रविवार, 28 अगस्त 2022

32 मंजिला अवैध ट्विन टॉवर गिरवाकर बिल्डिंग माफिया को धूल चटाई

 भारत के न्यायिक इतिहास में जब कभी सवाल किया जाएगा कि न्यायपालिका की गरिमा में चार चांद कब लगे? तो एक ही जबाब होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा के 32 मंजिला अवैध ट्विन टॉवर गिरवाकर बिल्डिंग माफिया को धूल चटाई थी !

#भ्रष्ट मुलायम परिवार,करुणानिधि परिवार, दाऊद परिवार, गवली परिवार, देशमुख परिवार, शरद पंवार परिवार,जोगी परिवार, लालू परिवार, अमुक परिवार, ढिमुक परिवार,सारे सरकारी ठेकेदार और रिटायर्ड IAS/IPS/IT/ED/CBI, इन के अवैध महलों/बंगलों पर भी बुलडोज़र चलने चाहिये!

शनिवार, 27 अगस्त 2022

भारत में जातीय आंदोलन बनाम आर्थिक राजनीतिक- आंदोलन :-

भारत में आजादी के तुरंत बाद ही समाजवाद और साम्यवाद की वैचारिक लाइन से आगे जातीय संघर्ष पर ज्यादा जोर दिया जाने लगा ! संविधान सभा के अंदर अलगाववादी नेताओं ने राजनैतिक,आर्थिक,आंदोलन को हासिये पर धकेल दिया!
भारत के तत्कालीन जातिवादी नेता -अंग्रेजों और मुस्लिम लीग के प्रभाव मेंथे ! इसी विषवेलि के बीजींकन ने विगत आधी शताब्दी में भारत की एकता-अखंडता-खास तौर से विशाल हिंदू समाज की एकता को ध्वस्त कर डाला! यदि सर्वहारा के भारतीय हरावल दस्तों को जातिवाद /वर्णवाद /बड़े भूमाफिया (नवजमीदारों) की विध्वंसक ताकत का सामना नही करना पड़ा होता, तो आज *साम्यवादी भारत*चीन से भी आगे होता! बहरहाल अभी तो मेरे मुल्क के रहनुमा ढपोरशंख बजाने में सबसे आगे हैं!
गुलाम भारत के पहले स्वाधीनता संग्राम के दौरान मार्क्स और एंगेल्स हमारे गुलाम भारत और तमाम गुलाम दुनिया के जन आंदोलनों पर अपनी पैनी नजर से देख रहे थे! वे तत्कालीन भारत और यूरोप के कई देशों में चल रहे सर्वहारा के स्वतः स्फूर्त संघर्षों और उनके मालिकों के साथ ही सरकारी तंत्र द्वारा अर्थात पुलिस बल द्वारा सर्वहारा के दमन को भी देख रहे थे।
मात्र मार्क्स एंगेल्स ही नहीं अनेक दूसरे भी उस दमन को अनुचित समझ रहे थे और मजदूरों के पक्ष में लिख भी रहे थे। उनके पक्ष को बल देने के लिए गुप्त संगठन भी बना रहे थे।
मार्क्स एंगेल्स अपने अन्य साथियों से कुछ अलग ढंग से इस प्रश्न पर सोचने लगे थे।
वह देख रहे थे कि मजदूर अपने संघर्षों की तात्कालिक असफलता से बहुत कुछ सीख रहे थे !और संघर्ष के तरीकों में बदलाव करते जा रहे थे।जहां वह पहले मशीनों को अपने आक्रोश का निशाना बनाया करते थे! वहां वह उसको बचाने लगे।क्योंकि मालिकों और सरकारों को मजदूरों को बदनाम करने का अवसर मिल रहा था।बीमा कंपनियों से मालिकों को जब क्षति पूर्ति मिलने लगी तब वह स्वयं वह अपनी मिलो और मालों को नष्ट कर भरपाई पाने का जुगाड लगाने लगे थे।
मार्क्स एंगेल्स बात पर ध्यान देने लगे कि सर्वहारा के स्वत : स्फूर्त संघर्षों को सचेतन और सोची समझी रणनीति के तहत चलाने और उसे तेज करने पर ही मनमाफिक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।इसके लिए उनका ठोस संगठन होना और, आर्थिक आंदोलन से आगे बढ़कर राजनीतिक और वैचारि^क आन्दोलन तक पहुंचना आवश्यक है।इसी मकसद से उन्होंने कई दूसरे लोगों से मिलकर कम्युनिस्ट लीग और उसके लिए कम्युनिस्ट घोषणापत्र की रचना की।
कालांतर में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के संस्थापक सदस्यों के देशज अहंकार ने मार्क्सवाद को मजदूरों किसानों के संगठित आंदोलन और उनकी तात्कालिक मांगों तक सीमित कर दिया! जो जितना बड़ा विचारक या क्रांतिकारी नेता/दल प्रचारक हुआ, वह उतना ही मार्क्सवाद से दूर होता चला गया!
नोट :- यह पोस्ट उन लोगों के लिए है, जो राजनीतिक विज्ञान और इतिहास के प्रति जिज्ञासु हैं

