भारत की वर्तमान सरकार का खुला आह्वान है कि "दुनिया के सभी सेठ साहूकारों सुनों ! अप्रवासी भारतीयों सुनों -भारत में जितने लेबर कानून थे, वे हमने खत्म कर दिये हैं! दुनिया में सबसे सस्ता लेबर भारत में है ! यहां हम जमीन सस्ती या मुफ्त में देंगे,खदानें सस्तीं देंगे,क़ानून सस्ता, खून सस्ता,यहाँ सब कुछ सस्ता है, अत: हमारे मुल्क में आइये एफडीआई कीजिये !
देशी विदेशी पूँजी निवेश के लिये हमने लाल कालीन बिछा रखी है। आप चोर हैं बेइमान हैं,मुनाफाखोर हैं,कोई फर्क नही पड़ता,आप तो खाली हाथ आइये और खूब जमकर इस लुटे पिटे दीन हीन मुल्क भारत की सम्पदा निचोड़कर ले जाइये! आइये तशरीफ़ लाइए ! हमारे चंद लुच्चे बदमाश अमीरों का विकास कीजिये ! आइये -आपके पूर्वज भी पहले आये थे।बहुत कुछ लूटकर ले गए ! अब आपकी बारी है,बचा खुचा आप भी लूटकर ले जाइये!
एक बार मोदी जी ने अमेरिका में फरमाया था कि जितना खर्च अहमदाबाद में एक ऑटो सवारी वाला महज एक किलोमीटर के लिए खर्च करता है -याने [१० रूपये] लगभग । उतने से कम खर्च में याने ७ रूपये प्रति किलोमीटर से - भारत ने बहुत ही कम खर्च में- 'मार्श आर्बिटर यान ' को मंगल की कक्षा में स्थापित कर दिखाया है। मतलब हम भारतीय कितने मितव्ययी और अक्लमंद हैं ? सम्भव है कि यही सच हो !सवाल यह है कि इस मितव्ययता के वावजूद देश को घाटे का बजट क्यों बनाना पड़ रहा है ? सब्सिडी क्यों घटाना पड़ रही है! सरकारी क्षेत्र के राष्ट्रीय स्मारक क्यों बेचना पड़ रहे हैं?
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