वामपंथ और किसान आंदोलन के परिणामस्वरूप विगत शताब्दी के उत्तरार्ध में *राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति* का विचार बिवेचना के केंद्र में आया! सबसे पहले बंगाल की वामपंथी सरकार ने कॉ. ज्योति बसु के नेतृत्व में वहां *ऑपरेशन वर्गा * का अभिनव प्रयोग किया! बटाईदार या छोटी जोत के खेतिहर मजदूर ने पहली बार आर्थिक आजादी का अनुभव किया !
वामपंथ के समर्थन से चली यूपीए प्रथम डॉ. मनमोहन सिंह सरकार ने इस प्रारूप को शुरू में इस समस्या की गहराई को समझा ! आंकड़ों के जरिये ही सही किंतु स्पष्ट रूप से संसद के माध्यम से जनता के सामने रखा गया कि भारत जैसे देश में भूमि सुधार का सवाल कितना अहम है! राष्ट्रीय प्रतिदर्श संगठन एन एस एस ओ के आंकड़ों के अनुसार करीब 41.63% परिवारों के पास कच्चे घर के अलावा और कोई भूमि नहीं है! आंकड़ों से भी यह पता चलता है कि गांव के एक-तिहाई परिवार भूमिहीन हैं ! हर साल इनमें एक-तिहाई और जुड़ जाते हैं,जो भूमि हीनता के करीब हैं! 20 प्रतिशत परिवारों के पास एक हेक्टेयर से कम भूमि है! दूसरे शब्दों में भारत की 60% आबादी का उपजाऊ भूमि का केवल पांच फीसदी भूमि पर ही अधिकार है! जबकि 10% जनसंख्या का 55% फीसदी उपजाऊ जमीन पर कब्जा है!
इसी तरह भूमि सुधार के कार्यक्रम को व्यापक भौगोलिक संदर्भ में देखें, तो जहां चीन ने विगत 30 वर्ष में गरीब किसानों के बीच 46% उपजाऊ भूमि का वितरण किया है, वहीं भारत ने मात्र 2% और पाकिस्तान ने 0% भूमि सुधार का काम किया है! मनमोहसिंह सरकार ने कम से कम संवैधनिक जवाबदेही के रूप में अपनी प्रतिबद्धता जतायी थी! किंतु मोदी सरकार के ऐजेंडे में राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति का अता पता किसी को नही है!
यूपीए प्रथम सरकार द्वारा प्रारूप में उल्लिखित ये आंकड़े उस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की तरफ इंगित करते हैं कि स्वतंत्रता के बाद देश में भूमि सुधार नीति किस कदर असफल रही है! मोदी सरकार ने विदेश नीति में भले ही दुनिया में झंडे गाड़ दिये हों,किंतु भूमिहीन खेतिहर मजदूरों और कम जोत के किसान को न्याय दिलाने में यह सरकार असफल रही है! देश में मुफ्त अनाज एक तय समय सीमा तक ही दिया जा सकता है, देश में गांव के गरीबों को न्याय तभी मिलेगा, जब सैकड़ों एकड़ जमीन के मालिकों, दर्जनों फार्म हाउसों के मालिक से आयकर लिया जाए, और भूमि सीलिंग कानून को लागू कर कम जोत के किसानों को न केवल जमीन बल्कि बैंक से सस्ती ब्याज दरों पर लोन दिया जाये! इस तरह भूमि सुधार कानून लागू कर भारत को वास्तविक आर्थिक महाशक्ति बनाया जा सकता है! केवल पूँजीवादी विकास दर के आँकड़ों और विदेशी पूंजीनिवेश की बदौलत हम परमानेंटली विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था बने नही रह सकते!
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