गुरुवार, 27 अक्तूबर 2022

वैदिक कविता

 वैदिक कविता

भय के सब कारण मिटा दो
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ऋग्वेद : षष्ठ मंडल : सूक्त-6
ऋषि : भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
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प्र नव्यसा सहसः सूनुमच्छा
यज्ञेन गातुमव इच्छमानः।
वृश्चद्वनं कृष्णयामं रुशन्तं
वीती होतारं दिव्यं जिगाति।।
(6:6:1:)
♨️
तुम्हारे मार्ग पर आना चाहते हैं हम,
हे ज्योतिर्मय विद्याओं के स्वामी!
यह यज्ञ हमें तुम्हारे पास वहाँ ले आये,
जहाँ हमारा सब अज्ञान झड़ जाये।
तुम आकर्षित करते हो हमें,
हे देदीप्यमान्! तुम होता हो, दिव्य हो।।1।।
हे ज्योतिर्मय विद्याओं के स्वामी!
तुम श्वेतवर्णी हो, पावक हो,
तुम्हारी ध्वनि गूँज उठती हृदय में।
हे अजर-अमर! हे युवतम!
अंतःशत्रुओं का संहार कर
हमारी जीवन-यात्रा को सफल करो।।2।।
हे पवित्रताओं के अधिपति!
तुम्हारी प्रेरणाएँ शुचिता से ओतप्रोत हैं।
तुम हमारे आचरण को शुद्ध करो,
अपने प्रकाश से प्रक्षालन करो घनान्धकार का,
हमारे जीवन का पथ प्रशस्त करो।।3।।
हे ज्योतिर्मय विद्याओं के देव!
तुम पवित्र ज्वालाओं में प्रत्यक्ष हो।
इस पृथ्वी पर बो रहे हो ज्योति-बीज,
अश्वों के बंधन खोल रहे हो तुम।
तुम विश्व-भ्रमण पर निकले हुए
वह शिखर बना रहे हो, जहाँ पहुँचना है हमें।।4।।
तुम ज्योति की वर्षा करते हो,
सृजन देते हो, जीवन की लय देते हो।
वे वरदान देते हो तुम ही हमें,
जो क्रूर बंधनों को शिथिल कर दे।
द्वेष के जंगल जलाने की शक्ति देते हो तुम ही।।5।।
हे ज्योतिर्मय विद्याओं के स्वामी!
अपना आलोक पृथ्वी पर फैला दो।
भय के सब कारण मिटा दो,
दुर्घर्ष शत्रुओं के सब घेरे तोड़ दो।।6।।
तुम अनिर्वचनीय हो, अद्भुत हो,
हे आह्लादमय! उज्ज्वल धन दो हमें,
समृद्ध करो हमारी चेतना को।
तुम्हारे पास आनंद का कोश है,
वह कोश हमारे लिये खोल दो।।7।।

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