बचपन में एक बहुश्रुत नीति कथा पढ़ी थी! आप सबने भी पढ़ी है ! वही कहानी- जिसमें एक घोड़े को पैरों में नॉल ठुकते देख मेंढक को भी नॉल ठुकवाने का शौक चर्राया था!
खैर मेंढक के पैर में नॉल ठुकी या नही,यदि ठुकी होगी तो मेंढक का जो हश्र हुआ होगा वही हश्र इमरान खान का हुआ है! क्रिकेटर से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने इमरान खान को शुरु से ही अमेरिकी दादागिरी पसंद नही थी! इसके अलावा सेना प्रमुख जनरल बाजवा और ISI की डॉमिनेंट जुगलबंदी भी इमरान की जम्हूरियती आँखों में निरंतर खटकती रही!
जब यूक्रेन ने रूस की नाक में अंगुली की याने रूस के शत्रुओं को -याने नाटो और यूके को यूक्रेन के कंधे पर बंदूक रखकर रूस को डराने का इंतजाम किया तो रूस ने यूक्रेन की गर्दन दबा दी! यूएनओ में जब रूस के खिलाफ यूरोप अमेरिका की लामबंदी हुई तो
भारत और चीन तटस्थ रहे!
इमरान खान ने भारत चीन की नकल करते हुए,अपनी विदेशनीति पलटने की कोशिश की, अमेरिका से दूरी और रूस से दोस्ती बनाने की कोशिश की! पाकिस्तान को एक संप्रभु खुदमुख्तार मुल्क बनाने की कोशिश की! इसी मेंढकी नॉल ठुकाई का नतीजा है कि मियां इमरान खान नियाजी सत्ताच्युत होकर अब सड़कों पर आ गये हैं!
इसीलिये कहा गया है कि "जिसका काम उसी को साजे"!नाई का उस्तरा यदि बंदर इस्तेमाल करेगा तो उसका वही हश्र होगा ,जो इमरान खान का हुआ! मियां इमरान न तो पाकिस्तान को अमेरिका और पाकिस्तानी फौज के पंजे से छुड़ा पाए और न ही,अपनी सरकार बचा पाए! उनके इस आरोप में दम है कि उनकी सरकार गिराने में विदेशी ताकतों का हाथ है!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें