असहिष्णुता के मुद्दे पर देश के ग्रह मंत्री राजनाथ सिंह पर गलत निशाना साधकर ,कामरेड मोहम्मद सलीम ने अनजाने में राजनाथ जी पर एक उपकार तो अवश्य किया है। अभी तक सत्ता प्रतिष्ठान में एक ही हीरो याने श्री मोदी जी ही थे। किन्तु मोहम्मद सलीम ने तो मानों राजनाथसिंह को ताकत का इंजेक्शन ही दे दिया । जैसे कोई चुके हुए कारतूस में पुनः बारूद भरकर फिर से जीवित कर दे , उसी तरह कामरेड मोहम्मद सलीम ने राजनाथ जी को पुनः ऊर्जावान बना दिया है। 'आउट लुक' की उस वासी खबर को - जो अशोक सिंघल के लिए सच होते हुए भी राजनाथ के लिए सही नहीं थी ,कामरेड सलीम ने वयां कर राजनाथ को शक्ति-स्फूर्ति प्रदान करने में मदद की है। इसीलिये राजनाथ ने सलीम के बहाने अपने ही प्रतिदव्न्दियों को ललकारते हुए कहा - ऐंसा वयान [जैसा अशोक सिंघल ने दिया ] देकर कोई देश का ग्रह मंत्री नहीं रह सकता । किसी भी सत्यनिष्ठ देशवासी को राजनाथ के इस वयान की तारीफ करने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए !
एनडीए ,भाजपा और संघ परिवार की विचारधारा वेशक घोर दक्षिणपंथी और अवैज्ञानिक है। किन्तु लेफ्ट फ्रंट को संसद में या सड़कों पर 'असहिष्णुता' के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ कदापि नहीं दिखना चाहिये ! बंगाल और केरल के चुनावों में लेफ्ट को कांग्रेस के छल-बल ने ही बार-बार नुक्सान पहुँचाया है। कांग्रेस की गलत आर्थिक नीतियों और उसके भृष्ट नेताओं की वजह से ही 'मोदी सरकार' केंद्र की सत्ता में आई है। हिंदुत्व का मसला तो भाजपा द्वारा केवल वोटों के ध्रुवीकरण के लिए ही उठाया जाता रहा है। यदि अयोध्या में 'रामलला ' जू का मंदिर बनाना होता तो कब का बन गया होता। अब कोर्ट -कचहरी का तो बहाना भर है , वर्ना मस्जिद गिराते समय क़ानून की याद किसे आयी ? साम्प्रदायिकता के सवाल पर,आतंकवाद के सवाल पर या 'हिंदुत्व' के विमर्श पर वामपंथ को कांग्रेस , सपा,जद्यू ,ममता की तरह पेश नहीं आना चाहिए ! बल्कि देश की मेहनत काश आवाम के एक क्रांतिकारी हरावल दस्ते की तरह पेश आना चाहिए !
वेशक इंसान गलतियों का पुतला है। गलती किसी से भी हो सकती है। मार्क्स ,लेनिन और स्टालिन ने भी स्थापनाएं दीं हैं कि 'क्रांतिकारी विचारधारा के जन संगठनों को ,उनके अग्रगामी नेतत्व को अपनी भूलों से निरंतर सीखना चाहिए । उन्हें नैतिक रूप से यथार्थवादी होना चाहिए। अर्थात असत्य का किंचित भी सहारा नहीं लिया जाना चाहिये। यदि अनजाने में भी असत्याचरण किया गया तो भी त्रुटि निवारण की गुंजायश होनी चाहिए। वरना क्रांति नहीं बल्कि भ्रान्ति का ही बोलबाला होगा।
जब मेरे जैसे मामूली भूतपूर्व ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता को यह माँलूम है कि ' गुलामी के ८०० सौ साल' वाली बात स्वर्गीय अशोक सिंघल ने कही थी। तब देश के ४० करोड़ मजदूरों-किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाली महान क्रांतिकारी पार्टी के सर्वोच्च फोरम - सीपीएम पोलिट व्यूरो के विद्वान क्रांतिकारी साथी कॉमरेड मोहम्मद सलीम से चूक होना अत्यंत निराशाजनक है। अशोक सिंघल तो अब रहे नहीं। राजनाथ जी भी धर्मनिरपेक्षता , समाजवाद और लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्ध हैं। किन्तु वामपंथ को अपने कामरेड सलीम की अनजाने में की गयी मामूली भूल को धूल में उड़ाने के बजाय अपनी वैचारिक समृद्धि की छलनी से साफ़ करते जाना चाहिए। यही असल क्रांतिकारी आचरण होगा। वैसे भी जिसआउट लुक पत्रिका का हवाला देकर कामरेड मोहम्मद सलीम ने श्री राजनाथसिंह पर निशाना साधा -उसने ही खुद अपनी गलती मान ली है। खेद जताया है। अब सरकार की जिम्मेदारी है कि उस पत्रिका पर उचित कार्यवाही करे । कामरेड सलीम को भी अपने कथन में 'राजनाथ ' की जगह अशोक सिंघल कर देना चाहिए !श्रीराम तिवारी !
