बी एन राव जिनका पूरा नाम बेनेगल नरसिंह राव था ! उन्हें संविधान का पहला ड्राफ्ट बनाने का काम दिया गया, जिन्होनें एक तरह से संविधान का मूल ढांचा तैयार किया, जिन्हें डा. अम्बेडकर ने पहला क्रेडिट दिया! उसी बीएन राव की मूर्तियां तो छोड़िए, कोई उनकी तस्वीर भी नहीं पहचानता होगा। 95 फीसदी युवा जानता भी नहीं होगा। क्योंकि वो राजनेता नहीं थे बल्कि एक सिविल सर्विस ऑफिसर थे, ज्यूडियरी को सालों उन्होंने अपनी सेवाएं दी, आजादी से पहले देश के तमाम राज्यों की प्रशासनिक समस्याओं को सुलझाया और आजादी के बाद देश की और फिर इंटरनेशनल लेवल पर भी, लेकिन अपने पीछे समर्थकों या अनुयायियों की जमात तैयार करके नहीं छोड़ गए। राजनीति के करीब रहते हुए भी हर वक्त समस्याओं को सुलझाने में ही लगे रहे।
25 नवम्बर 1949 को डा. भीमराव अम्बेडकर सविंधान सभा को सम्बोधित कर रहे थे तब डा. अम्बेडकर ने अपने भाषण में बी एन राव के बारे में कहा, ‘’
“The credit that is given to me does not really belong to me. It belongs partly to Sir B. N. Rau, the Constitutional Adviser to the Constituent Assembly who prepared a draft of the Constitution for the consideration of the Drafting Committee !
ये क्रेडिट जो मुझे दिया जा रहा है, वाकई में मुझसे ताल्लुक नहीं रखता है, इसका एक हिस्सा सर बीएन राव को जाता है। सविंधान सभा के संवेधानिक सलाहकार बी एन राव ने ही संविधान का सर्वप्रथम ड्राफ्ट बनाकर प्रारूप समिति को दिया।
आप संविधान के बारे में अगर पढ़ते होंगे कि इस देश से मूलभूत अधिकार लिए, नीति निर्देशक तत्व यहां से लिए, संसदीय व्यवस्था इस देश से ली, तो इन सभी देशों में जाकर वहां के संविधान विशेषज्ञों, जजों और राजनीतिज्ञों से मिलने का काम, वहां के संविधानों का अध्ययन करने का बेसिक काम बीएन राव ने ही किया था। जो संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार बनाए गए थे। यही सच है। राव के संविधान के ड्राफ्ट में कुल 243 आर्टिकल्स और 8 सैक्शंस थे, जिनको बेस बनाकर ड्राफ्टिंग कमेटी उन्हें 315 आर्टिकल्स तक पहुंचाया। बाद में संविधान सभा में बहस और 2473 संशोधनों के बाद आर्टिकल्स की संख्या 395 तक पहुंच गई, सैक्शंस 8 ही रहे।
देश के युवाओं को ताज्जुब होगा कि यूनाइटेड नेशंस की जिस सिक्योरिटी काउंसिल में सदस्य बनने के लिए भारत सालों से हाथ मार रहा है, ये बंदा बीएन राव उसका प्रेसीडेंट रह चुका है और कई बड़े इंटरनेशनल फैसले उसने उस वक्त लिए। इतना ही नहीं बीएन राव को उन दिनों यूनाइटेड नेशंस के सेक्रेट्री जनरल की पोस्ट के लिए सबसे योग्य माना जाता था। लेकिन भारत सरकार ने कहने पर इंटरनेशनल कोर्ट हेग का इलेक्शन लडे और जज बनकर चले गए और बाद में बीमारी से स्विटजरलैंड के ज्यूरिख में उनकी मौत हो गई। आपको ये जानकर हैरत होगी कि इस शख्स ने ना सिर्फ भारत के संविधान का पहला ड्राफ्ट तैयार किया बल्कि वर्मा (म्यांमार) की सरकार की गुजारिश पर उनके संविधान का भी ड्राफ्ट तैयार किया था।
बीएन राव यानी बेनेगल नरसिंह राव बंगलौर के एक शिक्षित परिवार में पैदा हुए थे, उनके पिता बेनेगल राघवेन्द्र राव विदेशी चिकित्सा व्यवस्था से निकले देश के शुरुआती डॉक्टर्स में थे। उनके एक भाई बी शिवा राव जो जाने माने पत्रकार थे, पहली लोकसभा में चुनकर पहुंचे थे तो दूसरे भाई बी रामा राव रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के चौथे गर्वनर बने थे। खुद बीएन राव काफी प्रतिभाशाली थे, उन्होंने हाईस्कूल में पूरी मद्रास प्रेसीडेंसी को टॉप किया था। ग्रेजुएशन उन्हौंने ट्रिपल फर्स्ट डिग्री से किया फिजिक्स, संस्कृत और इंगलिश, अगले साल यानी 1906 में मैथ से भी। उसके बाद वो एक स्कॉलरशिप पर ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज चले गए। 1909 में उन्होंने सिविल सर्विस परीक्षा पास की और आईसीएस ऑफिसर बनकर भारत आ गए।
पहले ईस्ट बंगाल के कई जिलों में जज रहे, फिर आसाम सरकार के लिए अलग अलग कई पदों पर काम किया। 1928-29 में उन्हें साइमन कमीशन के टूअर के लिए फाइनेंस सपोर्ट का मेमोरेंडा ड्राफ्ट तैयार करने को कहा गया, और उनकी तरफ से 1933 में तीसरे गोलमेज सम्मेलन के बाद ब्रिटिश संसद के सामने केस रखने की जिम्मेदारी दी गई। दो साल वो लंदन में रहे। इतने सारे प्रशासनिक अनुभव के बाद राव को 1935 में भारत आते ही 1935 एक्ट ऑफ इंडिया ड्राफ्ट करने के लिए रिफॉर्म ऑफिस मे नियुक्त कर दिया गया और उसके बाद पांच साल के लिए कोलकाता हाईकोर्ट। एक तरह से वो लंदन की संसद से लेकर देश के निचले स्तर तक अंग्रेजी सरकार की एक एक कार्यप्रणाली समझ चुके थे, खासतौर पर कानूनों को। बाद में उन्हें रेलव कर्मचारियों के भत्ते सम्बंधी नियम बनाने और हिंदू लॉ पर भी काम करने के प्रोजेक्ट्स दिए गए।
1944 में बीएन राव इंडियन सिविल सर्विस से रिटायर हुए तो प्रशासनिक पकड़ के मामले में उनकी काफी ख्याति हो चुकी थी। तो उसी साल उन्हें कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने अपना नया मंत्री नियुक्त कर दिया। लेकिन उनकी महाराजा से बनी नहीं और अगले साल ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया। कुछ समय तक अंग्रेजी सरकार के रिफॉर्म ऑफिस और गर्वनर जनरल के ऑफिस में बतौर सेक्रेट्री काम करने के बाद उन्हें एक महती जिम्मेदारी सौंपी गई, वो थी संविधान सभा के कॉन्स्टीट्यूशनल एडवाइजर की। उनको खुद नहीं पता था कि उनके संविधान का ये ड्राफ्ट करोड़ों लोगों की जिंदगी बदलने जा रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें