बुधवार, 2 दिसंबर 2015

जब भारत पर आतंकियों की बुरी नजर है तो हम भारत के लोग किसका इन्तजार कर रहे हैं ?

 पेरिस में आईएसआईएस के हंमले के बाद  यूएनओ में  आईएसआईएस के खिलाफ फ़्रांस द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव आनन-फानन पारित  कर दिया गया। फ़्रांस पर हमला करने वाले इस्लामिक आतंकियों को ,वे चाहे जहाँ भी छिपे  हों, उन्हें मारने का अबाध अधिकार फ़्रांस और उसके मित्र राष्ट्रों को स्वयमेव मिल गया है । उन्हें रूस का भी समर्थन और सहयोग मिल रहा है। चूँकि  भारत दुनिया का  सर्वाधिक आतंक पीड़ित देश है । तो सवाल ये उठता है कि जब यूएन में ततसंबंधी  प्रस्ताव पारित हो रहा था तब भारत के छप्पन इंची सत्ताधीश क्या कर रहे थे ? कहा जा सकता है कि  शायद वे बिहार  विधान सभा चुनाव में अपनी मर्मांतक  हार का मंथन कर रहे होंगे! और तब विपक्ष के तमाम बतौलेबाज शूरमा क्या कर रहे थे ? शायद  वे 'असहिष्णुता ' के विमर्श पर काल्पनिक लफ्फाजी और लम्बे-लम्बे व्याख्यान दे रहे होंगे ! देश के बुद्धिजीवी,कलाकार ,फ़िल्मकार व लेखक  क्या कर रहे थे ?  सम्मान  पदक वापसी के विमर्श में जुटे थे !  आईएसआईएस के भारत पर आसन्न खूनी हमलों से निपटने की तैयारी पर चर्चा  करने के  बजाय  देश का प्रबुद्ध वर्ग  केवल राजनैतिक धड़ेबन्दी  के शिकार  हो रहा है । इस हालात से निपटने  के लिए भारत  की जनता और नेतत्व को फ़्रांस से सबक सीखना चाहिए !

खबर है कि  पाकिस्तान की आईएसआई ने अब नए सिरे से भारत में सिमी के माध्यम से आईएसआईएस की पकड़ बनाने की जुगत भिड़ाई है। बीएसएफ ,आर्मी और सरकारी महकमों  में  देशद्रोही -गद्दार पकडे  गए हैं। वे  जानमाल की भारी हानि पहुंचाने के  उद्देश्य से आत्मघाती हमलों के मंसूबे बना  रहे हैं। अमेरिका ,ब्रिटेन ,फ़्रांस और इटली ने अपने तरीके से और रूस तथा अरब देशों ने अपने तरीके से आतंकवाद के खिलाफ रणनीति बना रखी  है। जबकि भारत के कर्णधार केवल 'मन की बातों' या 'सहिष्णुता'की काल्पनिक लफ्फाजी में व्यस्त हैं। देश के भृष्ट अफसरों , भृष्ट व्यापारियों,सटोरियों ,जमाखोरों , मिलाबटियों ,कालेधन वालों ,धर्म-मजहब के ठेकेदारोंऔर आरक्षण के पैरोकारों ने देश को खोखला कर दिया है। लगता है आतंकवाद से लड़ने के लिए  देश में एक और आपातकाल चाहिए !

जब फ़्रांस पर आतंकी हमला हुआ तो पूरा यूरोप एकजुट हो गया। जब कभी पेरिस ,न्यूयार्क,लन्दन या पोप  की प्रभुता  पर किसी ने आँख उठाई ,तो वह  आँख फोड़ दी गयी। अब  जबकि  भारत पर  आतंकियों की बुरी नजर  है, तो हम भारत के लोग किसका इन्तजार  कर रहे हैं ? हमारे लिए यूएनओ थोड़े ही है ! वास्तव में  हम तीसरी दुनिया के  लोग तो  यूएनओ के  इस्तेमाल की चीज हैं !  हम तो साम्रजी  मुल्कों लिए अभी भी महज  नव-उपनिवेश ही हैं ! हम विकाशशील देश तो विकसित मुल्कों के उत्पादनों के  लिए महज  बाजार मात्र हैं। हमें आतंकी मारें ,महँगाई मारे ,जमाखोर मारे , जातीय -मजहब के  ठेकेदार मारें ,राजनीति के दवंग मारें -हमारी सुनने  वाला दुनिया में कोई नहीं ! दुराव और  वैमनस्यता पूर्ण चुनाव प्रणाली के कारण  हम भारत  के जनगण और नेता -अभिनेता  सभी बुरी तरह एक दूसरे को ही धुन रहे  हैं ! हमारे मुल्क को न केवल  आतंकवाद  बल्कि  नक्सलवाद और सर्वव्यापी भृष्टाचार ने ग्रहण की तरह लील रखा है। और हम सभी तथाकथित लोकतंत्र के प्रमादी 'नीरो'  'राष्टीय असहमति' की वाँसुरी बजाये जा रहे हैं।
                                                                                                    श्रीराम तिवारी


 

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