बाबू जगजीवनराम,काशीराम,पासवान बीपी मंडल,करुणानिधी,मुरासोली मारन, देवगौड़ा,रामदास अठावले,मायावती लालू परिवार,मुलायम परिवार,अजीत जोगी जैसे नेता देश के प्रति बफादार कभी नही रहे! वे तो अपनी अपनी जाति के लोगों का शोषण करने वाले नेता रहे हैं! इनको अपनी जाति से भी प्रेम नही था,बल्कि राजनैतिक लाभ के लिये,विभिन्न जातियों में विद्वेष उत्पन्न करते रहे हैं! अजीत जोगीको जब आदिवासी वोट चाहिये तो आदिवासी बन जाता था! जब कांग्रेस में था तो ईसाई होने का तमगा लेकर सोनिया गांधी का विश्वास पात्र बन गया था! लालू को छोड़कर अधिकांस दलित और पिछड़े नेताओं ने दो-दो,तीन -तीन बीबियां रख छोड़ी हैं! कुछ दलित पिछड़े नेताओं ने *अपर कास्ट* की लड़की से शादी कर अपने आपको अगड़ा बना लिया है!
इन जातिवादी नेताओं के मन में विद्वेष का उपादान कारण जातीय दंभ और आर्थिक असमानता रही है!इतिहास साक्षी है कि जातिवादी नेता अपनी जाति वालों को दिखावटी महत्व भले ही दर्शाते हों, किंतु वे उनका आर्थिक और चारित्रिक उत्थान नही कर सके! यदि पिछड़ों दलितों का विगत 74 साल में उत्थान हुआ होता तो आरक्षण का कोटा बढ़ाने की नौबत क्यों आती?
दरसल जातीय राजनीति से किसी भी जाति या कौम के कुछ मुट्ठीभर चमचों का विकास तो किया जा सकता है! किंतु राष्ट्र की पूरी कौम तब तक विकसित नही हो सकती जब तक कि *राष्ट्र मजबूत और विकसित न हो*!
जिन्हें अपनी जाति और अपने धर्म-मजहब की फिक्र है,वे गलत नही हैं! किंतु वे उनसे बेहतर या महान नहीं हैं, जो सर्वसमाज के लिये,बहुजन सुखाय के लिये,सर्वजन हिताय के लिये तन मन धन से कटिबद्ध हैं! मजहबी और जातिवादी नेता जब तक यह मूल मंत्र नही समझ लेते,तब तक वे संपूर्ण राष्ट्र के हितैषी नही कहे जा सकते!
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