गुरुवार, 30 सितंबर 2021

सभ्यता,संस्कृति,नैतिक मूल्य और राष्ट्रीयता के लिये भी संघर्ष करना होगा!

 भारतीय नैतिक मूल्यों,भारतीय पुरातन साइंस,भारतीय सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करने का जो घृणित कार्य-अरबों,तुर्कों,

खिल्जियों,पठानों, उज्वेगों,मुगलों और ईसाई मिशनरीज ने किया,वही काम अब भारतीय उपमहाद्वीप में तालिवानी,अलकायदा,ISI और *हक्कानी* वाले करने जा रहे हैं! अब भारत की जनता को रोटी कपड़ा मकान के साथ साथ अपनी सभ्यता,संस्कृति,नैतिक मूल्य और राष्ट्रीयता के लिये भी संघर्ष करना होगा!
यदि गफलत में रहे और सजग नही रहे तो- हमारी दास्तां भी न रहेगी, दास्तानों में...

अब आपकी बारी है !

 भारत की वर्तमान सरकार का खुला आह्वान है कि "दुनिया के सभी सेठ साहूकारों सुनों ! अप्रवासी भारतीयों सुनों -भारत में जितने लेबर कानून थे, वे हमने खत्म कर दिये हैं! दुनिया में सबसे सस्ता लेबर भारत में है ! यहां हम जमीन सस्ती या मुफ्त में देंगे,खदानें सस्तीं देंगे,क़ानून सस्ता, खून सस्ता,यहाँ सब कुछ सस्ता है, अत: हमारे मुल्क में आइये एफडीआई कीजिये !

देशी विदेशी पूँजी निवेश के लिये हमने लाल कालीन बिछा रखी है। आप चोर हैं बेइमान हैं,मुनाफाखोर हैं,कोई फर्क नही पड़ता,आप तो खाली हाथ आइये और खूब जमकर इस लुटे पिटे दीन हीन मुल्क भारत की सम्पदा निचोड़कर ले जाइये! आइये तशरीफ़ लाइए ! हमारे चंद लुच्चे बदमाश अमीरों का विकास कीजिये ! आइये -आपके पूर्वज भी पहले आये थे।बहुत कुछ लूटकर ले गए ! अब आपकी बारी है,बचा खुचा आप भी लूटकर ले जाइये!
एक बार मोदी जी ने अमेरिका में फरमाया था कि जितना खर्च अहमदाबाद में एक ऑटो सवारी वाला महज एक किलोमीटर के लिए खर्च करता है -याने [१० रूपये] लगभग । उतने से कम खर्च में याने ७ रूपये प्रति किलोमीटर से - भारत ने बहुत ही कम खर्च में- 'मार्श आर्बिटर यान ' को मंगल की कक्षा में स्थापित कर दिखाया है। मतलब हम भारतीय कितने मितव्ययी और अक्लमंद हैं ? सम्भव है कि यही सच हो !सवाल यह है कि इस मितव्ययता के वावजूद देश को घाटे का बजट क्यों बनाना पड़ रहा है ? सब्सिडी क्यों घटाना पड़ रही है! सरकारी क्षेत्र के राष्ट्रीय स्मारक क्यों बेचना पड़ रहे हैं?

बुधवार, 29 सितंबर 2021

साख दाँव पर है!

 इसमें कोई दो राय नही कि भारत में विगत 7 साल में बेरोजगारी बढ़ी है ! किंतु अब स्थिति इतनी नाजुक है कि बेरोजगार युवाओं की आत्महत्याओं का सिलसिला चरम पर है!हैल्थ सैक्टर में भारी लूट मची है! शिक्षा क्षेत्र धराशायी है!किसान आंदोलन को ठीक से नही सुलझाने और आर्थिक विफलता से मोदी सरकार की साख दाँव पर है!

बेशक अधिकांस मोर्चों पर मोदी सरकार विफल रही है! डालर के सापेक्ष रुपये की दुर्गति और पैट्रोलियम उत्पादों के बेतहासा बढ़ते दामों से सिद्ध होता है कि देशकी अर्थ व्यवस्था चौपट है ! विपक्ष के हरल्ले नेताओं को दल बदल करवाकर मंत्री बना देने से भारत का विकास नही होगा !

गीत बदल दो,साज बदल दो !!

 नीति बदल दो,चाल बदल दो!

गीत बदल दो,साज बदल दो !!
जो जनता के काम न आए,
उस सिस्टम को,आज बदल दो!
शोषण करे किसान मजदूर का,
उस शासक का राज बदल दो!

मंगलवार, 28 सितंबर 2021

राजनीती हरजाई इतनी,

 मंत्री नेता अफसर बाबू ,

इनपर नहीं किसी का काबू।
भले बुढ़ापा आ जाए पर,
इनकी तृष्णा कभी न जाबू।।
नित नित नए चुनावी फंडे,
बदल बदलकर झंडे डंडे।
राजनीती हरजाई इतनी,
कि नहीं देखती संडे मंडे।।
अंधे पीसें कुत्ते खायें ,
ये रीति सदा से चलि आई !
कोटि कोटि जनता पै भारी,
शासक की बेहरम बरियाई !!
भारत की धरती पर अम्बे ,
जाति धर्म के हाथ हैं लम्बे ।
भ्रस्टों से आजाद करा दे,
जय जय अम्बे जय जगदम्बे।।
श्रीराम तिवारी

दल बदल करवाकर मंत्री बना देने से भारत का विकास नही होगा!

 इसमें कोई दो राय नही कि भारत में विगत 7 साल में बेरोजगारी बढ़ी है ! किंतु अब स्थिति इतनी नाजुक है कि बेरोजगार युवाओं की आत्महत्याओं का सिलसिला चरम पर है!हैल्थ सैक्टर में भारी लूट मची है! शिक्षा क्षेत्र धराशायी है!किसान आंदोलन को ठीक से नही सुलझाने और आर्थिक विफलता से मोदी सरकार की साख दाँव पर है!

बेशक अधिकांस मोर्चों पर मोदी सरकार विफल रही है! डालर के सापेक्ष रुपये की दुर्गति और पैट्रोलियम उत्पादों के बेतहासा बढ़ते दामों से सिद्ध होता है कि देशकी अर्थ व्यवस्था चौपट है ! विपक्ष के हरल्ले नेताओं को दल बदल करवाकर मंत्री बना देने से भारत का विकास नही होगा!

सोमवार, 27 सितंबर 2021

कान खोल कर सुन लो

 सुनो!! कान खोलकर...।।

मोहन पैदा हुआ था, मोहन ही मरा हूँ। महात्मा तुम्हारे बापों और दादो ने जबरन बना दिया। मुझे ना मुझे महात्मा बनना था, न राष्ट्रपिता, न राष्ट्रपति, न प्रधानमंत्री ..। हां, तुम्हारे बड़े बूढों ने जो प्यार दिया था। जब वो "बापू" कहते तो बड़ा भला लगता। लगता.. सब मेरे बच्चे हैं, मेरी जिम्मेदारी। हैं। जब सारा देश ही बापू कहने लगा, तो किसी ने उत्साह में राष्ट्रपिता कह डाला। मगर मैं तो मोहन था, मोहन ही रहा।
सुनो!! तुम्हारे बड़े बूढ़े मुझे नेता कहते थे। मगर मैने कोई चुनाव नही लड़ा, चुनावी तकरीर नही की। कोई वादा नही किया, कोई सब्सिडी नही बांटी। मैं तो घूमता था, दोनो हाथ पसारे.. मांगता था बस प्रेम, शांति और एकता।
बहुतों ने दिया, तो कुछ ने इन बढ़े हुए हाथों को झटक भी दिया। उन्हें इस फकीर से डर लगता था। प्रेम से डर लगता था, शांति से डर लगता था.. एकता से डर लगता था। उन्होंने लोगो को समझाया- नफरत करो.. तुम एक नही हो, ना कभी हो सकते हो। शांति झूठी है। लड़ो, आगे बढ़ो। मार डालो। जीत जाओ।
सुनो!! वो जीत गए। मुझे मार डाला। और टुकड़े कर दिए ...हिन्दुओ के, मुसलमानों के, देश के.. दिलो के। और वो जीतते गए है। साल दर साल, इंच इंच, कतरा कतरा.. धर्म का नाम लेकर, जाति की बात करके, गौरव का नशा पिलाकर वो तुम्हे मदहोश करते गए। वो जीत गए।
सुनो!! वो जीत गए.. मगर मैं नही हारा। मैं यहीं हूँ.. इस मिट्टी में घुला हुआ। वो रोज तुम्हे एक नया नशा देते है, और नशा फटते ही मैं याद आता हूँ। मैं तुम्हारी जागती आंखों का दुःस्वप्न हूँ। तुम हुंकार कर मुझे नकारते हो, उस नकार में ही स्वीकारते हो। तुम्हें यकीन ही नही होता कि मैं मर चुका हूँ, तो सहमकर फिर से गोलियां चलाते हो। आखिर हारकर .. मेरी समाधि पर सर झुकाए खड़े हो जाते हो।
सुनो ,कान खोलकर। न तो तुम्हारी इज्जत से महात्मा बना था, न तुम्हारी इज्जत से कोई महात्मा बन सकता है। असल तो ये है, जिसे तुम्हारी इज्जत हासिल हो.. वो महात्मा हो ही नही सकता।
तो कान खोल कर सुन लो। तुमको, और तुम्हारे बाप को पीले चावल भेजकर राजघाट नही बुलाता। श्रद्धा से भरी अंजुली न हो, तो श्रद्धांजली लेकर आना भी मत। मोहनदास करमचंद गांधी का नाम तुम्हारी इज्जत का मोहताज नही है।

रविवार, 26 सितंबर 2021

तेन त्यक्तेन भुजिंता

ईशावास्यमिदम  यत्किंचित जगत्यां जगत ,तेन त्यक्तेन भुजिंता मा कस्विद्धनम !

{ईशावास्योपनषद १-९ ]


 "जो 'अविद्या' (माया) अर्थात भौतिकवाद (Materialism) की उपासना करते हैं, वे गहन अंधकार में भटकते हैं,जो 'विद्या'(ऋत) अर्थात अध्यात्मवाद (Spiritualism )में रत होकर भौतिक जगत से विमुख हो जाते हैं,वे घोर अंधकार में भटकते रहते हैं ! बिना भोग के किये गये त्याग से वासनाओं का समूल नाश नही होता!अत: विवेकी विद्वान वही है जो भौतिक जगत और आध्यात्मिक विद्या दोनों का समन्वय करे!"

पाकिस्तान / तालिबान को नाथना है तो अतीत से सीखो !

 पाकिस्तान / तालिबान को नाथना है तो अतीत से सीखो !