तवाफ़-ए-मन्ज़िल-ए-जानाँ

 कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो,

बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो।
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है,
यह जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो।
यह एक शब की मुलाक़ात भी ग़नीमत है,
किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो।
नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं,
बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो।
अभी तो जाग रहे हैं चिराग़ राहों के,
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो।
तवाफ़-ए-मन्ज़िल-ए-जानाँ हमें भी करना है,
'फ़राज़' तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो।
(तवाफ़-ए-मन्ज़िल-ए-जानाँ = महबूब के घर की परिक्रमा)
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उन्हें शरियत कानून चाहिये,यदि सरकार नही माने तो दंगा फसाद की आजादी चाहिये!

 दुनिया के जिस किसी देश में वे बहुसंख्यक हैं,वहाँ उन्हें शरियत कानून नही चाहिए और जहां वे अल्पसंख्यक हैं ,वहाँ उन्हें शरियत कानून चाहिये,यदि सरकार नही माने तो दंगा फसाद की आजादी चाहिये! यदि फ्रांस में कोई कार्टून छपता है,तो इन्हें भारत में हिंसक तांडव और तोड़ फोड़ का अधिकार चाहिए! इनमें से कुछ कुटिल तत्व भारत के शुद्ध अहिंसावादी समाज की बहु बेटियोंको प्रेम जालमें फांसने के लिये खुली छूट चाहते हैं!

यदि यही हरकत वे उन देशों में करें, जहाँ इनका बहुमत है,तो वहाँ संगसार कर दिये जायेंगे या तालिबानों की भांति अपनी ही कौम की बहु बेटियों का जीना दूभर करते रहेंगे! भारत में इन्हें लोकतंत्र धर्मनिर्पेक्षता बड़ी प्यारी है!जबकि सीरिया,ईराक,यमन, पाकिस्तान में शरीया कानून लागू हो न हो किंतु अल्पसंख्यक के नाम पर भारत में इन्हें विशेषाधिकार चाहिए। जबकि मुस्लिम बहुल देशों से लेकर मुस्लिम बहुल मुहल्लों तक में किसी सात्विक हिंदू जैन,बौद्ध का सांस लेना मुश्किल हो रहा है

जख्म जितने भी हैं जिंदगी के, मर्ज़ अपने कमाए हुए हैं।।

 हंस लम्बी उड़ानों के ,क्रांति पथ को सजा्ये हुए हैं।

छोड़ यादों का कारवां,आज ही होश आये हुए हैं ।।
साथी मिलते गये नए नए ,कुछ अपने पराये हुए हैं ।
फलसफा पेश है पुर नज़र ,लक्ष्य पै हम टिकाये हुए हैं ।।
व्याप्त आनन्द है जिस फिजामें,मेघ नभ में छाये हुए हैं।
युग युग से रहे जो प्यासे,आज क्षीर सिंधु में नहाये हुए हैं।।
अपनी चाहत के रंग बदरंग,खुद अपने सजाये हुए हैं।
औरों की खता कुछ नहीं है, गुल अपने खिलाये हुए हैं।।
जन्मों जन्मों किये धतकरम ,क़र्ज़ उसका चढ़ाए हुए हैं।
जख्म जितने भी हैं जिंदगी के, मर्ज़ अपने कमाए हुए हैं।।
खुद ही भूले हैं अपने ठिकाने,दोष गैरों पै लगाए हुए हैं।
वक्तने सबको ऐंसा है मारा,नींद खुद की उड़ाए हुए हैं।।

सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ता हमारा

 मेरे प्यारे वतनपरस्तो...

