जो कोई भी सत्ताधारी अपने शासनकाल में की गई जनहितार्थ अपनी उपलब्धियों की जगह कारगुजारियों को छिपाने की गर्ज से जनता को उनकी काबलियतों के आधार पर आत्मनिर्भर बनाने के बजाए फ्री की आदत डलवाकर उन्हें सिर्फ़ मुफ़्तखोर भिखमंगा बनाने पे ही जोर देगा, तो कुछ समय बाद उसके साथ वही होगा जैसा आजकल हमारे पड़ोसी देश #श्रीलंका में हो रहा है यानी पैसा खत्म तो खेल भी खत्म.."ऐसा ही कुछ हमारे देश में कुछ ही सालों पूर्व वजूद में आई (राजनीति के तिकड़मी खेल को समझकर शीर्ष पर पहुँचने वाली) 2 राज्यों में अपनी सरकार चलाने वाली एक राजनीतिक पार्टी के सर्वेसर्वा "केजरी कंजर" का मूलमंत्र भी यही रहा है, जो अपने उस समय के राजनीतिक गुरु अन्ना हजारे और संघर्षशील साथियों के साथ तय किए लक्ष्य से पूरी तरह भटक चुका है और अब वर्तमान में वो हमारे देश की इकलौती सबसे वयोवृद्ध तथा अन्य क्षेत्रीय पार्टियों की तरह बन चुका है। जो जनता को सिर्फ़ उल्लू बनाना और कठपुतली समझ अपनी उँगलियों पर नचाना ही अपना पहला अधिकार समझते हैं..
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