मेरे एक वरिष्ठ सहकर्मी और ट्रेड यूनियन साथी अक्सर कहा करते थे कि ''जिस तरह प्राकृतिक रूप से गंगा मैली नहीं है,बल्कि उसे कुछ गंदे लोग मैला करते रहते हैं,उसी प्रकार यह राजनीति भी जन्मजात गन्दी नहीं है,बल्कि स्वार्थी लोग ही इसे गंदा करते रहते हैं। जिस तरह धर्मांध और संकीर्ण लोग गंगा को गटरगंगा बनाने में जुटे रहते हैं ,उसी तरह अधिकांश फितरती, धूर्त लोग इस परमपवित्र राजनीतिक गंगा को गटरगंगा बनाने में जुटे रहते हैं। ये धूर्त लोग सत्ता में आने के लिए जाति ,धर्म-मजहब और 'राष्ट्रवाद' का वितंडा खड़ा करते हैं, लोक लुभावन वादे करते हैं और जब ये सत्तामें आ जाते हैं तो खुद उनके सहयोगी भस्मासुर बन जाते हैं। तब वे यह भूल जाते हैं कि उनके इस कुकर्म से राष्ट्रीय एकता को कितना खतरा है?
जब उनके चुनावी वादे पूरे नहीं हो पाते तो वे नए-नए बहाने खोजने लगते हैं। ले भूल जाते हैं कि विदेशी हमलों और आतंकवाद से देश की जनता की एकजुटता ही बचा सकती है!सामाजिक एकता- साम्प्रदायिक सदभाव के बिना देश के स्वाभिमान की रक्षा संभव नहीं! देशकी रक्षा के लिये सेना और सरकार तथा राजनैतिक दलों की भूमिका अपनी जगह है,किंतु उनकी सीमाओं सीमित हैं, जबकी जनता की संगठित शक्ति अपार है !वही अपने वतन की हिफाजत कर सकती है!जनता यदि तय कर ले कि साम्प्रदायिक तत्वों और जातिवादि नेताओं को राजनीति से बाहर करना है ,तो विदेशी आतंकी तत्वों को भारत में पनाह देने वाले गद्दार थर थर कांपेंगे!
देश की जनता को यह जानना जरूरी है, कि देश के भ्रस्ट अफसर और चरित्रहीन *हनी ट्रैप* में फंसे नीतिविहीन रीढ़विहीन गद्दार नेतत्व में कूबत नहीं कि तालिवान से या पाकिस्तान परस्त आई एस आई पोषित आतंकवाद से भारतीय स्वाभिमान की रक्षा कर सके।
कई बार सत्तासीन नेतत्व ही जनाक्रोश से बचने के लिए बचाव की घटिया तरकीबें खोजने में जुटा जाता है! जो नेतत्व अपने देश की सीमाओं पर दुश्मन देश के हमले रोकने में लगातार नाकाम रहा हो ,जो नेतत्व अपनी खीज -खिसियाहट निकालने के लिए जो नेतत्व अतीत में डींगे मारता रहा हो ,जो नेतत्व अपनी असफलता की शर्मिंदगी ढकने की कुचेष्टा करने में लगा हो,ऐसे नेतत्व के 'मन की बात' पर विश्वास करना जोखिम भरा हो सकता है।जनता को चाहिये कि किसी खास तुर्रमखां के भरोसे न रहे। जो चौकीदार सोते हुए मार दिए जाएँ ,जनता उनके भरोसे कदापि न रहे। देशके सभी नर-नारी और सरकारी सेवक अपनी-अपनी ड्यूटी ईमानदारी से करें।
पुलिस ,डाक्टर,अफसर ,वकील ,बाबू और जज संकल्प लें कि जिस तरह कोरोनाकाल में भारत का गौरव और आत्मबल बढ़ाने के लिए जी जान से लोगों की सेवा की,उसी तरह वह समवेत स्वर में ऐलान करे कि न रिश्वत देंगे और न रिश्वत लेंगे।जनता भी स्वयमेव इसका अनुशरण करे। देशके नेता और दल भी राष्ट्रीय संकट मानकर 'देशभक्तिपूर्ण आचरण करे।यदि हर भारतीय जापानियों और वियतनामियों की तरह सच्चा देशभक्त हो तो भारत में भी भ्रस्टाचार और आतंकवाद दोनों का जड़मूल से विनाश किया जा सकता !
लोग सवाल ही नही करते की हमारे उरी-पठानकोट आर्मीबेस तक पहुँचने वाले या डिफेंस संस्थानों को नुकसान पहुंचाने वाले पाकिस्तानी आतंकियों को किसी जागते हुए भारतीय फौजी के दर्शन क्यों नहीं हुए ? इन सवालों से मुँह मोड़कर और 'राष्ट्रवाद' की कोरी डींगे हांकने से पाकिस्तान के मंसूबों को ध्वस्त नहीं किया जा सकता। दरसल पाकिस्तान को नाथना है तो ' इंदिरा गाँधी 'से सीखना होगा!
इंदिराजी ने सिर्फ भारतीय सेना के भरोसे पाकिस्तान से पंगा नहीं लिया था। उन्होंने बँगला देश के मुजीव जैसे नेताओं और बँगला मुक्तिवाहनी को आगे करके,सोवियत संघ से मैत्री संधि कर अपनी ताकत बढ़ाई!यूएनओ में सोवियत संघ को आगे कर,भारत के पूंजीपति वर्ग को साधकर,पाकिस्तान की आर्थिक नाके बंदी कर, उसे सरेंडर को लिये मजबूर कर दिया था!
१९७१ में भारतीय सेना और बांग्ला मुक्ति बाहिनी ने पाकिस्तान को चीर डाला था। तब भारतीय नेतत्व और भारतीय जनता की भूमिका बहुत शानदार रही थी । आज के पूँजीपति और व्यापारी सिर्फ अपनी दौलत बढ़ाने में व्यस्त हैं,ये सिर्फ मुनाफाखोरी मिलावट ,कालाधन और मेंहगाई ही बढ़ाते रहते हैं। नेतत्व की तदर्थ और अनिश्चयवाली नीतियों के कारण भारत खतरे में है। सत्ता पक्ष को कांग्रेस मुक्त भारत चाहिए , विपक्ष को 'संघ' मुक्त भारत चाहिए ,जातिवादियों को आरक्षण चाहिए और धर्म-मजहब वालों को 'नरसंहार'चाहिए। किन्तु जनता को यदि अमन-खुशहाली चाहिए तो आइंदा इंदिराजी जैसा सच्चा देशभक्त नेतत्व ही चुने ! बड़बोले जुमलेबाजों से बचकर रहे। इसके साथ -साथ इस भृष्ट सिस्टम को भी तिलांजलि देनी होगी। तभी भारत की सीमाओं पर स्थाई शांति हो सकेगी।
किसी भी क्रांति के बाद ईजाद एक बेहतर सिस्टम तभी तक चलन में जीवित रह सकता है ,जब तक अच्छे लोग राजनीति में आते रहें। और जब तक कोई 'महान क्रांति'का आगाज न हो जाये ! इसके लिए देशभक्ति वह नहीं जो सोशल मीडिया पर दिख रही है। बल्कि सच्ची देशभक्ति वह है कि हम अपना -अपन दायित्व निर्वहन करते हुए कोई भी ऐंसा काम न करें जिससे देश का अहित हो। सरकारी माल की चोरी ,सराकरी जमीनों पर कब्जे, आयकर चोरी,निर्धन मरीजों के मानव शरीरअंगों की चोरी ,हथियारों की तस्करी ,मादक द्रव्यों की तस्करी और शिक्षा में भृष्टाचार इत्यादि हजारों उदाहरण है जहाँ देशद्रोही बैठे हैं। इनमें से अधिकांस लोग अपने पाप छिपाने के लिए सत्ताधारी पार्टी के साथ हो जाते हैं। इसलिए सत्ताधारी पार्टी से देश की सुरक्षा को ज्यादा खतरा है।
