शनिवार, 9 अप्रैल 2022

 मैं मानवीय नैतिक पतनशीलता से हैरान हूँ। क्योंकि मनुष्य पैसा कमाने के लिए अपने स्वास्थ्य को बलिदान करता है। फिर अपने स्वास्थ्य को पाने के लिए वह धन खर्च करता है। वह भविष्य के बारे में इतना चिंतित रहता है कि वर्तमान का आनंद नहीं ले पाता!

प्रतिस्पर्धापूर्ण भौतिकता में डूब जाने का नतीजा यही होता है कि व्यक्ति न वर्तमान में जीता है और न भविष्य में जीता है; बल्कि वह ऐसे जीता है जैसे कि कभी मरने वाला नहीं है, और फिर मरता ऐंसे है जैसे वास्तव में कभी जिया ही न हो।

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