पापा के पाँव में चोट लगी थी, कुछ दिनों से वे वैसे ही लंगडाकर चल रहे थे।
मैं भी छोटा था और ऐन टाइम पर हमारे घर के गणेश विसर्जन के लिए किसी गाड़ी की व्यवस्था भी न हो सकी।
पापा ने अचानक ही पहली मंजिल पर रहने वाले हामिद भाई को आवाज लगा दी : ओ हामिद भाई, गणेश विसर्जन के लिए तालाब तक चलते हो क्या ?
मम्मी तुरंत विरोध स्वरूप बड़बड़ाने लगीं :- उनसे पूछने की क्या जरूरत है ?
छुट्टी का दिन था और हामिद भाई घर पर ही थे। तुरंत दौड़े आए और बोले : अरे, गणपती बप्पा को गाड़ी में क्या, आप हुक्म करो तो अपने कन्धे पर लेकर जा सकता हूँ।
अपनी टेम्पो की चाबी वे साथ ले आए थे।
गणपती विसर्जन कर जब वापस आए तो पापा ने लाख कहा मगर हामिद भाई ने टेम्पो का भाड़ा नहीं लिया। लेकिन मम्मी ने बहुत आग्रह कर उन्हें घर में बने हुए पकवान और मोदक आदि खाने के लिए राजी कर लिया। जिसे हामिद भाई ने प्रेमपूर्वक स्वीकार किया, कुछ खाया,कुछ घर ले गए।
तब से हर साल का नियम सा बन गया, गणपती हमारे घर बैठते और विसर्जन के दिन हामिद भाई अपना टेम्पो लिए तैयार रहते।
हमने चाल छोड़ दी, बस्ती बदल गई, हमारा घर बदल गया, हामिद भाई की भी गाड़ियाँ बदलीं मगर उन्होंने गणेश विसर्जन का सदा ही मान रखा। हम लोगों ने भी कभी किसी और को नहीं कहा हामिद भाई कहीं भी होते लेकिन विसर्जन के दिन समय से एक घंटे पहले अपनी गाड़ी सहित आरती के वक्त हाजिर हो जाते।
पापा, मम्मी को चिढ़ाने के लिए कहते : तुम्हारे स्वादिष्ट मोदकों के लिए समय पर आ जाते हैं भाईजान। "हामिद भाई कहते : बप्पा मुझे बरकत देता है भाभी जी, उनके विसर्जन के लिए मैं समय पर न आऊँ, ऐंसा कभी हो ही नहीं सकता। "
26 सालों तक ये सिलसिला अनवरत चला।
तीन साल पहले पापा का स्वर्गवास हो गया लेकिन हामिद भाई ने गणपती विसर्जन के समय की अपनी परंपरा जारी रखी।
अब बस यही होता था कि विसर्जन से आने के पश्चात हामिद भाई पकवानों का भोजन नहीं करते, बस मोदक लेकर बीना किसी से कुछ कहे चुपचाप चले जाया करते।
आज भी हामिद भाई से भाड़ा पूछने की मेरी मजाल नहीं होती थी।
इस साल मार्च के महीने में हामिद भाई का इंतकाल हो गया।
आज विसर्जन का दिन है, क्या करूँ कुछ सूझ नहीं रहा।
आज मेरे खुद के पास गाड़ी है लेकिन मन में कुछ खटकता सा है, इतने सालों में हमारे बप्पा बिना हामिद भाई की गाड़ी के कभी गए ही नहीं। ऐंसा लगता है कि, विसर्जन किया ही न जाए।
मम्मी ने पुकारा : " आओ बेटा, आरती कर लो। "
आरती के बाद अचानक एक अपरिचित को अपने घर के द्वार पर देखा।
सबको मोदक बाँटती मम्मी ने उसे भी प्रसाद स्वरूप मोदक दिया जिसे उसने बड़ी श्रद्धा से अपनी हथेली पर लिया।
फिर वो मम्मी से बड़े आदर से बोला : " गणपती बप्पा के विसर्जन के लिए गाड़ी लाया हूँ। मैं हामिद भाई का बेटा हूँ। "
अब्बा ने कहा था कि, " कुछ भी हो जाए लेकिन आपके गणपती, विसर्जन के लिए हमारी ही गाड़ी में जाने चाहिए। परंपरा के साथ हमारा मान भी है बेटा। "
" इसीलिए आया हूँ। "
मम्मी की आँखे छलक उठीं। उन्होंने एक और मोदक उसके हाथ पर रखा ,जो शायद हामिद भाई के लिए था....
फाइनली एक बात तो तय है कि, देव, देवता या भगवान चाहे किसी भी धर्म के हों लेकिन उत्सव जो है वो, रिश्तों का होता है....रिश्तों के भीतर बसती इंसानियत का होता है....
बस इतना ही...!!..........
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