सोमवार, 28 दिसंबर 2015

भारत के यशस्वी गैरीबाल्डी प्रथम जन नायक पुष्यमित्र शुंग ।



 सामन्तकालीन युद्धोन्मादी घटनाओं के  जितने भी धीरोदात्त  नायक और महा कारुणिक साधु चरित्र उपलब्ध हैं ,उनमें कलावादी लेखकों और प्रगतिशील लेखकों ने अपने -अपने मनोरथ थोप दिए हैं। कुछ ने तो  दास भाव  से अपने राजा  या राजपुत्र को ईश्वर अवतार ही मान लिया। कुछ ने  तो अकर्मण्य और अघोरी राजपुत्रों को  को  धर्म संस्थापक ही मान लिया। और कुछ ने तो  ईश्वर और तारणहार ही मान  लिया। राजाओं -सामंतों के युद्धों और रानियों की रंगलीला -रासलीला के वर्णन  के जो महाकाव्य रचे गए ,उनमें धर्म -मजहब  के कुछ मानवीय सूत्र भी घुसेड़ दिए गए ,और फिर वे इतिहास मान लिए गये। लेकिन  तमाम मिथकीकरण के वावजूद कुछ ठोस प्रमाण हैं जो वास्तविक  इतिहास की कुछ झांकी प्रस्तुत करते हैं।

 यह सर्वज्ञात है कि बुद्ध ,महावीर और  विदेशी आक्रमणों का बहुत नजदीक का नाता है। इसके प्रमाण हमे बौद्ध साहित्य और जैन आगम में ही मिल जाते हैं। लेकिन हिंदू ,सनातन ,आर्य धर्म के ग्रंथों में आस्था ,कर्मकांड और नियम-कर्म की मह्त्ता के चलते इतिहास बोध नादरद  है। फिर भी चतुर चितेरे वैज्ञानिक दृष्टी वाले हर शख्स  को इस पौराणिक भूसे के ढेर में इतिहास और अध्यात्म का सारतत्व खोजने पर मिल ही जाता है। मुझे भी भारतीय इतिहास की कुछ अविस्मरणीय घटनाएँ और व्यक्तित्व बहुत स्पष्ट नजर आते हैं। उन्हें में से एक तो हैं  दशावतार के  भगवन परशुराम। जो पौराणिकता और मिथवाद के शिकार यहीं।  दूसरे हैं  भारत के यशस्वी  गैरीबाल्डी  प्रथम जन नायक  पुष्यमित्र शुंग ।

मोर्य वंश के महान सम्राट चन्द्रगुप्त के पोत्र महान अशोक (?) ने कलिंग युद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म अपना लिया। अशोक अगर राजपाठ छोड़कर बौद्ध भिक्षु बनकर धर्म प्रचार में लगता तब वह वास्तव में महान होता । परन्तु अशोक ने एक बौध सम्राट के रूप में लग भाग २० वर्ष तक शासन किया। अहिंसा का पथ अपनाते हुए उसने पूरे शासन तंत्र को बौद्ध धर्म के प्रचार व प्रसार में लगा दिया। अत्यधिक अहिंसा के प्रसार से भारत की वीर भूमि बौद्ध भिक्षुओ व बौद्ध मठों का गढ़ बन गई थी। उससे भी आगे जब मोर्य वंश का नौवा अन्तिम सम्राट व्रहद्रथ मगध की गद्दी पर बैठा ,तब उस समय तक आज का अफगानिस्तान, पंजाब व लगभग पूरा उत्तरी भारत बौद्ध बन चुका था । जब सिकंदर व सैल्युकस जैसे वीर भारत के वीरों से अपना मान मर्दन करा चुके थे, तब उसके लगभग ९० वर्ष पश्चात् जब भारत से बौद्ध धर्म की अहिंसात्मक निति के कारण वीर वृत्ति का लगभग ह्रास हो चुका था, ग्रीकों ने सिन्धु नदी को पार करने का साहस दिखा दिया।
 
सम्राट व्रहद्रथ के शासनकाल में ग्रीक शासक मिनिंदर जिसको बौद्ध साहित्य में मिलिंद कहा गया है ,ने भारत वर्ष पर आक्रमण की योजना बनाई। मिनिंदर ने सबसे पहले बौद्ध धर्म के धर्म गुरुओं से संपर्क साधा,और उनसे कहा कि अगर आप भारत विजय में मेरा साथ दें तो में भारत विजय के पश्चात् में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लूँगा। बौद्ध गुरुओं ने राष्ट्र द्रोह किया तथा भारत पर आक्रमण के लिए एक विदेशी शासक का साथ दिया।
सीमा पर स्थित बौद्ध मठ राष्ट्रद्रोह के अड्डे बन गए। बोद्ध भिक्षुओ का वेश धरकर मिनिंदर के सैनिक मठों में आकर रहने लगे। हजारों मठों में सैनिकों के साथ साथ हथियार भी छुपा दिए गए।
दूसरी तरफ़ सम्राट व्रहद्रथ की सेना का एक वीर सैनिक पुष्यमित्र शुंग अपनी वीरता व साहस के कारण मगध कि सेना का सेनापति बन चुका था । बौद्ध मठों में विदेशी सैनिको का आगमन उसकी नजरों से नही छुपा । पुष्यमित्र ने सम्राट से मठों कि तलाशी की आज्ञा मांगी। परंतु बौद्ध सम्राट वृहद्रथ ने मना कर दिया।किंतु राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत प्रोत शुंग , सम्राट की आज्ञा का उल्लंघन करके बौद्ध मठों की तलाशी लेने पहुँच गया। मठों में स्थित सभी विदेशी सैनिको को पकड़ लिया गया,तथा उनको यमलोक पहुँचा दिया गया,और उनके हथियार कब्जे में कर लिए गए। राष्ट्रद्रोही बौद्धों को भी ग्रिफ्तार कर लिया गया। परन्तु वृहद्रथ को यह बात अच्छी नही लगी।

