दु:ख दर्द की मिठास को खारा नहीं बना
ख़ामोशी को ज़ुबान दे ,नारा नहीं बना
जिसने जमीन से लिया है खाद औ' पानी
उस ख्वाब को फ़लक का सितारा नहीं बना
घुटने ही टेक दे जो सियासत के सामने
अपने अदब को इतना बिचारा नहीं बना
जज़्बात कोई खेल दिखाने का फ़न नहीं
जज़्बात को जादू का पिटारा नहीं बना
इंसान की फितरत तो है शबनम की तरह ही
अब उसको,जुल्म करके,अंगारा नहीं बना
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