भारत में जिन लोगों ने धर्मनिरपेक्षता ,समाजवाद और लोकतंत्र का झंडा मजबूती से थमा रखा है और इन मूल्यों के लिए क़ुर्बानियाँ दे रहे हैं ,उनमे वामपंथी सबसे आगे हैं। इसके विपरीत जो लोग संविधान के मूल सिद्धांत-धर्मनिरपेक्षता समाजवाद और लोकतंत्र को ध्वस्त करने की निरंतर फिराक में रहते हैं ,उनमे घोर जातीयतावादी और असहिष्णु -साम्पर्दयिकतावादी संगठन सबसे आगे हैं। भारत राष्ट्र का चीर हरण करने वालों में अकेले भृष्ट पूँजीपति और भृष्ट अधिकारी ही जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि हिन्दू-मुस्लिम -सिख -ईसाई सभी मजहब-धर्म के धर्मांध लोग भी पर्याप्त रूप से जिम्मेदार हैं। भारतीय आधुनिक राजनीति में जातिवाद और साम्प्रदायिकतावाद का इस्तेमाल करने वाले स्वार्थी नेता और पार्टियाँ भी प्रकारांतर से एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। अब तक कुछ लोग सिर्फ संघ परिवार या हिन्दुत्ववादियों को ही 'असहिष्णुता' के लिए जिम्मेदार मानते रहे हैं। लेकिन यह अर्ध सत्य वाला पक्षपाती सिद्धांत ही है। संघ वाले वेशक पूँजीपतियों के दलाल तो हो सकते हैं ,किन्तु वे देश के खिलाफ तो अवश्य नहीं हैं। जबकि ममता,मुलायम,लालू मेहबूबा व अन्य क्षेत्रीय नेताओं की साम्प्रदायिक राजनीति का कोई ओर -छोर ही नहीं है। यह एक तर्कपूर्ण और वैज्ञानिक युक्ति नहीं कही जा सकती कि केवल हिंदूवादी होने मात्र से किसी को साम्प्रदायिक या आईएसआईएस के बराबर खड़ा कर दिया जाए और सिर्फ मुसलमान होने मात्र से कोई देशद्रोही करार कर दिया जाए । सापेक्ष सत्य ही इस विषय में न्याय का अवलम्ब है।
पाकिस्तानी मूल के लेखक और कनाडाई नागरिक तारिक फ़तेह के अनुसार -सीरिया ,ईराक ,तुर्की और मध्यपूर्व के इस्लामिक देशों पर आईएसआईएस की अराजक और रक्तरंजित सत्ता का जबरजस्त असर है। सूडान,तंजानिया और उत्तर-मध्य अफ़्रीकी देशों में बोको हरम का कहर है।यमन और इथोपिया में अल -कायदा की पकड़ है। अफगानिस्तान और सीमान्त पाकिस्तान में तालिवान की जकड़ है। हमास की फिलिस्तीन , इस्रायल ,जॉर्डन और लेबनान में पकड़ है। पाकिस्तान में आईएस की नापाक पकड़ है। बँगला देश ,फिलीपींस ,उज्बेकिस्तान,कजाकिस्तान,तुर्कमेनिस्तान ,इजिप्ट, और सऊदी अरब में सिर्फ और सिर्फ कटटरपंथी भटकाववादी इस्लामिक जेहादियों ने अमन पसंद आवाम का ,लोकतंत्र का और इंसानियत का गला दबोच रखा है। गैर इस्लामिक सन्सार में संभवतः भारत ही एकमात्र अहिंसावादी,लोकतान्त्रिक और 'बहु सांस्कृतिकतावादी देश है ,वे इस भृष्ट अफसरशाही और कायर नेतत्व वाले दुर्भाग्यशाली राष्ट्र पर निरंतर कुदृष्टि जमाये हुए हैं। जिभारत में जिन लोगों ने धर्मनिरपेक्षता ,समाजवाद और लोकतंत्र का झंडा मजबूती से थमा रखा है और इन मूल्यों के लिए क़ुर्बानियाँ दे रहे हैं ,उनमे वामपंथी सबसे आगे हैं। इसके विपरीत जो लोग संविधान के मूल सिद्धांत-धर्मनिरपेक्षता समाजवाद और लोकतंत्र को ध्वस्त करने की निरंतर फिराक में रहते हैं ,उनमे घोर जातीयतावादी और असहिष्णु -साम्पर्दयिकतावादी संगठन सबसे आगे हैं। भारत राष्ट्र का चीर हरणकरने वालों में अकेले भृष्ट पूँजीपति और भृष्ट अधिकारी ही जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि हिन्दू-मुस्लिम -सिख -ईसाई सभी मजहब-धर्म के धर्मांध लोग भी पर्याप्त रूप से जिम्मेदार हैं। भारतीय आधुनिक राजनीति में जातिवाद और साम्प्रदायिकतावाद का इस्तेमाल करने वाले स्वार्थी नेता और पार्टियाँ भी प्रकारांतर से एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। किन्तु कुछ लोग सिर्फ हिन्दुत्ववादियों को ही जिम्मेदार मानते हैं, यह तर्कपूर्ण और युक्तिपूर्ण नहीं है।
