
संपत्ति के कई रूप है। आपकी शिक्षा, भाषा, संपर्क सब आपकी संपत्ति है। इनमें एक का इस्तेमाल आप दूसरी चीज को हासिल करने के लिए कर सकते हैं।
कनेक्शन से मिली सफलता समाज का नियम है। लाखों में एक अपवाद मिल जाएगा। लेकिन वह लाखों में एक होगा। इसी लिए ऐसी कहानियाँ छपती हैं।
फिर आप कहेंगे कि हर दो साल में एक रिक्शावाला या सब्ज़ी वाले का बच्चा IAS कैसे बन जाता है? क्योंकि ऐसा किए बिना सिस्टम टिकाऊ नहीं हो सकता। 2000 सिविल सर्वेंट में दो ऐसे क़िस्से का होना ज़रूरी है।
ज़मीन-जायदाद की ही तरह, कनेक्शन, नेटवर्किंग, सपनों की ऊँचाई, मिलने वाले मौक़े, भाषा संस्कार भी पीढ़ियों का संचय है।
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