जनाब तारिक फतह के बारे में पहले कभी पढ़ने-सुनने में नहीं आया। इस साल -२०१५ की दीपावली के आस - पास जरूर वे भारतीय मीडिया पर बहुत छाये रहे। विगत माह ही मध्यप्रदेश में एक गुमनाम सी आंचलिक साहित्यिक संस्था 'इंदौर लिट्रेचर फेस्टिवल 'द्वारा आयोजित सेमीनार एवं पुस्तक विमोचन के साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए तारिक फतह इंदौर आये हुए थे । इस कार्यक्रम में जावेद अख्तर शबाना आजमी ,निर्मला भुराड़िया इत्यादि नामचिन्ह हस्तियां भी मौजूद थीं। इस अवसर परतारिक फतह ने अपने बारे में उन्होंने खुद ही बताया कि वे मूलतः तो पाकिस्तानी हैं। १९८० के दशक में जब पाकिस्तान के महा बदनाम फौजी तानाशाहों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले तेज किये तो जनाब तारिक फतह पाकिस्तान छोड़ कर कनाडा जा वसे। उनके अनुसार उस कठिन दौर में पाकिस्तान में न केवल अल्पसंख्यक हिन्दुओं,सिखों ईसाइयों और शियाओं पर बल्कि पाकिस्तान की अन्य क्षेत्रीय राष्ट्रीयताओं पर भी भयानक अत्याचार किये गए। पाकिस्तान के प्रगतिशील बुद्धिजीवियों और धर्मनिरपेक्ष विचारकों तथा मेहनतकश वर्ग के जन संगठनों पर भी बर्बर अत्याचार किये गए। तारिक फतह जैसे अनेक लोगों ने उस दौर में पाकिस्तान के फौजी तानाशाहों और कटट्रपंथी मजहबी कठमुल्लों की 'असहिष्णुता' का वीभत्स और नग्न रूप बहुत नजदीक से देखा है।
उन्होंने बताया कि किस तरह तत्कालीन निरंकुश शासक जिया-उलहक की तानाशाही का प्रतिरोध और जम्हूरियत की पैरवी का खामियाजा - पाकिस्तान के साहित्यकारों ,बुद्धिजीवियों और प्रगतिशील अमनपसंद आवाम को भुगतना पड़ा। जिन्होंने भी बर्बर फौजी शासकों के जुल्मों का यथासंभव प्रतिकार किया वे जमींदोज कर दिए गए। तब पाकिस्तान के हिन्दू-सिख , ईसाई ,शिया,सिंधी,बलूच और मुहाजिर चुन-चुन कर मार दिए गए। वैश्विक छितिज पर तब शीत युध्द का संध्याकाल चल रहा था । सोवियत संघ के नेतत्व की गंभीर भूलों के परिणाम स्वरूप ,दुनिया भर में अमेरिका के लिए मैदान खाली छोड़ दिया गया । तभी अफगानिस्तान में पाकिस्तान और अमेरिका के समर्थन से इस्लामिक आतंकी कोहराम मचा रहे थे। अफगानिस्तान में जनता द्वारा चुनी गयी लोकतांत्रिक सरकार के प्रधान मंत्री नजीब को बिजली के खम्बे पर टांगकर फांसी दे दी गयी। सारी दुनिया के अमनपसंद और मेहनतकश लोग हैरान थे। अमेरिका के साथ दुनिया के सरमायेदार ,हथियार उत्पादक देश ,फौजी तानाशाह और पाकिस्तान की आईएस ,तालिवान - गलबहियाँ डाले खड़े थे। तब भारत को तथा कश्मीर में हिन्दुओं [पंडितों] को बर्बाद करने के मंसूबे गढे जा रहे थे।