सदा खुश रहो ...
सदा सुखी भव ...
मैं एक संप्रभु राष्ट्र हूँ ! मैं किसी के लिए मातृभूमि हूँ,किसी के लिए मादरे-वतन हूँ ! किसी के लिए सारे 'जहाँ से अच्छा हिंदोस्ता हमारा' हूँ ,किसी के लिए आरक्षण की वैतरणी हूँ ! किसी के लिए उदारीकरण ,निजाकरण भूमंडलीकरण का बिग बाजार हूँ ! किसी के लिए धर्मनिरपेक्ष -समाजवादी गणतंत्र हूँ!किसी के लिए सिर्फ सत्ता प्रतिष्ठान हूँ !
किसी के लिए लूटतंत्र, किसी के लिए *गजवा ए हिंद* किसी के लिए लव जेहाद का नखलिस्तान,किसी के लिये तो महज सल्तनत ए खुरासान हूँ ! किसी के लिए धर्मांतरण की पवित्र उर्वरा भूमि हूँ ! किसी के लिए महज एक विस्तृत चरागाह हूँ ! आजादी मिलने के बाद विरासत में मुझे मेरे मूर्ख पड़ोसियों से हमेशा नफरत,धोखा,और शत्रतुता मिली,फिर भी मैं जिंदा हूँ और सनातन से आबाद हूँ ,आबाद रहूँगी ! इसीलिए मेरे कुछ चाहने वाले लिख कर परलोक चले गए :-
*कि सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तान हमारा *
नोट* जिनको मेरी यह पोस्ट पसंद नही ,उनके विचारों और आपत्तियाें का स्वागत है!
जय हिंद !जय भारत !! जय श्रीकृष्ण!जय महाकाल!
*सत्यदेव जयते*

मंगलवार, 23 अगस्त 2022

वह ऑनलाइन, एटीएम, डिजिटल आदि शब्दों से घबराता है।

 होशियार बनने के चक्कर में घोंचूराम एक बार ऑनलाइन ठगी का शिकार हो चुका है। उसके हाथ में स्मार्ट फोन देखकर उसके होशियार होने का वहम हो सकता है, पर वास्तव में वह ऑनलाइन, एटीएम, डिजिटल आदि शब्दों से अब घबराता है। कहीं फिर वह ठगी का शिकार न हो जाए।

पहले से वह कुछ सजग और होशियार तो हुआ है। पर उसे अपने होशियार होने की खुशफहमी नहीं है। बल्कि शिकार बनने का डर ही मन में ज़्यादा समाया हुआ है। एटीएम से पैसा निकालते समय खुटका लगा रहता है। पीछे कोई डिजिटल लुटेरा तो नहीं खड़ा है? पैसे निकालने के बाद वह क्लीयर बटन को कई बार दबा देता है। हाँ, लुटेरे के लिए अपने ट्रांजेक्शन के डेटा तक पहुँच की गुंजाइश क्यों रखी जाए? इतनी सावधानियों के बाद भी वह डरा रहता है। उसने फिल्मों में कंप्यूटर पर अरबों-खरबों रुपयों के खातों को पल भर में शून्य होते देखा है।
घोंचूराम के खाते में कोई खास रकम तो नहीं है। पर जो भी है वह गाढ़े समय में काम आ जाए बस इतनी ही उसकी चाहत है। पर डिजिटल लूट और बैंकों को खस्ताहाल होते देखकर वह निराश हो जाता है। पहले के डकैत घरों में रखे माल-असबाब और गहने-गाँठे और नकद ही लूट पाते थे। बैंक खातों का धन सुरक्षित रहता था। पर ऑनलाइन ट्रांजैक्शन में तो पूरा खाता साफ होने खतरा पैदा हो गया है। वह अपनी सामाजिक सुरक्षा को लेकर बड़ा चिंतित है। पर बेचारा चिंता के कारणों तक पहुँच ही नहीं पाता। उसने भी मान लिया है कि ठगना-ठगाना ही दुनिया की रीत है। और कारण के पीछे भागने से अच्छा भगवान के शरण जाना जाना है। उससे बढ़कर उबारने वाला कौन है?
घोंचूराम आजकल पूजा-पाठ में और ज़्यादा रमने लगा है। उसे असुरक्षा भय से मुक्ति तो नहीं मिलती, फिर भी अपने जैसे घोंचुओं को देखकर कुछ चैन पा है।

श्रीमतीजी * 8 May to 23rd Augast....

 परमपिता परमात्मा की असीम अनुकम्पा से श्रीमतीजी अब आंशिक रूप से स्वस्थ हो रहीं हैं ! 5 साल लगातार ऑक्सीजन सपोर्ट पर रहने और विगत साढ़े तीन माह सेे हॉंस्पिटलाईजेशन अंतर्गत 28 दिन वैंटीलेटर पर रहने,फिर 40 दिन घरपर लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर निर्भर रहने केे बाद,श्रीमती जी अब आंशिक रूप से स्वस्थ लग रही हैं! किंतु खांसी कम नही हुई, क्योंकि फेफड़े सिर्फ 40%ही काम कर रहे हैं!

