दिल्ली के अलवेले मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल बहुत फड़फड़ा रहे हैं। केजरीवाल और इनके साथियों को केंद्र की सत्तारूढ़ 'मोदी सरकार' के सौतेले व्यवहार से ढेरों शिकायतें हैं। लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग और दिल्ली पुलिस के असहयोग की बातें तो अब तक पुरानी हो चुकी हैं। अब तो दिल्ली के विकास और प्रगति के लिए केंद्र से कानी-कौड़ी नहीं मिलने का भी ज्वलंत सवाल है। इसके साथ ही प्रधान सचिव के बहाने खुद केजरीवाल के आफिस पर सीबीआई के छापे ने 'आप' को 'करो या मरो 'की स्थिति में ला दिया है।
केजरीवाल को मालूम हो कि वे तो पराये हैं। केंद्र -राज्य संबंधों पर राजनैतिक सौतेले व्यवहार की सनातन - कांग्रेसी परम्परा इतनी जल्दी कैसे लुप्त होगी ? केजरीवाल को यदि सौतेले व्यवहांर की मिसाल देखना है तो वे 'मोदी जी के सगोत्रीय -'संघी साथी' मध्यप्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान के दर्देदिल पर भी जरा गौर फरमाएं ! मोदी सरकार के विगत डेड सालाना कार्यकाल में , केंद्र से मध्यप्रदेश को आर्थिक मदद के मामले में , मुख्य मंत्री शिवराजसिंह चौहान को जितना रुसवा होना पड़ा ,उसके सामने केजरीवाल की दुर्गति या दिल्ली राज्य को आर्थिक सहयोग की शिकायत पासंग जितनी भी नहीं है। लोग पूंछ रहे हैं कि जो सगों के नहीं हुए वे गैरों के क्या होंगे ?जब शिवराज की ही बखत नहीं तो केजरीवाल की क्या औकात ?
"विचारशील लोगों का एक छोटा सा समूह भी दुनिया को बदल सकता है। वास्तव में दुनिया जब भी बदली है ,इन्ही लोगों के द्वारा बदली है ": मारग्रेट मीड
नई दुनिया अखवार की खबर है दुनिया के सबसे धनी तानाशाह - शासक ब्रूनेई के सुलतान हसनल बोल्किया ने फ़रमान जारी किया है कि उनके देश में यदि कोई भी नागरिक क्रिसमस मनाते हुए पाया गया तो पांच साल की जेल होगी। उन्होंने न केवल ईसाइयों को आदेशित किया है , बल्कि मुस्लिम समुदाय को भी पावंदी है कि वे ईसाइयों को किसी तरह की बधाई इत्यादि नहीं दें। यदि किसी मुस्लिम ने किसी ईसाई को मुबारकवाद दी तो उसे भी जेल भेज दिया जाएगा ।
भारत में कोई भी किसी भी धर्म मजहब का नागरिक - कभी भी - कहीं भी धर्म - मजहब का त्यौहार मनाने के लिए आजाद है। जिन मजहबी लोगों को लगता है कि भारत में बहुत नाइंसाफी हो रही है ,वे अपनी जानकारी अपडेट कर लें। रही बात 'बीफ' खाने की मनाही या पाबंदी की अथवा लाऊड स्पीकर लगाकर मंदिर-मस्जिद से चिल्लाने की ,भड़काने की तो उसके लिए भारत में धर्मान्धता की अति हो चुकी है। वास्तव में भारत की समस्या 'असहिष्णुता' नहीं है। बल्कि समस्या यह है कि धर्म-मजहब के नाम पर जरुरत से ज्यादा पाखंड और अंधश्रद्धा का बोलवाला है। इस पर रोक लगनी चाहिए। सभी धर्म-मजहब केवल झगड़ा फसाद की बात करते हैं। उन्हें राष्ट्रीय एकता और सामाजिक -आर्थिक असमानता से कोई मतलब नहीं ! धर्म-मजहब के आपसी झगड़ों के बहाने आतंक का शैतान भी भारत में घुसपैठ कर चुका है। यह न केवल राष्ट्रीय अखंडता के लिए घातक है बल्कि जनवादी क्रांति के मार्ग में रोड़े भी अटका रहा है। श्रीराम तिवारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें