वैसे तो दुनिया की हर कौम में एक नैसर्गिक समानता है कि ,'अपने वालों ' से गद्दारी करने पर प्रायः माफ़ नहीं किया करते ! लेकिन हिन्दू और ईसाइयत परम्परा में एक विचित्र और अदभुत समानता हे कि अपराधी चाहे अपने वाला हो या शत्रु पक्ष का उसको एक बार क्षमा अवश्य किया जाना चाहिये । जिस विभीषण ने अपने भाई रावण से गद्दारी की और राम से जा मिला ,जिसने अपने ही वंश का नाश कराया उसे हिन्दू मान्यताओं और परम्पराओं ने 'देवत्व' प्रदान किया ! लेकिन जब हिन्दू जैचंद ने हिन्दू पृथ्वीराज चौहान से गद्दारी की तो इस्लामिक हमलावर मुहम्मद गौरी ने दोनों हिन्दुओं को -पृथ्वीराज और जैचंद-दोनों को ही नहीं बख्सा। युद्ध में गद्दारी का इससे बढ़िया इनाम क्या हो सकता है । जन श्रुति है कि गौरी ने कहा था " जयचंद तूँ अपने ही कौम का नहीं हुआ तो हमारा कैसे हो सकता है ?'' यदि गौरी ने जैचंद को नहीं मारा होता तो शायद आज जैचंद भी विभीषण की तरह भारत में हिन्दुओं का एक उदात्त आदर्श होता। अवैज्ञानिक हिंदुत्व वादियों की यही मानसिकता भारत की बर्बादी का कारण है।
खैर ये तो सभ्यताओं के उत्थान-पतन पर निर्भर है करता है कि कब कौनसी परम्परा का अनुपालन होगा। लेकिन इन दिनों भारत में छद्म 'हिन्दुत्ववादी और अम्बानी-अडानी जैसे लोगों का शासन है। जनता की समस्याओं से ध्यान भटकाकर ,अरुण जेटली बनाम कीर्ति आजाद के पाखंडपूर्ण द्वंद को खूब बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। लेकर इसमें भाजपा और संघ परिवार की खूब किरकिरी भी हो रही है। भाजपा के इस अंदरुनी कलह से उनके नेताओं का वास्तविक चरित्र भली -भाँति हिलोरें ले रहा है। 'संघ' और भाजपा के अंतिम निर्णय पर कार्यकर्ताओं की निगाहें टिकी हैं। अब देखने की बात ये हैं कि भाजपा के इस 'यादवी' संघर्ष में 'संघ' द्वारा जैचंद वाला फार्मूला लागू किया जाएगा या विभीषण वाला ? बहुत संभव है कि बेईमान भृष्ट दबंग नेता जो पूँजीवाद का पक्का भड़ैत है उसको हीरो मानकर और सच्चाई के लिए संघर्ष करने वाले को जैचंद मानकर 'बलराज मधोक , गोविंदाचार्य, बाघेला ,खुराना की तरह लतियाकर बाहर कर दिया जाए ? यदि संघ वाले याने हिंदुत्व वाले इस राह पर चलते हैं तो हिंदुत्व की परम्परा का यह घोर अपमान होगा।
क्योंकि ये तो इस्लामिक परम्परा है कि जो गद्दारी करे उसे 'नाप' दो ! हिन्दुत्ववाद तो विभीषण वाला रास्ता चुनता है । और उसके अनुसार तो कीर्ति आजाद को ही हीरो माना जाना चाहिए.। वही तो आज विभीषण का भूमिका में हैं। संघ वाले यदि जेटली का साथ देंगे तो यह माना जाएगा कि उन्होंने विभीषण को श्रीराम भक्त न मानकर जैचंद मान लिया है और अब स्वाभाविक रूप से रावण को अपना आदर्श मान लिया है ! क्या यह हिन्दुत्ववादी दर्शन है। फिर तो श्री राम भी अवतार नहीं रहेंगे। तब उनके मंदिर की भी जरुरत नहीं है। अर्थात राम मंदिर निर्माण ,पादुका पूजन ,शिला पूजन और देश में साम्प्रदायिक उन्माद सत्ता प्राप्ति के साधन मात्र हैं . हिंदुत्व से इनका कोई लेना देना नहीं है। श्रीराम तिवारी
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