जनाब तारिक फ़तेह ने फरमाया कि तब अमेरिका के साथ पाकिस्तानी फौजियों की बड़ी गहरी दोस्ती थी। अतः पाकिस्तानी हुक्मरानों के अत्याचारों को पश्चिमी मीडिया ने जानबूझकर बाहर की दुनिया तक आने ही नहीं दिया। किन्तु जो लोग जान बचाकर यूरोप - इंग्लैंड ,जर्मनी ,कनाडा ,फ्रांस में जा बसे ,उनमें ये तारिक फतह जैसे दिल जले हजारों थे। उनके साथ हुए खौफनाक उत्पीड़न को वे इन विगत ३०-३५ सालों में भी नहीं भूल पाये। और भूल पाने की उम्मीद भी नहीं है।यही वजह जब भी दुनिया में कोई आतंकवादी हमला होता है या साम्प्रदायिक उन्माद जनित संघर्ष छिड़ता है तो ये भुक्तभोगी लोग उनकी दर्द भरी दास्ताँ सुनने का माद्दा रखते हैं। बाज मर्तबा पाकिस्तान में प्रगतिशील आवाम और खास तौर से हिन्दुओं का क्रमिक खात्मा व अकलियत की दुर्दशा का वर्णन करते हुए तारिक फतह भावुक हो उठते हैं। उनका यह आचरण महज श्मशान वैराग्य नहीं हो सकता । वे अपनी कनाडा में प्रकाशित कुछ पुस्तकों के संदर्भ भी कोड करते हैं। आज के हालात भी यह तस्दीक करते हैं कि तारिक फतह जो कुछ भारत में बोल रहे हैं ,वह उन्होंने अमेरिका पाकिस्तान ,इंग्लैंड और कनाडा में भी कई बार दुहराया है।यही वजह है कि उनपर कई बार असफल आतंकी हमले भी हुए हैं।
ऐंसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी -पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक -विचारक -अध्येताऔर धर्मनिरपेक्षता के तलबगार - जनाब तारिक फतह साहिब विगत दिनों जब भारत भ्रमण पर आये तो मुंबई ,दिल्ली ,इंदौर तथा अन्य शहरों में अधिकांस साहित्यकारों ने उन्हें हाथों हाथ लिया। विभिन्न सेमिनारों और कन्वेशंस के माध्यम से तारिक फ़तेह साहिब ने अपने विचार निर्भयतापूर्वक रखे। आधुनिकतम मीडिया और टीवी चेनल्स पर भी बिना लॉग लपेट के उन्होंने पाकिस्तान के पापों का पुरजोर बखान किया है । जनाब तारिक फतह जब किसी मंच से इस्लामिक आतंकवाद की भर्तस्ना करते तो उनकी खूब वाहवाही होती। वे जब कभी पाक प्रायोजित आतंकवाद को आईएसआईएस वाले आतंकवाद से भी ज्यादा खतरनाक बताते तो दक्षिणपंथी हिन्दुओं का जी जुड़ाने लगता। वे इस्लाम के फलसफे पर ,मानवीय मूल्यों के निर्धारण पर ,मध्ययुगीन बर्बर कबीलाई दौर की जंगखोरी पर ,इस्लामिक खलीफाओं की ऐयाशी पर जब बोलते हैं तो वे सलमान रश्दी को भी मात करते दिखाई देते हैं। उनकी साफगोई से तो लगता ही नहीं कि वन्दे का इस्लाम से भी कुछ वास्ता है !
तारिक फतह जब मुहम्मद -बिन कासिम के क्रूरतम हमलों से लेकर ,दाहिरसेन की सपरिवार नृशंस हत्या का जिक्र करते हैं तो लगता है कि कोई 'संघ'का बौद्धिक हिन्दुत्ववादी इतिहास दुहरा रहा है। जनाब तारिक फतह साहिब न केवल गौरी ,गजनवी ,चंगेज,तैमूर ,तुगलक ,बाबर और ओरंगजेब की खबर लेते हैं ,बल्कि वे तो आधुनिकतावादी जिन्ना की भी कब्र खोदने से नहीं चूकते। वे भारत -पाकिस्तान की आवाम के डीएनए को 'आर्यों ' की परम्परा से जोड़ते हैं। वे पाकिस्तान के निर्माण और अस्तित्व पर भी सवाल उठाते हैं। वे मुस्लिम लीग को कोसते हैं । वे हर मंच से हर बक्त -मुक्त कंठ से बिना किसी लॉग लपेट के इस्लामिक आतंकवाद को 'गैर इस्लामिक' गैर जेहादी फरमाते हैं ! लगे हाथ भारत को और हिन्दुओं को सहिष्णुता का वैश्विक आदर्श बताते जाते हैं। उनके भाषणों से लगता है कि वे शायद भारत आकर अपने हिन्दू मेजवानों का शुक्रिया अदा कर रहे हैं ! गनीमत यह रही कि किसी श्रोता ने यह नहीं कहा कि एक 'मुसलमान भी हिन्दुओं का खैरख्वाह हो सकता है !