पुष्यमित्र जब मगध वापस आया तब उस समय सम्राट सैनिक परेड की जाँच कर रहा था। सैनिक परेड के स्थान पर hi सम्राट व पुष्यमित्र शुंग के बीच बौद्ध मठों को लेकर कहासुनी हो गई।सम्राट वृहद्रथ ने पुष्यमित्र पर हमला करना चाहा परंतु पुष्यमित्र ने पलटवार करते हुए सम्राट का वद्ध कर दिया। वैदिक सैनिको ने पुष्यमित्र का साथ दिया तथा पुष्यमित्र को मगध का सम्राट घोषित कर दिया। सबसे पहले मगध के नए सम्राट पुष्यमित्र ने राज्य प्रबंध को प्रभावी बनाया, तथा एक सुगठित सेना का संगठन किया। पुष्यमित्र ने अपनी सेना के साथ भारत के मध्य तक चढ़ आए मिनिंदर पर आक्रमण कर दिया। भारतीय वीर सेना के सामने ग्रीक सैनिको की एक न चली। मिनिंदर की सेना पीछे हटती चली गई । पुष्यमित्र शुंग ने पिछले सम्राटों की तरह कोई गलती नही की तथा ग्रीक सेना का पीछा करते हुए उसे सिन्धु पार धकेल दिया। इसके पश्चात् ग्रीक कभी भी भारत पर आक्रमण नही कर पाये। सम्राट पुष्य मित्र ने सिकंदर के समय से ही भारत वर्ष को परेशानी में डालने वाले ग्रीको का समूल नाश ही कर दिया। बौद्ध धर्म के प्रसार के कारण वैदिक सभ्यता का जो ह्रास हुआ,पुन:ऋषिओं के आशीर्वाद से जाग्रत हुआ। डर से बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले पुन: वैदिक धर्म में लौट आए। कुछ बौद्ध ग्रंथों में लिखा है की पुष्यमित्र ने बौद्दों को सताया .किंतु यह पूरा सत्य नही है। सम्राट ने उन राष्ट्रद्रोही बौद्धों को सजा दी ,जो उस समय ग्रीक शासकों का साथ दे रहे थे।

पुष्यमित्र ने जो वैदिक धर्म की पताका फहराई उसी के आधार को सम्राट विक्र्मद्वित्य व आगे चलकर गुप्त साम्रराज्य ने इस धर्म के ज्ञान को पूरे विश्व में फैलाया। पुष्यमित्र शुंग के बारे में अर्बाचीन बौद्ध मतावलबियों  ने बहुत सी अनर्गल बातें लिखी हैं। चूँकि आजादी के बाद देश के शासक वर्ग को वोटों की राजनीति ने बाध्य किया कि  वे हिन्दू समाज के अन्त्यज वर्ग को और देश के अल्पसंख्यक वर्ग को साधें। इसलिए  कुछ सायास और कुछ अनायास गलत-सलत  इतिहास पढ़ाया जाता रहा है। पुष्यमित्र शुंग ने भारत को बौद्धिक मक्कारी ,परजीवी अहिंसा के पुजारियों से निजात दिलाने की भरपूर कोशिश की। जब  अरब में इस्लाम का  उद्भव  हुआ और उसके खलीफाओं ने  परसिया-ईरान ,काबुल और सिंध  पर  आक्रमण  किये तब  भारत में बौद्ध साम्राज्य का बोलवाला था। तब  भारत में अधिकांस बौद्ध -जैन राजाओं   और शक-हूणों के नए वर्णशंकर -राजपुत्रों का शासन था।  यदि पुष्यमित्र शुंग के अनुसार भारत का समाज और शासक गतिशील होते तो भारत की गुलामी का इतिहास नहीं लिखा जाता। जब  भारतीय समाज उच्चतर मूल्य  अहिंसा  और सहिष्णुताउसके गले की फांस बन गए तब लगा कि  ये मूल्य  सिर्फ धरती के देवताओं के लिए ही बने हैं। पुष्यमित्र शुंग ने  एक बौद्ध भिख्खु से कहा था -जाहिल कबीलाई खूँखार  कौमें हमारे  'अहिंसा' सिद्धांत  का मजाक उड़ाती हैं।  श्रीराम तिवारी 
 

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