मुझे भली भांति ज्ञात है कि मेरे कुछ खास मित्र ,सुहरदयजन , शुभचिंतक और सपरिजन लोग मेरे आलेखों को पंसद नहीं करते। लेकिन जो पसंद करते हैं वे सिर्फ इसलिए प्रशंसा के पात्र नहीं हैं कि वे मुझे 'लाइक' करते हैं , बल्कि वे इसलिए आदर और सम्मान के पात्र हैं कि उनका नजरिया वैज्ञानिकता से परिपूर्ण है और वे सत्य,न्याय के साथ हैं ! मेरे आलेख और कविताएँ नहीं पसंद करने वालों को मैंने तीन श्रेणियों में बाँटा है। एक तो वे जो यह मानते हैं कि राजनीति ,आलोचना और व्यवस्था पर सवाल उठाना उन्हें पसंद उन्हीं। दूसरे वे जो घोर धर्माधता के दल-दल में धसे हुए हैं और साम्प्रदायिक संगठनों द्वारा निर्देशित सोच से आगे कुछ भी देखना-सुनना ,पढ़ना नहीं चाहते।और सांसारिक तर्क-वितरक पर कुछ भी लिखना -पढ़ना नकारात्मक कर्म समझते हैं । तीसरे वे निरीह प्राणी हैं जो कहने सुनने को तो वामपंथी राजनीति में नेतत्व कारी भूमिका अदा करते हैं ,किन्तु व्यवहार में वे दक्षिणपंथी कटटरपंथ के आभाषी प्रतिरूप मात्र हैं। राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता की उनकी समझ बड़ी विचित्र है। उन्हें हर अल्पसंख्य्क दूध का धुला नजर आताहै ,किन्तु हर हिन्दू धर्मावलम्बी उन्हें पाप का घड़ा दीखता है। पता नहीं दास केपिटल के किस खण्ड में उन्होंने पढ़ लिया कि भारत के सारे सवर्ण लोग जन्मजात बदमास और बेईमान हैं। उनकी नजर में हरेक आरक्षण धारी ,दूध का धुला और परम पवित्र हैं।
भारत में संकीर्ण मानसिकता के वशीभूत होकर दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों धड़े एक-दूसरे को फूटी आँखों देखना पसन्द नहीं करते। वामपंथ के दिग्गज,नेताओं,प्रगतिशील साहित्यकारों को लगता है कि धरती की सारी पुण्याई सिर्फ उनके सिद्धांतों,नीतियों और कार्यक्रमों में ही निहित है। दक्षिणपंथी सम्प्रदायिक खेमें के विद्व्तजन गलतफहमी में हैं कि भारतीय 'राष्ट्रवाद'उनके बलबूते पर ही कायम है और देश के अच्छे-बुरे का भेद सिर्फ वे ही जानते हैं । मेरा अध्यन और अनुभव कहता है कि 'लेफ्टफ्रॉन्ट'के पास जो 'सर्वहारा अंतर्राष्टीयतावाद का सिद्धांत है , मानवता के जो सिद्धांत -सूत्र और नीतियाँ हैं, बेहतरीन मानवीय मूल्य हैं और शोषण से संघर्ष का जो जज्वा है ,भारत में या संसार में वह और किसी विचारधारा में ,किसी धर्म-मजहब में कहीं नहीं है। लेकिन वामपंथ में भी अनेक खामियाँ हैं। परन्तु विचित्र किन्तु सत्य यह है कि केवल वामपंथी ही हैं ,जो 'आत्मविश्लेषण'या आत्मालोचना को स्वीकार करते हैं।लेकिन दक्षिणपंथी ,प्रतिक्रियावादी और पूँजीवादी केवल प्रशंसा पसंद करते हैं ,और इसके लिए वे मीडिया को पालते हैं। वे शोषण की व्यवस्था की रक्षा करते हैं, ताकि यह भृष्ट निजाम उनके कदाचरण को ,उनके राजनैतिक,आर्थिक ,सामाजिक और मजहबी हितों की हिफाजत करता रहे। इस तरह वाम- दक्षिण दोनों ध्रुवों में एक दूसरे के प्रति अनादर भाव और अविश्वास होने से भारत में वास्तविक 'राष्ट्रवादी चेतना ' का विकास अवरुद्ध है।
राजनीति का एक रोचक पहलु यह भी है कि इसकी वजह से भारत गुलाम हुआ था, और इसीकी वजह से वह आजाद भी हो गया । इसके अलावा और भी कई उदाहरण हैं कि इसी राजनीति की वजह से दुनिया अधिकांश देशों से क्रूर सामंतशाही -राजशाही खत्म हो गई। और उसकी जगह अब अधिकान्स दुनिया में डेमोक्रेसी अथवा लोकतंत्र कायम है। स्कूल कालेजों में राजनीति पढ़ना,पढ़ाना अलहदा बात है,मौजूदा 'गन्दी राजनीति' को भोगना जुदा बात है। व्यवहारिक किन्तु करप्ट -राजनीति सीखने-समझने के लिए तो भारतमें बहुतेरे संगठन मौजूद हैं। किन्तु राष्ट्रवाद और लोकतांत्रिक राजनीति का ककहरा सीखने के लिए भारत में सरकारी तौर पर कोई शैक्षणिक पाठ्यक्रम नहीं है। आरएसएस जैसे गैर संवैधानिक संगठन जरूर दावा करते हैं कि वे नयी पीढ़ी को राष्ट्रवाद सिखाने के लिए बहुत कुछ ,करते रहते हैं। लेकिन अपनी कट्टरवादी साम्प्रदायिक सोच के कारण वे दुनिया भर में बदनाम हैं। इसके विपरीत भारत का ट्रेड यूनियन आंदोलन काफी कुछ बेहतर सिखाता है। आरएसएस वाले तो केवल हिंदुत्व और राष्ट्रवाद ही सीखते-सिखाते होंगे,लेकिन भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र [सीटू] वाले तो धर्मनिरपेक्ष -राष्ट्रवाद.अन्तर्राष्टीयतावाद,जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षताके साथ-साथ फ्री एन्ड फेयर डेमोक्रेटिक फंकशनिंग की भी शिक्षा देते हैं। वे न केवल देशभक्ति ,शोषण से मुक्ति ,अन्याय से संघर्ष बल्कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सन्निहित सभी दिशा- निर्देशों के अनुशरण की वकालत करते हैं। उनकी स्पष्ट समझ है कि आतंकवाद के जनक साम्राज्यवाद और मजहबी कट्टरता दोनों ही हैं। केवल आतंकवाद की निंदा करने से या पूँजीवाद को कोसने से ये चुनौतियाँ खत्म नहीं होंगी ! जनता का विराट एकजुट जन-आन्दोंलन , उसकी जनवादी 'अंतर्राष्टीयतावादी' चेतना ही मौजूदा मजहबी आतंक और पाकिस्तानी कारिस्तानी से निपटने में सक्षम है। मजहबी आतंकवाद को सर्वहारा अंतर्राष्टीयतावाद ही रोक सकता है। लेकिन जब तक यह आयद नहीं होता तब तक इंदिराजी वाला रास्ता ही सही है। श्रीराम तिवारी

