सिद्धांत बिहीन नेताओं का झुण्ड यदा कदा,
वोट के लिये जब सड़कों पर नजर आता है।
बसंतोत्तर पतझड़ जैसा रक्तवर्णी दृश्य तब,
सैमल पलाश भी रक्तरंजित नजर आता है।।
अंधाधुंध उमड़ रही भीड़ राशन दुकानों पर,
दूर दूर तक भूख का मंजर नजर आता है!
इमरजैंसी ऐंबूलेंस भीड़ में फँस जाए कभी,
सीरयस मरीजको मौतका मंजर नजर आता है!!
फिजाओं में उमस ऐंठती बेमौसम बर्षात जैसे,
फूल पत्ते तितलियों पर कहकशां नजर जाता है!
दिन हो रात हो सुबह हो शाम हो हर आदमी को,
मेंहगाई में अपनी मौत का मंजर नजर आता है।
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