इनके स्वास्थ्य सुधार पर कई डॉक्टर भी आश्चर्य कर रहे हैं, क्योंकि मई -जून में 25 दिन वैंटीलेटर पर रखने और मेदांता हॉस्पीटल के डॉक्टरों द्वारा पूरी ताक़त लगाने के बाद भी जब कोई उम्मीद नही दिखी, तो सबने हाथ खड़े कर दिये! किंतु चिरंजीव डॉ. प्रवीण तिवारी ने हिम्मत नही हारी और एक सप्ताह और ICU में रखा,ताकि वैंटीलेटर के बजाय बायपेप अजमाया जाय! इसमें आँशिक उम्मीद की किरण दिखी तो बेटेे प्रवीण ने अपनी मां को घर पर ही ICU वैंटीलेटर और वाईपेप वाला सिस्टम अरेेंज करवाया!
इस संकट की घड़ी में नाती अक्षत, पंडित माधव उपाध्यक्ष ((दामाद),नरेंद्र चौबे (अनुज) पुत्री अनामिका और अनुज सालिग्राम, सीताराम,परशुराम तथा अनुजबधु मनोरमा का सहयोग सराहनीय रहा!
आभार :-आदरणीय जयदीप कर्णिक (हैड -अमर उजाला )
माननीय प्रो.मानसिंह परमार (( पूर्व वाइस चॉसलर) डॉ ज्योति बाधवानी(मेदांता)डॉ.राजलवाल(पूर्व CMO),श्री सत्यनारायण जी पाटीदार ( AGM BSNL Indore), श्री प्रेम तिवारी जी (सेक्रेटरी NFTE BSNL), परम मित्र दीपक गंगंमवार जी, आर बी बांके जी ,चंदाना जी और जाने अनजाने जिस किसी का सहयोग मिला हो, उन सबका शुक्रिया अदा करता हूँ!
बहरहाल श्रीमती जी को अभी भी रात में दो घंटे वायपैप पर रहना पड़ेगा और तमाम दवाईयां जारी रहेंगी! घर से बाहर जाना मना है! नेबूलाईजेशन बगैरह यथावत जारी रहेगा! खानपान पर परहेज जारी रहेगा!
सभी बंधु बांधवों, मित्रों, संबंधीजनों शुभचचिंतकों का हार्दिक शुक्रिया! ... जय महाकाल, जय भवानी... (ताजा फोटो)
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सोमवार, 22 अगस्त 2022

नेता सत्ता में रहकर देश को लूटते रहे !

 राजनैतिक दुश्मनी अथवा प्रतिस्पर्धा के मद्दे नजर सत्तापक्ष को यह सहज या स्वाभाविक अधिकार है कि वह अपने वर्ग शत्रु को आगे न बढ़ने दे! मोदी सरकार वही कर रही है जो यदि सत्ता में रहकर कांग्रेस या किसी अन्य राष्ट्रीय विपक्षी दल ने किया होता! किंतु इस संदर्भ में यह काबिले गौर है कि कुछ नेता विशेष सत्ता में रहकर खुद ही देश को लूटते रहे और जबतक वे सत्ता में रहे,तो विपक्ष को भी लूटने का मौका देते रहे!

इस श्रेणी में चंद्रशेखर, देवेगोड़ा, मुलायम,लालू,मुफ्ती, करुणानिधि,मुरासोलीमारन,प्रकाश सिंह बादल और शेख अदुल्ला परिवार प्रमुखता से आते हैं! इनके राज में कभी किसी पर छापे नही पड़े! मनमोहन सिंह जी भी आर्थिक भ्रष्टाचार पर मौन ही रहे! चंद्रशेखर की तरह डॉ. मनमोहन सिंह जी भी अजातशत्रु ही थे !सरकारी भ्रष्टाचार पर कोई सरकार कुछ नहीं कर सकी! चंद्रशेखर ने तो विदेशी कर्ज न चुकाने पर देश का सोना तक गिरवी रखा था!
30-40 साल पहले आम धारणा थी कि सरकारी कर्मचारियों /अधिकारियों के वेतन भत्ते कम हैं इसलिये रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार होता है!फिर पे कमीशन आये और यूनियनों ने लड़ भिड़कर खूब वेतन भत्ते बढवाये तो यथार्थ के धरातल पर देखा गया कि जिसकी जितनी ज्यादा पगार +भत्ते बढ़े,वह उतना ही रिश्वतखोर,मक्कार और महाभ्रस्ट होता चला गया! जब निजीकरण हुआ तब लोगों को पता चला कि सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक उपकर्मों के आला अफसरों ने देश को किस कदर लूटा और कार्य की गुणवत्ता किस स्तर तक गिरती चली गई?