पाकिस्तानी मूल के लेखक और कनाडाई नागरिक तारिक फ़तेह के अनुसार -सीरिया ,ईराक ,तुर्की और मध्य पूर्व के इस्लामिक देशों पर आईएसआईएस की अराजक और रक्तरंजित सत्ता का जबरजस्त असरहै। सूडान, तंजानिया और उत्तर- मध्य अफ़्रीकी देशों में बोको हरम का कहर बरस रहा है।यमन और इथोपिया में अल-कायदा फुदक रहा है। अफगानिस्तानऔर सीमान्त पाकिस्तान में तालिवान बमक रहा है। हमास की खूनी होली फिलिस्तीन , इस्रायल ,जॉर्डन और लेबनान में खेली जा रही है। पाकिस्तान में आईएस की अजहर मसूद की ,हाफिज सईद की और दाऊद इब्राहीम की प्रत्यक्ष सत्ता है। बँगलादेश ,फिलीपींस ,उज्बेकिस्तान , चेचन्या कजाकिस्तान ,तुर्कमेनिस्तान ,इजिप्ट, और सऊदी अरब में सिर्फ और सिर्फ कटटरपंथी इस्लामिक जेहादियों की सत्ता हे। इन देशों में लोकतंत्र का और इंसानियत का गला घोंटा जा रहा है।
गैर इस्लामिक सन्सार में संभवतः भारत ही एकमात्र अहिंसावादी,लोकतान्त्रिक देश ऐंसा है जो इंडोनेशिया के बाद संसार की सर्वाधिक मुस्लिम बहुलता का देश है। जहाँ मुसलमानों को इस्लामिक अधिकार तो हैं ही साथ ही भारत के महानतम लोकतान्त्रिक अधिकार भी उपलंब्ध हैं। दुनिया में शायद ही इतनी आजादी और मजहब की छूट किसी अन्य देश में या किसी और मजहब को उपलब्ध होगी ! जिसे यह सब नहीं दिख रहा वो या तो बेईमान है या फिर नीरा कूड़मगज है। सत्य और न्याय के अभाव में सारी प्रगतिशीलता और लोकतांत्रिकता
महज शाब्दिक लफ्फाजी है। जिन्हे भारत के हिन्दुओं की कश्मीर ,बंगलादेश और पाकिस्तान में नहीं दिखती वे आँखों के होते हुए भी नाबीना ही हैं। इक्कीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में भारत दुनिया का सबसे असुरक्षित और भृष्ट देश बन चुका है। दुखी हिन्दुओं ने जिन्हे अपना रक्षक और तारणहार समझकर वोट दिए वे सिर्फ पूँजीवाद के भड़ैत हैं।
भारत की वर्तमान मोदी सरकार के काबू में कुछ भी नहीं है। न महँगाई उनके काबू में है ,ना रुपये के लुढ़कना उनके काबू में है ,न दाऊद ,हाफिज सईद,अजहर मसूद उनके काबू में हैं ,न व्यापम -अभिशापम इनके काबू में है न साम्प्रदायिक उन्माद इनके काबू में है, न कश्मीर उनके काबू में है ,न बड़बोले नेता -मंत्री उनके काबू में है और न 'सबका साथ -सबका विकास 'उनके काबू में है। यह देश जितना भी चल रहा है अथवा सरवाइव कर रहा है, वह डार्विन के 'प्राकृतिक न्याय 'के सिद्धांत अनुसार खुद ही गतिशीलऔर जीवंत है। अधिकांस मुनाफाखोर स्वार्थी पूँजीपति, सट्टाखोर व्यापारी ,रिश्वतखोर अफसर,मजदूरों का खून चूसने वाले ठेकेदार और भृष्ट नेता-अशक्त मंत्री इस राष्ट्र रुपी स्वर्ण कलश में अपने -अपने हिस्से का कूड़ा कर्कट भरे जा रहे हैं। जनता को गलफहमी है कि उनके राष्ट्र रुपी कुम्भ में अमृत भरा जा रहा हैं।
इन दिनों समूचे उत्तर भारत में और खास तौर से कश्मीर और बंगाल में तथाकथित जेहादियों ने खूब ऊधम मचा रखा है।ममता बनर्जी की साम्प्रदायिक राजनीति का चरम पतन देखकर संघी और आईएसआईएस वाले भी शर्मा रहे होंगे। कोलकाता के मटिया बुर्ज इलाके में स्थित तालपुर आरा मदरसे के हेड मास्टर क़ाज़ी मासूम अख्तर और उनके छात्रों के साथ कटटरपंथी मुस्लिम भीड़ ने मारपीट की है! वजह सिर्फ इतनी कि मदरसे में 'राष्ट्रगान' क्यों गाया जाता है ? खबर है कि काजी साहब पर फर्जी इल्जाम लगाकर उन्हें मदरसे से भी निकाल दिया गया है। ममता बनर्जी इस अन्याय पर चुप हैं ,क्योंकि विधान सभा चुनाव होने वाले हैं। शुद्ध टैक्टिकल पॉलिसी वाले अल्पसंख्यक वोट ही तो उसका आधार है। फर्ज करें कि बंगाल में इस समय पाखंडी ममता बनर्जी का नहीं बल्कि सीपीएम का शासन है ,तो इस देशद्रोह के लिए [वन्दे मातरम न गाने देने के लिए ] अब तक ममता बनर्जी ने सड़कों पर कई साड़ियां फाड़ दीं होतीं। और दीदी के कई अनुजवत संघियों ने हावड़ा ब्रिज से कूंदकर जान दे दी होती या 'वामपंथ ' का फातिहा पढ़ डाला होता ! यह साम्प्रदायिक राजनीति का दोगलापन नहीं तो और क्या है ?
पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी सिर्फ बंगाल में ही क्यों सुनाई दे रही है ?वहाँ तो इस्लाम की हिफाजत के लिए ममता बनर्जी मौजूद है। आजादी के बाद पश्चिम बंगाल में जब सीपीएम का शासन रहा तब तक साम्प्रदायिक दंगे क्यों नहीं हुए? जब सीपीएम के शासन में हिन्दू-मुस्लिम बराबर के साझीदार थे और किसी का धर्म -मजहब खतरे में नहीं था। तब हिन्दू मध्यमवर्ग और बुर्जुवा मुसलमान ममता के साथ क्यों चले गए ? क्या अब बंगाल में हिन्दू -मुसलमान सुरक्षित हैं ? यदि हाँ तो मालदह जिले के कालियाचक इलाके में साम्प्रदायिक तनाव क्यों है ? पूरे बंगाल में हिंसा आगजनी क्यों हो रही है ? केंद्रीय ग्रह मंत्री को आग बुझाने क्यों जाना पड़ रहा है ?
बड़ी बिडंबना है कि भारत के वाम-जनवादी ,प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्षतावादी लोग जो लगातार इन जाहिल साम्प्रदायिक ताकतों से संघर्ष रहे हैं, वे ही क्रांतिकारी वामपंथी साथी 'संघ परिवार' और उनके उच्श्रंखल कूप-मण्डूकों की आँखों में खटक रहे हैं। संकीर्ण मानसिकता के लम्पट उदंडों को लाल झंडा और वामपंथ के नाम से बड़ी नफरत है। मानों उनकी कोई व्यक्तिगत खुन्नस हो ! उनकी इसी सनातन नफरत का नाम फासिज्म है। इन दिनों पूरे बंगाल में , खास तौर से कोलकता में ममता बनर्जी के नमाज पढ़ते हुए पोस्टर लगे हुए हैं । देशभक्ति के ठेकेदारों को वह नहीं दिखता ! यह जाहिर है कि अच्छी-बुरी जैसी भी हो किन्तु भारत में कांग्रेस , भाजपा और वामपंथ के पास अपनी-अपनी विचारधारा तो अवश्य है। किन्तु मुलायमसिंह,मायावती,लालू,और ममता बनर्जी को केवल ही हाथ है। चूँकि इन नेताओं के पास कोई विचारधारा नहीं है। क्योंकि ये लोग मुस्लिम अल्पसंख्यक वोट बैंक के सहारे ही जिन्दा है। यह सावित करने को हमारे पास कुछ नहीं। हमे नहीं मालूम कि कि भारत के हिन्दू संगठनों ने भारत में या किसी भी इस्लामिक देश में ऐंसा क्या गजब ढाया कि उन्हें इस्लामिक आतंक के समक्ष बराबरी पर खड़ा कर दिया। क्या आईएसआईएस या अल कायदा से आरएसएस की तुलना करना जायज है
इस तथ्य के सैकड़ों प्रमाण हैं की सुन्दर-सुंदर हिन्दू-सिख-ईसाई युवतियाँ -मुस्लिम राजनेताओं -खान्स जैसे फ़िल्मी अभिनेताओं और दाऊद -अबु सालेम जैसे जाहिलों के झांसे में आकर उनकी अंकशायनी होने को मजबूर हो जाया करती हैं। इसके उलट मुस्लिम युवतियाँ स्वेच्छा से ही आईएसआईएस ,अल कायदा , बोको -हरम ,तालिवान और हमास के मुस्लिम लड़ाकों को अपना यौवन सौंपने को बेताब हैं ! मजहबी इतिहास में शायद ही कोई प्रमाण हो कि किसी मुस्लिम युवती को किसी हिन्दू राजनेता ,हिन्दू उग्रवादी नक्सलवादी ने कभी बुरी नियत से देखा हो ! कहीं इसके मूल में 'लव जेहाद' ही न हो ! श्रीराम तिवारी
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