साहित्यकार वह नहीं जो लाइब्रेरियों की धूल फांकता है,काफी हाउसों,गोष्ठियों में बैसिर पैर की हांकता है! साहित्यकार तो मानव समाज के साथ चलता है,वह देश समाज के दुख दर्द को खुद जीता है! साहित्यकार कौम को असलियत का आइना दिखाता है और क्रांति का बिगुल बजाता है! :-श्रीराम तिवारी
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