इंदौर में तारिक फ़तेह की इन अदाओं पर फ़िदा होकर एक तुकबंदी बाज स्वयंभू वीर रस के संघी कवि ने मंच से कुछ राजनैतिक नारों जैसी तुकबंदी पेश कर डाली। उनका तातपर्य था कि - धर्मनिरपेक्षता वालो सुनों !असहिष्णुता पर धमाल मचाने वालो सुनो ! प्रगतिशील धर्मनिरपेक्षता -वामपंथ वालो सुनों ! सम्मान पदक वापिसी वालो सुनों ! विचारक -लेखक -बुद्धिजीवियों सुनों ! अल्पसंख्यकों के चिंतको सुनों ! सब सुनों ! 'अब तो एक कटटर सुन्नी मुसलमान खुद ही वयां कर रहा है कि''हिन्दू तो पैदायशी सहिष्णु हुआ करते हैं।"
तारिक फ़तेह से जब पूँछा जाता है कि भारत में 'मोदी सरकार ' के सत्ता में आने के बाद हिन्दुत्ववादियों की तथाकथित 'असहिष्णुता ' के बारे में आपकी क्या राय है ? तो उनका जबाब होता है कि 'हिन्दुओं में तो इस असहिष्णुता का डीएनए है ही नहीं '! उनके मतानुसार भारत के हिन्दू और मुसलमान दुनिया में सबसे ज्यादा सहिष्णु हैं। स्वाभाविक है कि उनकी यह पवित्रवाणी सुनकर उपस्थित श्रोताओं में से कुछ लोग खूब तालियाँ पीटने लगते हैं। उनसे अवार्ड लौटने वालों ,सहिष्णुता पर सवाल उठाने वालों के बारे में जब सवाल किया गया तो तारिक फ़तेह ने वही फ़रमाया जो संघ या भाजपा का प्रवक्ता कह चुका होता है ! मुझे शंका हुयी कि हो न हो यह व्यक्ति जरूर संघ' प्रशिक्षित एनआरआई हिन्दू होगा। वरना कोई गैर नमाजी मुसलमान यहाँ तक की घोर नास्तिक सलमान रश्दी भी इतनी इकतरफा आलोचक नहीं कर सकता । कुछ लेखकों - साहित्यकारों से इस बाबत तस्दीक किया तो पता चला कि वंदा सात पुश्तों से सौ फीसदी- पक्का मुसलमान है। चूँकि उन्होंने पाकिस्तान को और दुनिया को ठीक से नजदीक से देखा है और खुद उन्होंने पाकिस्तान में बहुत आफत झेली है इसलिए वे हिन्दुओं के प्रति 'सहिष्णु' हैं। जैसे कि भारत के कई सच्चे हिन्दू -खास तौर से वामपंथी विचारक और लेखक हिन्दू[-मुसलमान दोनों के प्रति सहिष्णु हैं।
चूँकि तारिक फ़तेह तालीम याफ्ता थे. इसलिए पाकिस्तान से भागकर कनाडा में बचाई। वहाँ काम मिल गया और नागरिकता भी । यदि अपढ़ अशिक्षित पाकिस्तानी रहे होते तो आज वेकारी के कारण दहशतगर्दो के साथ होते । वे कसाब होते या नावेद होते ! यह भी सम्भव होता कि वो आईएसआईएस में शामिल होकर इस समय सीरिया ,इराक ,फ़्रांस , अफ्रीका या केलिफोर्निया पर बम फेंक रहे होते। वे इराक में सूडान में या किसी दारुल हरम में बोको हरम हो रहे होते। वे जेहाद के नाम पर निर्दोषों क गले रेत रहे होते !
अपनी आपबीती में तारिक फतह ने यह भी बताया कि पाकिस्तान में उनपर देशद्रोह का मुकदद्मा थोप दिया गया था।उन्होंने कनाडा भाग कर अपनी जान बचाई। और विगत ३५ सालों से वे कनाडा के ही नागरिक हैं। उनके व्यक्तित्व की तीन खास विशेषतायें जो मैने नोट की हैं उन्हें इस आलेख के मार्फ़त सभी मित्रों से शेयर करना चाहूँगा। तारिक फ़तेह की तीन स्थापनाएं बड़ी प्रचंड और विमर्श के योग्य हैं। वे इस्लाम के आलिम विद्वान हैं ,अंग्रेजीदां हैं। भारत -पाकिस्तान के संयुक्त इतिहास पर उनकी मजबूत पकड़ है।
एक -तारिक फतह दुनिया के शायद पहले पाकिस्तानी [अब कनाडाई]जिन्दा मुसलमान हैं जो मानते हैं कि इस दुनिया में 'हिन्दुओं' से ज्यादा सहिष्णु कोई और कौम या मजहब हो ही नहीं सकता। अर्थात तारिक फतह साहिब का कथन है कि हिंदुत्व में कटटरता का डीएनए ही नहीं है । तथाकथित कटटरतावादी संगठन और उनकी साम्प्र्दायिकतावादी राजनीति के कारण हिन्दुओं को जाति -खाप में उलझाया जाता रहा है। अब वोट के लिए ध्रवीकृत किया जा रहा है।
दो -अतीत में ऐंसे बहुतेरे उदाहरण हैं ,जिसमें हिन्दू,मुसलमान और अन्य कई लोगो ने 'राष्ट्र विभाजन'अर्थात पाकिस्तान के निर्माण को ही 'नाजायज' माना है । उनमें सबसे पहले नाम आता है स्वेर्गीय सीमान्त गाँधी याने जनाब 'अब्दुल गफ्फार खान साहिब। ततकालीन साम्यवादियों ने भी अखंड भारत की एकता की वकालत की थी। किन्तु मुस्लिम लीग और कांग्रेस की वैमनस्यता ने मामले को उस अंजाम तक पहुंचा दिया था जहाँ से लौटना नामुमकिन था।याने कि पाकिस्तान रुपी राष्ट्र के रूप में शैतान का उदय।
:श्रीराम तिवारी :
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