एकांत में बैठकर वर्षो तपस्या की तरह अध्ययन मनन करते हुए फिर कोई पुस्तक लिखना अलग बात है ।
वह पूरी निर्ममता और निष्पक्षता से लिखी जा सकती है।
परंतु सोशल मीडिया में भी मैं जानबूझकर जुड़ा क्योंकि वर्षो पूर्व राजनीतिक सक्रियता से पूरी तरह विरक्त हो चुका हूं।विद्या में ही रति है।
क्योंकि राजनीति राष्ट्र पर नियंत्रण रख रही हैं।अभूतपूर्व नियंत्रण।
राजनीतिक दलों के तो अनेक दलों के संपर्क में हूँ ही।
परंतु वे एक सीमित समूह का मन बताते हैं ।
सोशल मीडिया उसकी तुलना में अपेक्षाकृत बहुत बड़े क्रॉस सेक्शन आफ सोसायटी का मन बताता है।
लगभग 16 वर्षों से लगातार सोशल मीडिया में सक्रिय रहने पर यह स्पष्ट हो गया है कि अपने शांत एकांत क्षण में निकाले गए निष्कर्ष के आधार पर तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी दोनों के कार्य में अनेक संधियाँ और अनेक छिद्र देख पाना बहुत सरल है ।
परंतु जिस स्तर पर हिंदू द्रोही शक्तियां 76 वर्षों में भारत में शक्तिशाली हो गई हैं और जिस निर्लज्जता तथा ढिठाई पर जाकर वे कार्य कर रही हैं, उसका हमें अनुमान इतना नहीं था जितना सोशल मीडिया से हो रहा है ।
मुझे कल्पना भी नहीं थी कि हिंदुओं के देश में हिंदुओं के प्रति घृणा और हिंसा भाव पालकर ऐसी शान से रहने वाले भी कोई समुदाय हो सकते हैं ।दंगों के समय जो लोग उत्पात करते थे उन्हें मैं लगभग पगले या मानसिक रूप से विचलित मानता था पर अब लग रहा है कि मुसलमानों में सब कुछ बहुत ही व्यवस्थित और प्रायोजित ढंग से चल रहा है और हिंदुओं का बहुत बड़ा वर्ग आत्मघृणा और आत्म विरोध की महामारी की चपेट में आ चुका है ।कांग्रेस राज में फैलाई गई शिक्षा की आड़ में कुशिक्षा का यह भीषण फल है।
ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या भारतीय जनता पार्टी के कार्यों में जितनी तेजी और जितनी स्पष्टता नहीं होने की हम शिकायत करते थे ,उस शिकायत का व्यावहारिक परिवेश में कोई आधार नजर नहीं आता।
अब तो यही लगता है कि जो भी कर रहे हैं वही कर रहे हैं और अभी तक कोई बड़ा संगठन सामने नहीं आया है। तो जो भी करेंगे वही करेंगे और उनसे आशा भी बनानी होगी और उनको छूट भी देनी होगी ।
परंतु निश्चय ही लोकतंत्र में एक समूह प्रखर हिन्दुत्व निष्ठा का खड़ा होना चाहिए। ऐसा कुछ खड़ा हो तो हम स्वागत करेंगे ।सभी लोग स्वागत करेंगे ।
लेकिन संघ और भाजपा का दृष्टिकोण सारे छिद्रों और संधियों के बावजूद अब अधिक समझ में आने लगा है।
उनकी विवशता और उनकी सीमाएं भी स्पष्ट होने लगीहैं।
इतना खुला निर्लज्ज और साधारण साधारण सी बातों पर और ऐसी बातों पर जिन पर सबको गर्व होना चाहिए उन पर भी विरोध ! महद आश्चर्य।
यह राजीव गांधी के समय तक अकल्पनीय था ।
राजीव गांधी के जाने के बाद जो कांग्रेस है ,वह कांग्रेस कुछ और हो गई है।
वह कांग्रेस भीषण हो गई है ।वह कांग्रेश निंदनीय हो गई है।
उसके जैसे राष्ट्रीय दल की आड़ नहीं मिले तो यह जो चिरकुट और अपराधियों के समूह हैं, वे कुछ भी नहीं कर सकते।
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