"हमलोग राजनीति करते हैं "

 एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि ये फिल्म अभिनेता (या अभिनेत्री) ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक एक फिल्म के लिए 50 करोड़ या 100 करोड़ रुपये मिलते हैं?

सुशांतसिंह की मृत्यु के बाद भी यह चर्चा चली थी कि जब वह इंजीनियरिंग का टाॅपर था , तो फिर उसने फिल्म का क्षेत्र क्यों चुना था ?
जिस देश में शीर्षस्थ वैज्ञानिकों,डाक्टरों , इंजीनियरो,प्राध्यापकों,अधिकारियों इत्यादि को प्रतिवर्ष 10 लाख से 20 लाख रुपये मिलता हो,जिस देश के राष्ट्रपति की कमाई प्रतिवर्ष 1 करोड़ से कम ही हो ; उस देश में एक फिल्म अभिनेता प्रतिवर्ष 10 करोड़ से 100 करोड़ रुपये तक कमा लेता है । आखिर ऐसा क्या करता है वह ?
आखिर वह ऐसा क्या करता है और कितनी मेहनत करता है कि उसकी कमाई एक शीर्षस्थ वैज्ञानिक से सैकड़ों गुना अधिक होती है ? यह एक गंभीर चिंतन का विषय है!
आज तीन क्षेत्रों ने सबको मोह रखा है - सिनेमा,क्रिकेट और राजनीति । इन तीनों क्षेत्रों से सम्बन्धित लोगों की कमाई और प्रतिष्ठा उनकी औकात से अधिक है !ये क्षेत्र आधुनिक युवाओं के आदर्श भी हैं!जबकि वर्तमान में इनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं ।
स्मरणीय है कि विश्वसनीयता के अभाव में चीजें प्रासंगिक नहीं रहतीं और जब चीजें महँगी हों,अविश्वसनीय हों,अप्रासंगिक हों ; तो वह व्यर्थ ही है,सोचिए कि यदि सुशांत या ऐसे कोई अन्य युवक या युवती आज इन क्षेत्रों की ओर आकर्षित होते हैं , तो क्या यह बिल्कुल अस्वाभाविक है ? मेरे विचार से तो नहीं! क्योंकि कोई भी सामान्य व्यक्ति धन , लोकप्रियता और चकाचौंध से प्रभावित हो ही जाता है!
बाॅलीवुड में ड्रग्स या वेश्यावृत्ति,क्रिकेट में मैच फिक्सिंग,राजनीति में गुंडागर्दी - इन सबके पीछे धन मुख्य कारक है और यह धन हम ही उन तक पहुँचाते हैं । हम ही अपना धन फूँककर अपनी हानि कर रहे हैं । यह मूर्खता की पराकाष्ठा है!
70-80 वर्ष पहले तक प्रसिद्ध अभिनेताओं को सामान्य वेतन मिला करता था । 30-40 वर्ष पहले तक भी इनकी कमाई बहुत अधिक नहीं थी । 30-40 वर्ष पहले तक क्रिकेटरों के भी भाव नीचे ही थे । 30-40 वर्ष पहले तक राजनीति इतनी गन्दी नहीं थी! धीरे-धीरे ये हमें लूटने में लगे रहे और हम शौक से खुशी-खुशी लुटते रहे । हम इन माफियाओं के चंगुल में फँसते रहे और अपने बच्चों का,अपने देश का भविष्य बर्बाद करते रहे!
50 वर्ष पहले तक भी फिल्में इतनी अश्लील नहीं बनती थीं,क्रिकेटर, नेता ,अभिनेता इतने अहंकारी नहीं थे आज तो ये भगवान बन बैठे हैं । अब आवश्यकता है इनको एक सुर से नकारने की ।
वियतनाम के राष्ट्रपति हो-ची-मिन्ह एक बार भारत आए थे । भारतीय मंत्रियों के साथ हुई मीटिंग में उन्होंने पूछा -" आपलोग क्या करते हैं ?",इन लोगों ने कहा - "हमलोग राजनीति करते हैं ।",उन्होंने फिर पूछा - " राजनीति तो करते हैं , लेकिन इसके अलावा क्या करते हैं ?"इन लोगों ने फिर कहा - " हमलोग राजनीति करते हैं ।",हो-ची मिन्ह बोले - " राजनीति तो मैं भी करता हूँ ; लेकिन मैं किसान हूँ , खेती करता हूँ । खेती से मेरी आजीविका चलती है सुबह-शाम मैं अपने खेतों में काम करता हूँ । दिन में राष्ट्रपति के रूप में देश के लिए अपना दायित्व निभाता हूँ ।"
स्पष्ट है कि भारतीय नेताओं के पास इसका कोई उत्तर न था । बाद में एक सर्वेक्षण से पता चला कि भारत में 6 लाख से अधिक लोगों की आजीविका केवल राजनीति ही है!आज यह संख्या करोड़ों में है,कुछ महीनों पहले ही जब कोरोना से यूरोप तबाह हो रहा था,डाक्टरों को महीनों से थोड़ा भी अवकाश नहीं मिल रहा था ; एक पुर्तगाली डाॅक्टरनी ने खीजकर मरीजों से कहा था -" रोनाल्डो के पास जाओ न!जिसे तुम करोड़ों डाॅलर देते हो ; मैं तो कुछ हजार डाॅलर ही पाती हूँ !
मेरा दृढ़ विचार है कि जिस देश में युवा छात्रों का आदर्श वैज्ञानिक ,शोधार्थी,शिक्षाशास्त्री आदि न होकर उपर्युक्त लोग होंगे,उनकी स्वयं की आर्थिक उन्नति भले ही हो जाए, किंतु देश उन्नत नहीं होगा । जिस देश में अनावश्यक और अप्रासंगिक लोगों और वस्तुओ का वर्चस्व बढ़ता रहेगा!उस देश की समुचित प्रगति नहीं होगी! बल्कि धीरे-धीरे देश में भ्रष्टाचारियों देशद्रोहियों की संख्या ही बढ़ती रहेगी! ईमानदार लोग हाशिये पर चले जाएँगे! सच्चे राष्ट्रवादी कठिन जीवन जीने को अभिशप्त होंते रहेंगे!
नोट : - सभी क्षेत्रों में अच्छे व्यक्ति भी होते हैं, उनका व्यक्तित्व मेरे लिए हमेशा सम्माननीय रहेगा।

