संसद के बजट सत्र में इस बार ज्यादा कोहराम नही मचा! पक्ष विपक्ष ने अपनी अपनी भूमिका पूरी जिम्मेदारी से निभाई!72 राज्यसभा सांसदों की एक साथ एक दिन विदाई भी एक रिकार्ड है! किंतु संसद में सत्ता पक्ष ने मेंहगाई -बेरोजगारी निवारण पर कोई ठोस पालिसी पेश नही की!
हम मोदी सरकार की तारीफ करते हैं, कि उनके प्रयासों से भारत में कोरोना बैक्सीन का रिकार्ड उत्पादन किया गया, तदनुसार भारत में रिकार्ड 200 करोड़ के आसपास टीकाकरण संभव हुआ है! महामारी के दौर में 50 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन देकर भुखमरी से बचाया गया, जम्मू कश्मीर में आतंकवाद से संघर्ष और हमारी विदेश नीति भी कुल मिलाकर काबिले तारीफ रही ! रूस -यूक्रेन युद्ध में भारत की भूमिका यथासंभव ठीकठाक रही!
किंतु देश आगे बढ़ रहा है,सबका साथ मिल रहा है,सबका विकास हो रहा है ,यह सिर्फ खामख्याली है! दूरगामी नजरिये से देखें तो आज हम आत्मनिर्भरता की और नहीं वरन् विनाश की ओर बड़ रहे हैं। यहाँ जनसंख्या नियंत्रण पर जोर देने के बजाय कुछ अहमक पागल लोग जनसंख्या बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं! ईश्वर अल्लाह GOD इन्हें सद्बुद्धि दे!
आजकल सूचना संचार क्रांति और सरकार की उदारीकरण नीति ने कुछ पूंजीपतियों के हाथ में असीमित मुनाफाखोरी और शोषण का हथियार दे दिये हैं! राजनीतिक सत्ता को अपना बगलगीर बनाकर वे बाजारीकरण को अंजाम दे रहें हैं बेरोजगारी गरीबी,भुखमरी, महामारी से लड़कर जीने के लिए जरूरी सभी साधन इन शक्तियों के हाथों में सीमिट कर रह गये हैं।
शोषण का सिस्टम मजबूत होते जाने का एक प्रमुख कारण है हिंदू समाज का विघटन और कुछ अल्पसंख्यक समाजों का मोदी सरकार पर घोर अविश्वास ! पहले कांग्रेस ने वोट के लिये हिंदू समाज को दलित,पिछडा़, अगड़ा, मिडिल क्लास,अपर मिडिल क्लास आदि में बांटा और अब अल्पसंख्यक वर्ग के राजनैतिक धुर्वीकरण ने भाजपा को हिंदुत्व की रक्षा के बहाने सत्ता में आने का अवसर प्रदान किया है!
देशकी विशाल जनसंख्या अभी सरकारी राशन पर निर्भर है! चीन और पाकिस्तान की आक्रामक नीति ने भारत को मजबूर कर दिया है कि वह अपना रक्षा बजट और बढ़ाए ! इससे देश के खजाने को अक्षुण रखना मुश्किल हो गया है !
दरसल विकास के सरकारी दावे केवल चुनावी नरेटिव हैं!ज्वलंत सवाल परिदृश्य से गायब से होते जा रहे हैं! हकीकत में आज हम आत्मनिर्भर नहीं हो रहे हैं,अपितु हमारी संपूर्ण अर्थव्यवस्था पूंजीवादी पतनशीलता की चपेट में आ गई है ! गरीब जनता अपने कर्तव्य और अधिकार से विमुख होकर, संघर्ष से दूर होकर सरकारी सर्वकालिक भिखमंगेपन की जद में आ गई है !
श्रीराम तिवारी..
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