मैं शुद्ध शाकाहारी हिंदु हूँ!वेदांत दर्शन अध्येता कान्यकुब्ज ब्राह्मण हूँ!किंतु मेरे सोचने का ढंग वैज्ञानिक भौतिकवादी-तर्कवादी है!इसालिये मैं धार्मिक मजहबी पाखंड के खिलाफ अवश्य हूँ !किंतु मेरे दीर्घकालीन अध्यन का सार तत्व यह है कि जब तलक कोई महान क्रांति नही हो जाती, कम से कम तब तक नैतिक मूल्यों,आदर्श चरित्र,सामाजिक सांस्कृतिक सत्धर्म सत्कार्य और अध्यात्म विज्ञान की अनावश्यक निंदा या आलोचना नही होना चाहिये!
यह सच है कि देश-समाज और व्यक्ति में उत्ररोत्तर सकारात्मक बदलाव तभी आ सकता है,जब उत्पादन के साधनों पर सर्व समाज का सामुहिक स्वामित्व हो!इसके लिये राजसत्ता पूंजीवादी लुटेरों के हाथ में नही,बल्कि ऐंसे धीरोदात्त चरित्रवान लोगों के हाथ में हो? जिनकी सोच वैज्ञानिक द्वंदात्मक दर्शन से प्रेरित हो!
मुल्क की राजनीति और राष्ट्री़य संपदा पर पूंजीवादी जातिवादी,मजहब परस्त या धर्म के नाम पर पाखंड करने वालों का कब्जा न हो!राजनैतिक दल करप्ट पूँजी के आश्रित न हों! चूंकि अभी तक सभ्य दुनिया में एकमात्र यह मार्क्सवादी दर्शन ही परिपूर्ण या सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हो पाया है!अतएव मैं तमाम किसानों, मजदूरों अर्थात मेहनतकशों की व्यापक एकता का पक्षधर हूँ!
मैं केवल किताबी या पिछलग्गू मशीनी भेड़चाल वाला मार्क्सवादी नही हूँ ,बल्कि साहित्य, कला, संगीत राष्ट्रीय सांस्क्रतिक और आदर्शोन्मुखी मानवीय मूल्यों से संप्रक्त आदर्श मानव जीवन का तलबगार हूँ!इसमें किसी को कोई इतराज नही होना चाहिये! यह ऑब्जर्व किया गया है कि दक्षिणपंथी/ दकियानूसी और पूँजीवादी लम्पट दलों के सापेक्ष जिनका नजरिया प्रोग्रेसिव है और जो जनता की आवाज उठातो हैं,वे वामपंथी- जनवादी दल चुनाव जीतने में असफल इसलिये हो जाते हैं,क्योंकि इनके चुनावी तौर तरीके गुजरे जमाने के हैं! जबकि पूँजीवादी दलों ने जाति,मजहब,धनबल,बाहूबल और सत्ता तंत्र के दुरुपयोग की मार्फत स्थाई तौर पर चुनावी बढ़त हासिल कर ली है!
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