मध्ययुग में जब हिंसक इस्लामिक कबीलों ने उत्तर भारत पर हमला किया तब अधिकांस क्षत्रिय राजपूत युद्ध में मारे गये! जो बच गये उनमें से अधिकांश राजपूत राजाओंने मुगलों से रिस्तेदारी कर ली! कुछ जो राणा प्रताप जैसे स्वाभिमानी थे, उन्होंने जंगलों में घास फूस खाकर अपने धर्म और ईमान के लिये बर्बर आक्रमणकारियों से संघर्ष किया,लड़ते लड़ते शहीद हो गये और जो बच गये उनमें से कुछ चंबल जैसे बीहड़ों में डाकू बन गये!
हमलावर कबीलों और बर्बर लुटेरों क सामने अहिंसक भारतीय हिंदू समाज असहाय था ! इन्हीं हमलावरों के साथ आये घाघ मज़हब प्रचारकों को भारतीय समाज पहचान नहीं पाया और धर्मातरण का विरोध न करते हुए विदेशी हमलावरों को गले लगाया । इसका सिला उन्होंने यह दिया कि मंदिर तोडे़ और बड़ी बेरहमी से हिंदूओं को बहुत सताया!
इस जद्दोजहद में मुस्लिम जेहादियों को पता चला कि यदि हिंदू समाज से ब्राह्मणों* को मुसलमान बना दिया जाए,तो बाकी सभी जातियों के लोग अपने आप मुस्लिम बन जाएंगे!चूंकि तत्कालीन समाज में तपस्वी कर्मयोगी सन्यासी ब्राह्मणों को धरती पर देवता माना जाता था,अत: राजपूतों को वश में कर लेने के बाद आतताईयों ने दूसरा हमला ब्राह्मणों पर किया।
जब साम दाम दण्ड भेद से ब्राह्मणों का धर्म परिवर्तन नही किया जा सका तो पूजा पाठ तीर्थ यात्रा पर जजिया कर लगा दिया। फिर भी जब ब्राह्मण से धर्मांतरण की उम्मीद नहीं रही,तब मुगलों,तुर्कों,अरबों ने ब्राह्मणों की हत्या का अभियान चलाया! जो मुस्लिम हत्यारा अपने वजन के बराबर यज्ञोपवीत अर्थात जनेऊ एकत्रित कर लेता था (एक ब्राह्मण की हत्या =एक जनेऊ) उस मुस्लिम हत्यारे कसाई को 'गाजी' कहा जाता था!
11वीं शताब्दी से लेकर अकबर के सत्ता में आने तक लाखों ब्राह्मण मार दिये गये! कुछ ब्राह्मण धर्म संस्कृति और प्राण बचाकर दक्षिण की ओर पांव पैदल निकल गए।आज दक्षिण भारत में जो हिंदू सभ्यता संस्कृति फल फूल रही है,वह ब्राह्मणों की उसी कुर्बानी का परिणाम है!
बेशक महाराणा प्रताप को न जीत पाने की कसक लिए अकबर ने जीवनके अंतिम दिनों में सभीको साथ लेकर चलने की कोशिश भी की थी,व्यापक हिंदू समाज ने उसका स्वागत भी किया था!किंतु कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम उलेमाओं के हठ ने जेहाद जारी रखा। अतः अकबर को 'सुलहकुल' नीति छोड़कर मुल्ला मौलवियों की बात माननी पड़ी!बिडम्बना है कि अकबर के ही आदेश पर गढ़ा मंडला की हिंदू रानी दुर्गावती और मांडू के उदारवादी मुस्लिम राजा बाजबहादुर को मार डाला गया। बाजबहादुर की सुप्रसिद्ध प्रेयसी हिन्दू रानी रूपमतीको आत्महत्या करनी पड़ी थी!
सवाल उठता है कि इस्लाम में यह खून खराबा किसलिये?इतिहास एक ही जबाब देगा -जेहाद और ऐय्यासी !!!
भारतीय सकल गैर मुस्लिम समाज सैकड़ों साल तक मुसलमानों से मार खाते रहे, फिर भी हिंदू धर्म नही त्यागा!ऐंसे कुछ महान हिंदू पैदल पैदल भयानक जंगलों ,पर्वतों नदियों को पार कर महाराष्ट्र,कर्नाटक,केरल की ओर चले गये! उनमें से आधे तो रास्ते में ही भूख प्यास से मर गये! जो केरल में तक जा पहुंचे उन्ही ने दक्षिण भारतमें संस्कृत साहित्य और वैदिक ज्ञान पहुँचाया,दक्षिण के राजाओं को भी प्रेरित किया कि हिंदू मंदिर बनाएं! इससे पहले दक्षिण भारत में अनार्य याने द्रविड़ सभ्यता का ही बाहुल्य था!जिसमें शैव,शाक्त लोकायत और लिंगायत मतों का बोलवाला था!
