आज 'मूर्ख दिवस 'है। इस मूर्ख दिवस पर सभी 'मूर्खानंदों को हार्दिक शुभकामनाएँ। आम तौर पर कोई भी अपने आपको मूर्ख कहलाना पसंद नही करता। किन्तु यह कटु सत्य है कि इस संसार में कोई भी सचेतन प्राणी ऐंसा नहीं जो स्वतंत्र या निरपेक्ष रूप से ज्ञानी हो अथवा अज्ञानी हो ! कुछ लोगों ने भरम पाल रखा है कि वे ज्ञानी हैं,और कुछ बाकई निर्मल बाबा की तरह महाज्ञानी हैं।
कुछ साक्षात् '*वर्णानाम अर्थ छन्दानाम् रसानाम छन्दसामपि* की भाँति ही हैं । लेकिन ऍतद द्वारा सभी को सूचित किया जाता है कि अपना -अपना भरम कमसे कम आज एक दिन के लिए त्याग दें। यही इस मूर्ख दिवस की सार्थकता है।
वैसे भी महान संत और भक्त कवि गोस्वामी तुलसी दास बाबा अपने ग्रन्थ 'रामचरित मानस' में लिख गए हैं :-
''बोले बिहँसि महेस तब , ज्ञानी मूढ़ न कोय ।
जेहिं जस रघुपति करहिं जब ,सो तस तेहिं छन होय।। ''
अर्थात :- शंकर जी कहते हैं ! हे पार्वती सुनो ! इस बृह्मांड में न तो कोई ग्यानी है और न ही कोई मूर्ख है , [रघुपति] भगवान की जब जैसी इच्छा होती है ,तब वह प्रत्येक प्राणी को वैसा बना देते हैं।
भावार्थ :- कोई भी इस भ्रम में न रहे कि वह सर्वकालिक ज्ञानी है ,या सर्वकालिक मंदमति है। मष्तिष्क रुपी कम्प्यूटर में जब ज्ञानेन्द्रियों द्वारा त्रिगुणात्मक प्रकृति के विकारों और उनसे संबद्ध घटनाओं की जो वास्तविक छवि प्रेषित की जाती है तब वह आउट पुट के रूप में जो 'सर्वजन हिताय' के ज्ञान और विवेक का उद्दीपन प्रकट होता है तब हम ग्यानी होते हैं।
किंतु जब हम झूंठ ,छल,कपट और स्वार्थ के वशीभूत होकर ज्ञानेंद्रियों द्वारा मष्तिष्क को जो असत्य आचरण का 'इनपुट' देते हैं तो परिणाम में हमारी दयनीय मूर्खताका पिटारा खुल जाता है।
यह ज्ञान और अज्ञान का बोध निरंतर अपरिवर्तनशील है। वास्तव में परफेक्ट ज्ञानी कोई नहीं होता। प्रकृति के गुणों और काल कर्म स्वभाव गुण के कारण एक व्यक्ति कभी सापेक्ष ज्ञानी हो जाता है और कभी सापेक्ष मूर्ख हो जाता है ।
देशकाल परिस्थिति या काल कर्म स्वभाव गुण के वशीभूत कुछ लोग सज्जन और विद्वान होते हैं। जबकि नकारात्मक और विपरीत स्वभाव वाले मनुष्य बहुत शातिर और धूर्त होते हैं। जो ओरों को ठगते हैं !
जो औरों को मूर्ख समझकर अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं ,वे ग्यानी नहीं बल्कि चालाक' होते हैं। झूंठ कपट पर आधारित जीवन जीने वाला,आपराधिक- मानसिकता का और नकारात्मक सामाजिक परिवेश का कोई भी शख्स आत्मतुष्टि या परम आनंद को नही प्राप्त कर सकता।
वेशक 'रत्नाकर' से बाल्मीकि हो जाने पर वह भी ज्ञान और विवेक से प्रकाशित हो सकता। क्योंकि ज्ञान तो मानवीय मूल्यों का प्रकाशक है। सभी सुख सम्पदा का हेतु है। जबकि अज्ञान केवल अन्धकार का सूचक है और समस्त दुखों का हेतु है।
श्रीराम तिवारी
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