तमाम अनर्गल और अतार्किक आलोचनाओं के बावजूद यह मार्क्सवाद की प्रामाणिकता साबित होने का-अब तक का-सर्वश्रेष्ठ कालखण्ड है । प्रासंगिकता नाम की कोई चीज होती है तो इससे अधिक प्रासंगिक मार्क्स कभी नहीं रहे : न अपने जीवन काल में, न दूसरे विश्वयुध्द के बाद के समाजवादी व्यवस्था की मजबूती के समय में ।
इसी संदर्भ में,पहले सुनाई जा चुकी एक कहानी एक बार फिर;
● अर्थशास्त्र के नोबल पुरुस्कार विजेता स्टिग्लिट्ज़ अमरीका के दो-दो राष्ट्रपतियों के आर्थिक सलाहकार रहे और नवउदार आर्थिक दर्शन के ब्रह्मा माने जाते हैं । जबकि तब 90 पार कर चुके एरिक होब्सवाम दुनिया के उस वक़्त जीवित इतिहासकारों में सबसे बड़े नाम और इतने पक्के मार्क्सवादी थे कि नियम से अपनी पार्टी सदस्यता का नवीनीकरण कराया करते थे।
●एक समारोह में बुद्धिजीवी जोसेफ स्टिग्लिट्ज़ अपने हाथ में जाम लिए अचानक से दूसरे महान विद्वान एरिक होब्सवाम के सामने आ खड़े हुये ।
इन दोनों को आमने सामने देखकर उस समारोह में आये सभी का ध्यान इन दोनों पर केंद्रित हो गया ।
● स्टिग्लिट्ज़ बोले: यार ये तुम्हारा बड़बब्बा (ग्रैंड ओल्ड मैन) कितना दूरदर्शी था । उसने सवा सौ साल से भी पहले ही बता दिया था कि हम लोग क्या क्या पाप करेंगे !! कैसी कैसी बीमारियां फैलाएंगे ।
होब्सवाम ने पूछा : कौन ? मार्क्स ।
स्टिग्लिट्ज़ : हाँ, अभी फिर से पूंजी (दास कैपिटल) पढ़ी । क्या सचित्र नक्शा खींचा है मार्क्स ने, लगता है जैसे हमारी कारगुजारियां देख कर लिख रहा है ।
होब्सवाम : क्या बात है जोसेफ़, आज मार्क्स की तारीफ़ कर रहे हो !! ज्यादा चढ़ गयी है क्या !!
स्टिग्लिट्ज़ : अरे अभी तो चखी तक नहीं है । देखो वैसे का वैसा ही है जाम । मार्क्स ने सचमुच में अभिभूत कर दिया । यहाँ, तुम सबसे बड़े दिखे तो लगा कि कह दूं ।
● दुआ सलाम और खैरियते पूछने की रस्म के बाद जोसेफ स्टिगलिट्ज़ अपनी प्रशंसक और सजातीय बिरादरी की तरफ बढे ।
● थोड़ा चले थे कि जाते जाते अचानक फिर लौटे और बोले : सुनो एरिक, अगर बीमारी वही हैं जो कार्ल मार्क्स ने बताई थीं तो दवा भी वही लगेगी जो वो बता कर गया ।
● हाल के दौर में हूबहू वही घटा है, घट रहा है जिसे 169 साल पहले *कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो* में और 150 साल पहले *पूँजी* में लिख गए हैं कार्ल मार्क्स।
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