एनडीए ,भाजपा और संघ परिवार की विचारधारा वेशक घोर दक्षिणपंथी और अवैज्ञानिक है। किन्तु लेफ्ट फ्रंट को संसद में या सड़कों पर 'असहिष्णुता' के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ कदापि नहीं दिखना चाहिये ! बंगाल और केरल के चुनावों में लेफ्ट को कांग्रेस के छल-बल ने ही बार-बार नुक्सान पहुँचाया है। कांग्रेस की गलत आर्थिक नीतियों और उसके भृष्ट नेताओं की वजह से ही 'मोदी सरकार' केंद्र की सत्ता में आई है। हिंदुत्व का मसला तो भाजपा द्वारा केवल वोटों के ध्रुवीकरण के लिए ही उठाया जाता रहा है। यदि अयोध्या में 'रामलला ' जू का मंदिर बनाना होता तो कब का बन गया होता। अब कोर्ट -कचहरी का तो बहाना भर है , वर्ना मस्जिद गिराते समय क़ानून की याद किसे आयी ? साम्प्रदायिकता के सवाल पर,आतंकवाद के सवाल पर या 'हिंदुत्व' के विमर्श पर वामपंथ को कांग्रेस , सपा,जद्यू ,ममता की तरह पेश नहीं आना चाहिए ! बल्कि देश की मेहनत काश आवाम के एक क्रांतिकारी हरावल दस्ते की तरह पेश आना चाहिए !
वेशक इंसान गलतियों का पुतला है। गलती किसी से भी हो सकती है। मार्क्स ,लेनिन और स्टालिन ने भी स्थापनाएं दीं हैं कि 'क्रांतिकारी विचारधारा के जन संगठनों को ,उनके अग्रगामी नेतत्व को अपनी भूलों से निरंतर सीखना चाहिए । उन्हें नैतिक रूप से यथार्थवादी होना चाहिए। अर्थात असत्य का किंचित भी सहारा नहीं लिया जाना चाहिये। यदि अनजाने में भी असत्याचरण किया गया तो भी त्रुटि निवारण की गुंजायश होनी चाहिए। वरना क्रांति नहीं बल्कि भ्रान्ति का ही बोलबाला होगा।
जब मेरे जैसे मामूली भूतपूर्व ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता को यह माँलूम है कि ' गुलामी के ८०० सौ साल' वाली बात स्वर्गीय अशोक सिंघल ने कही थी। तब देश के ४० करोड़ मजदूरों-किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाली महान क्रांतिकारी पार्टी के सर्वोच्च फोरम - सीपीएम पोलिट व्यूरो के विद्वान क्रांतिकारी साथी कॉमरेड मोहम्मद सलीम से चूक होना अत्यंत निराशाजनक है। अशोक सिंघल तो अब रहे नहीं। राजनाथ जी भी धर्मनिरपेक्षता , समाजवाद और लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्ध हैं। किन्तु वामपंथ को अपने कामरेड सलीम की अनजाने में की गयी मामूली भूल को धूल में उड़ाने के बजाय अपनी वैचारिक समृद्धि की छलनी से साफ़ करते जाना चाहिए। यही असल क्रांतिकारी आचरण होगा। वैसे भी जिसआउट लुक पत्रिका का हवाला देकर कामरेड मोहम्मद सलीम ने श्री राजनाथसिंह पर निशाना साधा -उसने ही खुद अपनी गलती मान ली है। खेद जताया है। अब सरकार की जिम्मेदारी है कि उस पत्रिका पर उचित कार्यवाही करे । कामरेड सलीम को भी अपने कथन में 'राजनाथ ' की जगह अशोक सिंघल कर देना चाहिए !श्रीराम तिवारी !
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