डॉ.मनमोहनसिंह 5 साल सत्ता में और रहते,तो

 यह तो इतिहासवेत्ता और राजनीतिज्ञ तय करेंगे की भाजपाको सत्ता में बिठाने के लिये कारसेवकों का बलिदान कितना कामयाब रहा? और भाजपा को सत्ता में बिठाने के लिये रामलला मंदिर का मुद्दा उठाना कितना कामयाब रहा?

किंतु इस संदर्भ में हम इतना पूरे यकीन से कह सकते हैं कि अन्ना हजारे,स्वामी रामदेव, आसाराम,श्री श्री,राम रहीम जैसे भाजपाई (अ) संत यदि संघ परिवार की ओर से चलाये जा रहे आंदोलन का तब समर्थन या नेतत्व न करते और 2008 में वामपंथी दल मनमोहनसिंह सरकार से समर्थन वापिस नही लेते,तो आज जो लोग सत्ता की कुर्सी पर बैठकर हवा में उड़ रहे हैं,वे जमीन पर होते और रोटी सत्तू बांधकर संघ प्रचारक का काम कर रहे होते!
यदि डॉ.मनमोहनसिंह 5 साल सत्ता में और रहते,तो भारत की अर्थ व्यवस्था भी आज दुनिया में तीसरे नंबर पर होती!
महान अर्थशास्त्री पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहनसिंह को उनके जन्मदिवस पर दीर्घ जीवन की हार्दिक शुभकामनाएं!

कम्युनिस्ट होने के लिये तो आग का दरिया पार करना होता है!

 कॉ.कन्हैयाकुमार और जिग्नेश मेवाणी की मौजूदा स्थितिको समझते हुए हम सब्र कर सकते हैं कि उन्होंने साम्प्रदायिकता और जातिवादी दलों के आग्रह ठुकराकर धर्मनिर्पेक्ष पूँजावादी कांग्रेस को चुना! दरसल यह दलबदल नही है,अभी तक तो ये दोनों छात्र नेता ही रहे हैं! जिग्नेश पहले से ही गुजरात में हार्दिक पटैल के साथ भाजपा विरोध के लिये जाने जाते रहे हैं!

कन्हैयाकुमार भी एक अधकचरे वामपंथी उम्मीदवार के रूप में बिहार से चुनाव लड़े किंतु बुरी तरह हारे ! इसलिये अब जिग्नेश और कन्हैयाकुमार के लिये कांग्रेस ही सही है! कम्युनिस्ट होना इन लोगों के बूते की बात नही!
कम्युनिस्ट होने के लिये तो आग का दरिया पार करना होता है!
बहरहाल गनीमत है कि जिग्नेश मेवाणी और कॉं.कन्हैयाकुमार भाजपा में नही गए!

शुक्रवार, 24 सितंबर 2021

आपके गणपती, विसर्जन के लिए हमारी ही गाड़ी में जाने चाहिए।

 पापा के पाँव में चोट लगी थी, कुछ दिनों से वे वैसे ही लंगडाकर चल रहे थे।

मैं भी छोटा था और ऐन टाइम पर हमारे घर के गणेश विसर्जन के लिए किसी गाड़ी की व्यवस्था भी न हो सकी।
पापा ने अचानक ही पहली मंजिल पर रहने वाले हामिद भाई को आवाज लगा दी : ओ हामिद भाई, गणेश विसर्जन के लिए तालाब तक चलते हो क्या ?
मम्मी तुरंत विरोध स्वरूप बड़बड़ाने लगीं :- उनसे पूछने की क्या जरूरत है ?
छुट्टी का दिन था और हामिद भाई घर पर ही थे। तुरंत दौड़े आए और बोले : अरे, गणपती बप्पा को गाड़ी में क्या, आप हुक्म करो तो अपने कन्धे पर लेकर जा सकता हूँ।
अपनी टेम्पो की चाबी वे साथ ले आए थे।
गणपती विसर्जन कर जब वापस आए तो पापा ने लाख कहा मगर हामिद भाई ने टेम्पो का भाड़ा नहीं लिया। लेकिन मम्मी ने बहुत आग्रह कर उन्हें घर में बने हुए पकवान और मोदक आदि खाने के लिए राजी कर लिया। जिसे हामिद भाई ने प्रेमपूर्वक स्वीकार किया, कुछ खाया,कुछ घर ले गए।
तब से हर साल का नियम सा बन गया, गणपती हमारे घर बैठते और विसर्जन के दिन हामिद भाई अपना टेम्पो लिए तैयार रहते।
हमने चाल छोड़ दी, बस्ती बदल गई, हमारा घर बदल गया, हामिद भाई की भी गाड़ियाँ बदलीं मगर उन्होंने गणेश विसर्जन का सदा ही मान रखा। हम लोगों ने भी कभी किसी और को नहीं कहा हामिद भाई कहीं भी होते लेकिन विसर्जन के दिन समय से एक घंटे पहले अपनी गाड़ी सहित आरती के वक्त हाजिर हो जाते।
पापा, मम्मी को चिढ़ाने के लिए कहते : तुम्हारे स्वादिष्ट मोदकों के लिए समय पर आ जाते हैं भाईजान। "हामिद भाई कहते : बप्पा मुझे बरकत देता है भाभी जी, उनके विसर्जन के लिए मैं समय पर न आऊँ, ऐंसा कभी हो ही नहीं सकता। "
26 सालों तक ये सिलसिला अनवरत चला।
तीन साल पहले पापा का स्वर्गवास हो गया लेकिन हामिद भाई ने गणपती विसर्जन के समय की अपनी परंपरा जारी रखी।
अब बस यही होता था कि विसर्जन से आने के पश्चात हामिद भाई पकवानों का भोजन नहीं करते, बस मोदक लेकर बीना किसी से कुछ कहे चुपचाप चले जाया करते।
आज भी हामिद भाई से भाड़ा पूछने की मेरी मजाल नहीं होती थी।
इस साल मार्च के महीने में हामिद भाई का इंतकाल हो गया।
आज विसर्जन का दिन है, क्या करूँ कुछ सूझ नहीं रहा।
आज मेरे खुद के पास गाड़ी है लेकिन मन में कुछ खटकता सा है, इतने सालों में हमारे बप्पा बिना हामिद भाई की गाड़ी के कभी गए ही नहीं। ऐंसा लगता है कि, विसर्जन किया ही न जाए।
मम्मी ने पुकारा : " आओ बेटा, आरती कर लो। "
आरती के बाद अचानक एक अपरिचित को अपने घर के द्वार पर देखा।
सबको मोदक बाँटती मम्मी ने उसे भी प्रसाद स्वरूप मोदक दिया जिसे उसने बड़ी श्रद्धा से अपनी हथेली पर लिया।
फिर वो मम्मी से बड़े आदर से बोला : " गणपती बप्पा के विसर्जन के लिए गाड़ी लाया हूँ। मैं हामिद भाई का बेटा हूँ। "
अब्बा ने कहा था कि, " कुछ भी हो जाए लेकिन आपके गणपती, विसर्जन के लिए हमारी ही गाड़ी में जाने चाहिए। परंपरा के साथ हमारा मान भी है बेटा। "
" इसीलिए आया हूँ। "
मम्मी की आँखे छलक उठीं। उन्होंने एक और मोदक उसके हाथ पर रखा ,जो शायद हामिद भाई के लिए था....
फाइनली एक बात तो तय है कि, देव, देवता या भगवान चाहे किसी भी धर्म के हों लेकिन उत्सव जो है वो, रिश्तों का होता है....रिश्तों के भीतर बसती इंसानियत का होता है....
बस इतना ही...!!..........

