मालूम होता है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी औरअध्यक्षा सोनिया जी ने कांग्रेस को ही खत्म करने का बीड़ा उठाया है। ये माँ -बेटे जब -जब जो-जो कहते और करते हैं उससे भाजपा नेताओं ,संघ परिवार व मोदी सरकार को अपनी खामियाँ छिपाने का भरपूर अवसर मिलता रहता है। नेशनल हेराल्ड का मामला हो ,राबर्ट बाड्रा का मामला हो ,ओमन चांडी का मामला हो, या शैलजा और राहुल को तथाकथित मंदिर में प्रवेश का मामला हो ,कांग्रेस नेताओं का हर दाँव उलटा पड़ रहा है। वे निजी स्वार्थों की पूर्ती के लिए देश की संसद को भी बंधक बना रहे हैं। अब कोई प्रगतिशील बुद्धिजीवी ,साहित्यकार ,विचारक यदि कांग्रेस नेताओं की इस फितरत पर रंचमात्र एतराज न करे और केवल 'मोदी विरोध ' का खटराग गाता रहे या महज 'असहिष्णुता 'का मर्सिया ही पढता रहे ,तो देश में हिन्दुत्ववादी फासिज्म के अच्छे दिन क्यों नहीं आएंगे ? जरूर आयंगे ! और विकास - सुशासन की प्रचंड सुनामी के अधिनायकवादी सैलाब आने पर तंत्र -मन्त्र सब धरा रह जाएगा। तब
कांग्रेस की मनोदशा कुछ इस तरह होगी - :-
जिन दिन देखे वे कुसुम ,गइ सो बीत बहार।
अब अलि रहो गुलाब में ,अपत कटीली डार।। [ बिहारी सतसई से साभार ] श्रीराम तिवारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें