अगम रास्ता राहें अँधेरी,आ अब लौट चलें !
पर्त मोहकी सहज स्वरूप पै तृष्णा मूंग दले !
जिस पथ बाजे मन रणभेरी,संयम नियम चलें !
जहां नहीं शांति समता अनुशाशन गगन जले !
विपथगमन ही आतमघात,तब क्यों हाथ मले!
कपटी क्रूर कुचाली जहां पर मत जा सांझ ढले!
अगम रास्ता राह अंधेरी आ अब लौट चलें !
आये प्रलय तो लड़ने का हो साहस द्वीप जले!
सत्य हुआ नीलाम जहाँ,उस महफ़िल में क्यों हम हैं
जख्म दिए सिस्टम ने इतराज में कुछ तो दम हैं!
परिस्थितियां यदि प्रतिकूल तो भी क्या रंजो गम है!
हो गईं राहें खूंखार डूबती नैया मझधार क्या गम है!
शिकवा शिकायत क्यों,जब न तुम बुरे न हम भले !
सुबह का भूला न भूला,यदि घर लौटे सांझ ढले !
अगम रास्ता राहें अँधेरी, आ अब लौट चलें !
श्रीराम तिवारी ...........
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