गुरुवार, 23 सितंबर 2021

साम्यवादी क्रांति के सूत्र अजर अमर हैं !

 मार्क्स-एंगेल्स की यह विश्वप्रसिद्ध सैद्धांतिक स्थापना कि सामंतवाद के गर्भ से पूँजीवाद का जन्म होता है और यह कुटिल पूंजीवाद ही सामंतशाही को खा जाता है! इस थ्योरी को तो दुनिया ने देखा-सुना-जाना और माना भी है! इसी तरह मार्क्स की यह स्थापना कि पूंजीवाद के गर्भ से साम्यवाद का उदय होगा जो पूंजीवाद को खा जायेगा ! यह सिद्धांत अभी कसौटी पर खरे उतरने के लिए बहरहाल बहु प्रतीक्षित है !

किन्तु यह एक दिन यह अवश्य सच होकर रहेगा ! क्योंकि अधुनातन वैज्ञानिक भौतिक-अनुसंधानों की रफ्तार तेज होने,संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के अति-उन्नत होते जाने, लोकतान्त्रिक,अभिव्यक्ति सम्पन्न उदारवादी पूंजीवाद के लचीलेपन ने पूँजीवाद को दीर्घायु तो बना दिया है,किन्तु अमरत्व पीकर तो कोई भी नहीं जन्मा! एक दिन आएगा तब ये लूट खसोट की व्यवस्था,उत्पादन के साधनों पर राज्य का अर्थात जनता के सामूहिक स्वामित्व का बोलवाला होगा!तब तक दुनिया में द्वंदात्मकता का सिद्धांत अमर रहेगा! भले ही तब हो सकता है कि दुनिया साम्यवादी व्यवस्था का कोई और विकल्प खोज ले !
किंतु दुनिया में कल्याणकारी राज्य का स्वरूप वैसा नही होगा, जो सोवियत संघ में था या जो आज चीन,क्यूबा,वियतनाम,उत्तर कोरिया और बैनेजुएला में है ! वह व्यवस्था जो भी होगी इन सबसे बेहतर और सबसे मानवीकृत ही होगी ! साम्यवाद से नफरत करने वाले चाहें तो उसे कोई और नाम देकर तसल्ली कर सकते हैं .किन्तु बिना सोचे समझे, बिना जाने-बूझे पूंजीवाद रुपी कुल्हाड़ी का बेंट बन जाने से अच्छा है कि अपेक्षित जन-क्रांति को एक अवसर अवश्य प्रदान करें!
यह सर्वविदित है कि एक बेहतर शोषण-विहीन, वर्ग-विहीन, जाति-विहीन समाज व्यवस्था के हेतु से दुनिया भर के मेहनतकश निरंतर संघर्षरत हैं ,इस संघर्ष को विश्वव्यापी बनाये जाने कि जरुरत है .अभी तो सभी देशों और सभी महाद्वीपों में अलग-अलग संघर्ष और अलग-अलग उदेश्य होने से कोई दुनियावी क्रांति कि संभावना नहीं बन सकी है .इस नकारात्मक अवरोधी स्थिति के लिए जो तत्व जिम्मेदार हैं वे 'सभ्यताओं का संघर्ष ', आर्थिक मंदी ' 'लोकतंत्र 'के मुखौटे पहनकर दुनिया भर के प्रगतिशील जन-आंदोलनों कि भ्रूणह्त्या करते रहे हैं .जिस तरह कंस मामा ने इस आशंका से कि मेरा बधिक मेरी बहिन कि कोख से जन्म लेगा सो क्यों न उसको जन्मते ही मार दूं ? इसी प्रकार पूंजीवादी वैश्विक-गंठजोड़ बनाम विश्व बैंक,भ्र्स्टाचार की भित्ति पर उगी नवसंगठित कार्पोरेट सेक्टर रूपी अमरबेलि जैसी साम्राज्यवादी ताकतों ने कभी अपने पूंजीवाद-रुपी कंस को बचाने के लिए ;कभी चिली,कभी क्यूबा कभी भारत,कभी बेनेजुएला कभी सोवियत संघ ,कभी वियतनाम और कोरिया इत्यादि में जनता की जनवादी-क्रांतियों की जन्मते ही हत्याएं कीं हैं!
हालाँकि श्रीकृष्ण बचनाम्रत जैसे भगवद गीता रूपी साम्यवादी क्रांति के सूत्र भी दुनिआ में अजर अमर हैं! अत: पूंजीवाद रुपी कंस को एक दिन यमलोक जाना ही होगा!
पूंजीवादी साम्राज्यवाद अपने विरुद्ध होने वाले शोषित सर्वहारा के संघर्षों की धार को भौंथरा करने के लिए समाज के कमजोर वर्ग के लोगों में अपनी गहरी पेठ जमाने की हर सम्भव कोशिश करता है .पहले तो वह संवेदनशील वर्गों में आपस का वैमनस्य उत्पन्न करता है ,फिर उन्हें लोकतंत्र के सपने दिखाता है ,जब जनता की सामूहिक एकता तार-तार हो जाती है तो क्रांति की लौ बुझाने के लिए फूंक भी नहीं मारनी पड़ती .