आर्य और द्रविड़ सभ्यता के मिलन से पहले और इस्लाम पूर्व के यायावर अनेक कबीले भारत आकर 'सनातन धर्म' की शास्वत धारा में विलीन हो गए! इधर संतों शंकराचार्यो की असीम कृपा से शैव और वैष्णव का मिलन संभव हुआ!
विदेशी हमलावरों के अत्याचार के कारण धीरे धीरे समग्र भारतीय समाज एक होता चला गया!उत्तर भारत में इस्लामिक आक्रमणकारियों ने सवर्णों को तो बुरी तरह परास्त कर दिया था!किंतु भारत के गौंड़ भील आदिवासियों ने,नाई,धोबी माझी बरौआ,धानुक, चर्मकार, पासी,भोई, कहार यादव,कुर्मी,जाट, गूजर,महार,बुनकर दलित इत्यादि तमाम हिंदूओंने अपने बलबूते पर अपने धर्म की रक्षा की!
विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने सिंधु के इस पार की समस्त आर्यावर्त भूमि को हिंदोस्तान कहा था! उनके अनुसार आर्य, द्रविड़ ,दलित पिछड़े और आदिवासी सब के सब 'हिंदू' या काफिर थे!
जिन बर्बर मुस्लिम शासकों ने बहादुर सिख गुरुओं के सिर काट लिये,उन आदमखोरों को पिछड़ों दलितों ने नाकों चने चबवा दिये!तुर्क और मुगल दरिंदे हिंदू समाज के थोड़े से हिस्से को ही धर्मातरण करा पाये थे!वे सिर्फ कमजोरों को ही मुसलमान बना पाए!बहादुर दलित,पिछड़े,आदिवासी समाज के लोग- मजूर किसान के रूप में मुगलों,तुर्कों और खिल्जियों पर भारी पड़े! यही दलित पिछड़े आदिवासी लोग विगत एक हजार साल से उत्तर भारत में हिंदू धर्म की रक्षा करते आ रहे हैं!इसलिये वास्तव में असली हिंदू यही दलित पिछड़े और आदिवासी हैं!
इस्लाम के आने से पहले (एक हजार साल पहलेे )भारत के दलित पिछड़े आदिवासी समाज जन यदि सवर्णों के सताए होते तो मुसलमान बन जाते! किंतु इन दलित पिछड़े हिंदुओं ने अपना ईमान बचाया और बहादुरी से मुकाबला किया! वेशक सवर्ण और अन्य के बीच सब ठीक नहीं था! लेकिन मुस्लिम शासकों और अंग्रेजों ने भारत के कारीगरों, किसानों मजूरों पर इतना अत्याचार किया जिस कारण भारत के असली हिंदू अति दीन अवस्था में आ गये !ये सनातन से दलित पिछड़े नही थे बल्कि तुर्कों, मुगलों,अंग्रेजों से हिंदू धर्म को बचाने में इन्होंने जो कुर्बानी दी उसके कारण ये गरीब और बंचित होते चले गये! विदेशियों ने हिंदू समाज के दूध में सिर्फ नीबू निचोड़ने का काम किया!
आजकल हिंदू समाज को बांटनेकी तिकड़म में लगे लोग यह न भूलें कि ये दलित पिछड़े आदिवासी यदि हिंदू न होते तो भारत भी ईरान और पाकिस्तान,अफगानिस्तान की तरह एक इस्लामिक राष्ट्र होता!
जिन दलित पिछड़ों की वजह से उत्तर भारत में मोदीजी को दोदो बार प्रचंड बहुमत मिला, और जिन दलितों की ताकत से श्री रामनाथ कोविद राष्ट्रपति बने,पासवान,अठावले और हंसराज जैसे दलित नेता भारत सरकार में मंत्री बने उन दलितों, पिछड़ों पर अब भी चंगेजखान,तैमूर लंग,औरंगजेब की औलादें डोरे डाल रहीं हैं! लालू, मुलायम,माया और ममता ये दलितों पिछड़ों के नेता नही,सत्ता के दलाल हैं! एमपी यू पी,बिहार छ. ग. की जनता ने इन जातिवादी बदमाशों को हराकर नेक काम किया है!
रक्तरंजित विकृत इतिहास का पहिया अब थम जाना चाहिए। वरना जो भी हिंदू सिख मुस्लिम ईसाई या कोई और आतंकवाद का समर्थन करेगा,वो भारत देश का शत्रू माना जाएगा! जो राजनीतिक दल या समूह हिंसक दंगाईयों पत्थरबाजों का समर्थन करते हैं उनका भविष्य अंधकारमय है!(क्रमशः):-
मैंने यह आलेख २०१० में अपने ब्लाग्स पर लिखा था,तब केंद्र में यूपीए सरकार थी..