अपने प्रधान सचिव राजेन्द्र के दफ्तर पर ताजा सीबीआई छापे से बौखलाए अरविन्द केजरीवाल खुद ही अपनी हंसी उड़वा रहे हैं। ''आप''नेता जब दिल्ली राज्य की सत्ता में दूसरी बार आये तो भारी बहुमत [ ७० में से ६७ सीटों] ने उन्हें इतना मदमस्त कर दिया कि योगेन्द्र,प्रशांत ,शाजिया जैसे कद्दावर नेताओं को ही चलता कर दिया। अभी साल भर भी नहीं हुआ और उनकी असफलताओं के पहाड़ आसमान छूने लगे हैं। दिल्ली की शकूर बस्ती के सैकड़ों भूंखे -प्यासे लोग इन दिनों दिल्ली की कड़कड़ाती ठंड में ठिठुर रहे हैं। उनकी जीवन-मृत्यु का संज्ञान लेने के बजाय एनडीए की मोदी सरकार को ऐंसी क्या गरज आन पडी कि सब काम-धाम छोड़कर दिल्ली के मुख्य मंत्री -केजरीवाल के दफ्तर पर सीबीआई का छापा डलवा दिया ? उधर केजरीवाल भी अपने महत्वपूर्ण दायित्व से पृथक अपने सचिव के बचाव में इतने बाचाल हो गए कि सीबीआई और पीएम को ही अंट -शंट बकने लगे।
क्या केजरीवाल की नजर में मोदी जी जनता द्वारा चुने गए पीएम नहीं हैं ? क्या मोदी जी केवल भाजपा या संघ परिवार के ही प्रधान मंत्री है ? क्या वे दिल्ली की जनता के और केजरीवाल के भी प्रधान मंत्री नहीं हैं ?केजरीवाल के अल्फाज चीख-चीख कर बता रहे हैं कि वे नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री ही नहीं मानते ! उधर केंद्र सरकार का नकारात्मक रवैया और उनके लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग का रोड़ा अटकाऊ रवैया दिल्ली की 'आप'' सरकार और दिल्ली की जनता को बता रहा है कि मोदी जी और भाजपा वाले तो केजरीवाल को दिल्ली का मुख्य मंत्री ही नहीं मानते ! खीर भाजपा और मोदी सरकार से न्याय और समानता की उम्मीद किसी महा जड़मति को ही रही होगी किन्तु "आप' ' को तो किसी भी आरोप से बरी नहीं किया जा सकता।
चूँकि 'आप' के नेता केजरीवाल ने चुनाव से पूर्व भृष्टाचार उन्मूलन की भीष्म प्रतिज्ञा लेकर दिल्ली की जनता का जनादेश हासिल किया है, अतः उनके दफतर में सीबीआई आये या ईडी आये या साक्षात यमराज आये उन्हें सदैव याद राख्न चाहिए कि "साँचे को आंच क्या " ? वेशक केंद्र की मोदी सरकार उन्हें सहयोग नहीं कर रही ! और केजरीवाल को भृष्ट साबित करने के कुटिल मंसूबे परम्परागत राजनीती के इंद्र लोक में भी बाँधे जा रहे होंगे। लेकिन सवाल यह है कि पूंजीवादी इंद्र के इंद्रासन को जिस किसी तपोनिष्ठ से खतरा हो उसके तप को अक्षुण क्यों रहना चाहिए ? उसे निष्कलंक रखने की जिम्मेदारी मोदी सरकार की नहीं है बल्कि यह तो उनकी ही जिम्मेदारी है जो इसका दावा करते हुए सत्ता में आये।
चूँकि केजरीवाल सत्य हरिश्चंद्र नहीं हैं ,शिवि ,दधीचि नहीं हैं ,इसलिए सत्ता के आधुनिक 'इंद्र' को केजरीवाल से कोई खतरा नहीं। केजरीवाल को भी 'इंद्र' से डरने की जरूरत ही नहीं क्योंकि इंद्र का चरित्र कितना महान है यह तीनों लोक जानते हैं। वैसे भी केजरीवाल जननायक या 'आदर्शवाद' के अवतार नहीं हैं। वे तो अभी तक एक अदद लोकतान्त्रिक नेता भी नहीं बन पाये हैं। वे तो इतने नादान हैं कि उन्हें यह भी एहसास नहीं कि "आप' का चाल -चेहरा -चरित्र निष्कलंक रह ही नही सकता ! क्योंकि जब तक देश और दुनिया में यह आधुनिक घोर पतनशील अधोगामी पूँजीवादी व्यवस्था मौजूद है। तब तक राजनैतिक काजल की कोठरी में कोई भी सयाना - या केजरीवाल यदि एक बारे घुस जाए तो निष्कलंक रह ही नहीं सकता। हमें इंतजार है यह जानने का कि इस काजल की कोठरी में "आप' और केजरीवाल अब तक ' कितने काले हो चुके हैं ! यह शुभ कर्म सीबीआई के कर कमलों अर्थात 'काले हाथों' से ही सम्पन्न होगा, इसमें केजरीवाल को संदेह नहीं होना चाहिए !
देश के प्रत्येक जागरूक नागरिक को इसमें रंचमात्र संदेह नहीं कि सीबीआई के दुरूपयोग के बरक्स भारत के सत्ता प्रतिष्ठान का मूल चरित्र पूर्ववत है। सरकार का नेतत्व बदल जाने के बावजूद शासन-प्रशासन की नीति -नियत - चाल-चरित्र -चेहरा यथावत है।भृष्ट उच्चाधिकारियों का रूप -गुण -स्वभाव भी यथावत है। जब तक देश की जनता वर्ग चेतना से लेस होकर किसी 'भव्य क्रांति' का शंखनाद नहीं करती ,तब तक इस भृष्ट तंत्र के द्वारा सत्ताधारी नेता एवं दल , राजनैतिक ताश के पत्तों की मानिंद यों ही फेंटे जाते रहेंगे !श्रीराम तिवारी !
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