गुरुवार, 11 मई 2023

गाँधी सक्षम एवं प्रभावी प्रशासन

 राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी मूल रूप से ऐसे किसी भी आरक्षण के विरोध में थे क्योंकि उनकी दृष्टि में यह सक्षम एवं प्रभावी प्रशासन की संभावनाओं को हतोत्साहित करता है। उन्होंने अपनी किताब ‘मेरे सपनों का भारत’ में लिखा है: “सरकारी महकमों में जहाँ तक कोटे की बात है, अगर हमने उसमें सांप्रदायिक भावना का समावेश किया, तो यह एक अच्छी सरकार के लिए घातक होगा। मैं समझता हूँ कि सक्षम प्रशासन के लिए, उसे आवश्यक रूप से हमेशा योग्य हाथों में होना चाहिए। निश्चय ही वहाँ भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। पदों का वितरण हर समुदाय के सदस्यों के अनुपात में नहीं होना चाहिए। जो सरकारी सेवाओं में जवाबदेही के पदों को पाने की लालसा रखते हैं, वे इसके लिए जरूरी परीक्षा पास करने पर ही उन पर काबिज हो सकते हैं।” यहाँ पर गाँधी सक्षम एवं प्रभावी प्रशासन को योग्यता एवं प्रतिभा से सम्बद्ध कर देख रहे हैं और इसीलिये कोटे की किसी भी संभावना को नकार रहे हैं। आगे चलकर जून,1961 में राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी आरक्षण के मसले पर अपने रुख को स्पष्ट करते हुए कहा कि: “हमें आरक्षण की पुरानी आदत और इस जाति या उस समूह को दी गई खास तरह की रियायतों से बाहर आने की आवश्यकता है। यह सच है कि अनुसूचित जाति-जनजाति को मदद करने के प्रसंग में हम कुछ नियम-कायदों और बाध्यताओं से बँधे हैं। वे मदद के पात्र हैं, लेकिन इसके बावजूद मैं किसी भी तरह के कोटे के खिलाफ हूँ, खासकर सरकारी सेवाओं में। मैं किसी भी तरह की अक्षमता और दोयम दर्जेपन के सर्वथा विरुद्ध हूँ। मैं चाहता हूँ कि मेरा देश हरेक क्षेत्र में अव्वल देश बने। जिस घड़ी हम दोयम दर्जे को बढ़ावा देंगे, हम मोर्चा हार जायेंगे।”

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