गुरुवार, 24 दिसंबर 2015


आज  अभी -अभी सुबह -सुबह घर की छत पर जाकर उदित होते सूरज को देखा। शहरी प्रदूषण और मौसम की मिली जुली धुंध के वावजूद जब 'पौ फटते' सूरज को देखा तो ऐंसा प्रतीत हुआ मानों कोई  विराट 'सांताक्लॉज'   गुलाबी रंग की रजाई अपने चहरे से हटाकर धरती की ओर करुणामयी दृष्टि से निहार रहा हो !श्रीराम तिवारी !

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