पूंजीवाद का सरगना अमेरिका है ;वह पहले सद्दाम को पालता है कि वो ईरान को बर्बाद कर दे ,जब सद्दाम ऐसा करते-करते थक जाए या पूंजीवादी केम्प के इशारों पर नाचने से इनकार कर दे तो कभी रासायनिक हथियारों के नाम पर ,कभी ९//-११ के आतंकी हमले के नाम पर सद्दाम को बंकरों से घसीटकर फाँसी पर लटका दिया जाता है .आदमखोर पूंजीवाद पहले तो अफगानिस्तान में तालिबानों को पालता है ,ताकि तत्कालीन सोवियत सर्वहारा क्रांति को विफल किया जा सके ,यही तालिबान या अल-कुआयदा जब वर्ल्डट्रेड सेंटर ध्वस्त करने लगें तो 'सभ्यताओं के संघर्ष' के नाम पर लाखों निर्दोष इराकियों ,अफगानों तथा पख्तूनों को मौत के घाट उतार दिया जाता है . भले ही इस वीभत्स नरसंहार में हजारों अमेरिकी नौजवान भी बेमौत मारे जाते रहेँ. इन पूंजीपतियों कि नजर में इंसान से बढ़कर पूँजी है ,मुनाफा है ,आधिपत्य है ,अभिजातीय दंभ है .
पूंजीवादी साम्राज्यवाद कभी क्यूबा में ,कभी लातीनी अमेरिका में , कभी मध्य-एशिया में और कभी दक्षिण- एशिया में गुर्गे पालता है .हथियारों के जखीरे बेचने के लिए बाकायदा दो पड़ोसियों में हथियारों कि होड़ को बढ़ावा देता है जब दो राष्ट्र आपस में गुथ्म्गुथ्था होने लगें तो शांति के कबूतर उड़ाने के लिए सुरक्षा-परिषद् में भाषण देता है .जो उसकी हाँ में हाँ नहीं मिलाता उसे वो धूल में मिलाने को आतुर रहता है .व्यपारिक ,आर्थिक प्रतिबंधों कि धौंस देता है .
दक्षिण एशिया में भारत को घेरने कि सदैव चालें चलीं जाती रहीं हैं .एन जी ओ के बहाने ,मिशनरीज के बहाने ,हाइड एक्ट के बहाने अलगाववाद ,साम्प्रदायिकता और परमाण्विक संधियों के बहाने भारत के अंदर सामाजिक दुराव फैलाया जाता है . बाहर से पड़ोसियों को ऍफ़ -१६ या अधुनातन हथियार देकर , आर्थिक मदद देकर भारत को घेरने कि कुटिल-चालें अब किसी से छिपी नहीं हैं .
जो कट्टरपंथी आतंकवादी तत्व हैं वे अमेरिकी नाभिनाल से खादपानी अर्थात शक्ति अर्जित करते हैं . अधिकांश बाबा ,गुरु और भगवान् अमेरिका से लेकर यूरोप तक अपना आर्थिक-साम्राज्य बढ़ाते हैं .ये बाबा लोग नैतिकता कि बात करते हैं .देश कि व्यवस्था को कोसते हैं किन्तु पूंजीवाद या सरमायेदारी के खिलाफ ,बड़े जमींदारों के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलते .कुछ कट्टरपंथी तत्व चाहे वे अल्पसंख्यक हों या बहुसंख्यक अपने-अपने धरम मजहब को व्यक्तिगत जीवन से खींचकर सार्वजनिक जीवन में या राजनीति में भी जबरन घसीट कर देश कि मेहनतकश जनता में फ़ूट डालने का काम करते हैं .प्रकारांतर से ये पूंजीवाद कि चाकरी करते हैं .पूंजीवाद ही इन तत्वों को खाद पानी देता है इसीलिये आम जनता के सरोकारों को -भूंख ,गरीबी ,महंगाई ,बेरोजगारी ,लूट ,हत्या ,बलात्कार और भयानक भ्रष्टाचार इत्यादि के लिए किये जाने वाले संयुक्त संघष -को वांछित जन -समर्थन नहीं मिल पाता.यही वजह है कि शोषण और अन्याय कि व्यवस्था बदस्तूर जारी है .देश कि आम जनता को ,मजदूर आंदोलनों को चाहिए कि राजनैतिक -आर्थिक मुद्दों के साथ - साथ जहाँ कहीं धार्मिक या जातीय-वैमनस्य पनपता हो ,धर्मान्धता या कट्टरवाद का नग्न प्रदर्शन होता हो ,देश की अस्मिता या अखंडता को खतरा हो ,वहां-वहां ट्रेड यूनियनों को चाहिए कि वर्ग-संघर्ष की चेतना से लैस होकर प्रभावशाली ढंग से मुकबला करें .कौमी एकता तथा धर्म-निरपेक्षता की शिद्दत से रक्षा करें .किसी भी क्रांति के लिए ये बुनियादी मूल्य हैं ,पूंजीवादी-सामंती ताकतें इन मूल्यों को ध्वस्त करने पर तुली हैं और यही मौजूदा दौर की सबसे खतरनाक चुनौती है .इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए मेहनतकश जनता की एकता और उसके सतत संघर्ष द्वारा ही सक्षम हुआ जा सकता है. .
श्रीराम तिवारी