भारतमें सत्तारूढ़ नेताओं,भ्रस्ट अफसरों और धनाड्य वर्ग द्वारा पोषित पतनशील पूँजीवादी व्यवस्था सिर्फ अभिजात्य वर्ग को रास आ रही है! लोकतांत्रिक राजनीति में जातिवर्ण,धनबल,बाहुबल,अल्पसंख्यकता इत्यादि सब मिलकर भारतीय सभ्यता, संस्क्रति और भारत राष्ट्र की अस्मिता का उपहास कर रहे हैं!
मानव सभ्यता के इतिहास में सबल मनुष्य द्वारा निर्बल मनुष्य का शोषण ,सबल समाज द्वारा निर्बल समाज का शोषण और सबल राष्ट्र द्वारा निर्वल राष्ट्र के शोषण का सिलसिला जितना पुराना है। भाई-भतीजावाद और भृष्ट तत्वों के अनैतिक संरक्षण का इतिहास भी उतना ही पुराना है।
भ्रस्टाचार का यह दस्तूर आजादी और लोकतंत्र से भी पहले से इस भूभाग पर चला आ रहा है। यह सिलसिला तो तुगलकों, खिुलजियों और सल्तनतकाल जमाने से ही चला आ रहा है ,जो मुगलकाल में परवान चढ़ा!
बाद में जब सात समंदर पार से योरोपियन व अंग्रेज पधारे तो उन्होंने भी २०० साल तक भारतीय जनता को 'क्लर्क' के लायक ही समझा। वह भी तब ,जब १८५७ की क्रांति असफल रही या विद्रोह असफल हुआ! जब महारानी विक्टोरिया हिन्दुस्तान की मलिका बनी,तब साम्राज्ञीने देशी धनिकों और कुछ देशी राजाओं को नौकरशाही में छोटे पदों पर 'सेवाओं' की इजाजत दी।
यह बात जुदा है कि अंग्रेज अपने स्वार्थ के लिये साइंस और टेक्नालॉजी लाये ! बाद में अंग्रेजों के संविधान और दुनिया भर की मशहूर सर्वहारा क्रांतियों से प्रेरणा लेकर कुछ वकीलों और बॅरिस्टरों ने देश को आजाद कराने का सपना देखा!दादाभाई, नौरौजी, एनीवैसेंट,राजा महेंद्रप्रताप, टैगोर, तिलक,गोखले,गांधी,नेहरु,पटैल,आजाद, भगतसिंह जैसे लाखों शहीदों के बलिदान से भारत आजाद हुआ!
किंतु आजादी के कुछ साल बाद कांग्रेस और उसके नेताओं ने तथा देशके चालाक सभ्रांत वर्ग ने पूंजीवादी भ्रस्ट परम्परा को परवान चढ़ाया।
जो कांग्रेस आज विपक्ष में आकर हरिश्चंद्र बन रही है। उसका अतीत बेदाग नही है !एमपी में 5 साल पहले व्यापम के खिलाफ कांग्रेस ने कोई खास आंदोलन नही किया ! हनी मनी ट्रैप कांड में कमलनाथ ने भ्रस्ट अफसरों और अय्यास मंत्रियों को भी बचा लिया!
इसी कांग्रेस के ६० सालाना दौर में आजादी के बाद वर्षों तक देशी पूंजीपतियों -भूस्वामियों और कांग्रेस के नेताओं के खानदानों को ही शिद्द्त से उपकृत किया जाता रहा है। एमपी और छग में द्वारिकाप्रसाद मिश्रा से लेकर शुक्ल बंधूओं तक ,अर्जुनसिंह से लेकर ,प्रकाश चंद सेठी तक , शिव भानु सोलंकी , सुभाष यादव और जोगी से लेकर दिग्विजयसिंह तक कोई भी उस 'अग्निपरीक्षा' में सफल होने का दावा नहीं कर सकता। जिसके लिए उन्होंने बार-बार संविधान की कसमें खाईं होंगी कि -''बिना राग द्वेष,भय, पक्षपात के अपने कर्तव्य का निर्वहन करूंगा ......." !
अब यदि मोदी युग में 'संघ परिवार' वाले और उसके अनुषंगी भाजपाई भी उसी 'भृष्टाचारी परम्परा' का शिद्द्त से निर्वाह किये जा रहे हैं ,जो परम्परा और 'कुलरीति' कांग्रेस ने बनाई है तो किसी को आश्चर्य क्यों ? सवाल किया जा सकता है कि कांग्रेस और भाजपा के भृष्टाचार में फर्क क्या है ? जो लोग कभी कांग्रेस को 'चोर' कहा करते थे वही लोग इन दिनों भाजपा को 'डाकू' कहने में जरा भी नहीं हिचकते। चोर और डाकु में जो भी फर्क है वही कांग्रेस और भाजपा का चारित्रिक अंतर है।
कुछ लोगों को इन दोनों में एक फर्क 'संघ' की हिंदुत्व वादी खंडित मानसिकता का ही दीखता है। वैसे तो कांग्रेस ने पचास साल तक पैसे वालों व जमीन्दारों को ही तवज्जो दी है। किन्तु यूपीए के दौर में वाम के प्रभाव में कुछ गरीब परस्त काम भी किये गए। यदि आज आरटीआई ,मनरेगा और मिड डे मील दुनिया में प्रशंसा पा रहे हैं तो उसका कुछ श्रेय तो अवश्य ही वामपंथ को जाता है । लेकिंन जनता को और मीडीया को कांग्रेस और भाजपा से आगे कुछ भी नजर नही आता !श्रीराम तिवारी
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