मेहनतकश सर्वहारा किसान मजदूर हूँ मैं,

 मेहनतकश सर्वहारा किसान मजदूर हूँ मैं,

हर खासोआम से कुछ कहना चाहता हूँ !
सदियों से सबकी सुन रहा हूँ खामोश मैं ,
आपसे शिद्द्त के साथ कुछ कहना चाहता हूँ!!
वेद पुराण बाइबिल कुरआन जेंदावेस्ता गीता,
के बरक्स मैं कुछ खास कहना चाहता हूँ!
इतिहास भूगोल राजनीती साइंस तकनीक ,
कमप्यूटर,मोबाइल से जुदा कहना चाहता हुँ !!
ईश्वर अवतारों पीरों पैगंबरों संतों महात्माओं,
के इतर कुछ अधुनातन कहना चाहता हूँ!!
समाज सुधारक नहीं हुँ क्रांतिवीर भी नहीं,
केवल मनुष्य हूँ मैं !पूँछो कि क्या चाहता हूँ!
न तख्तो ताज चाहिए ,न जन्नत-स्वर्ग के हसीं ,
सब्ज बाग ,फ़कत सम्मान से जीना चाहता हूँ।
युगो-ं युगों से जो बात सभी बिसारते आये हैं,
वो बात मैं अब सर्मायेदारों से कहना चाहता हूँ।।
मैं धरती,हवा,पानी,आसमान,सूरज चाँद,तारोंमें
सबका बराबर बाजिब हक देखना चाहता हूँ।
जो सम्पदा समष्टी चैतन्य ने रची है सबके लिए,
उसे मैं प्राणीमात्र में बराबर देखना चाहता हूँ।।

संसारके सभी प्राणी अपूर्ण हैं। सबमें कुछ न कुछ कमी है !

 यह तो सभी जानते हैं कि सन्यास धारण करने और श्रृंगार शतक, नीति शतक एवं वैराग्य शतक लिखने से पूर्व भर्तृहरि एक न्यायप्रिय विवेकशील औऱ विद्वत्तापूर्ण स्वनामधन्य सर्व प्रिय राजा थे! उन्होंने राजपाट छोड़कर सन्यास क्यों धारण किया ? यह कहानी संस्कृत साहित्य और लोक कथाओं में भी बहुत प्रसिद्ध है! पेश है उस अमर कथा की बानगी!

* * * * *
ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में अवंतिका (उज्जैन) के एक महान राजा हुए हैं भर्तृहरि। वे विद्वान कवि भी थे। उनकी पटरानी अत्यंत रूपवती थीं।
सन्यास उपरांत भर्तृहरि ने स्त्री के सौंदर्य और उसके बिना जीवन के सूनेपन पर 100 श्लोक लिखे, जो श्रृंगार शतक के नाम से प्रसिद्ध हैं।
उन्हीं के राज्य में एक ब्राह्मण भी रहता था, जिसने अपनी नि:स्वार्थ पूजा से देवता को प्रसन्न कर लिया। देवता ने उसे वरदान के रूप में अमर फल देते हुए कहा कि इससे आप लंबे समय तक युवा रहोगे। ब्राह्मण ने सोचा कि भिक्षा मांग कर जीवन बिताता हूं, मुझे लंबे समय तक जी कर क्या करना है। हमारा राजा बहुत अच्छा है, उसे यह फल दे देता हूं। वह लंबे समय तक जीएगा तो प्रजा भी लंबे समय तक सुखी रहेगी। वह राजा के पास गया और उनसे सारी बात बताते हुए वह फल उन्हें दे आया।
राजा फल पाकर प्रसन्न हो गया। फिर मन ही मन
सोचा कि यह फल मैं अपनी पत्नी को दे देता हूं। वह
ज्यादा दिन युवा रहेगी तो ज्यादा दिनों तक उसके
साहचर्य का लाभ मिलेगा। अगर मैंने फल खाया तो वह
मुझ से पहले ही मर जाएगी और उसके वियोग में मैं
भी नहीं जी सकूंगा। उसने वह फल अपनी पत्नी को दे
दिया।
लेकिन, रानी तो नगर के कोतवाल से प्यार करती थी। वह अत्यंत सुदर्शन, हृष्ट-पुष्ट और बातूनी था। अमर फल उसको देते हुए रानी ने कहा कि इसे खा लेना, इससे तुम लंबी आयु प्राप्त करोगे और मुझे सदा प्रसन्न करते रहोगे। फल ले कर कोतवाल जब महल से बाहर निकला तो सोचने लगा कि रानी के साथ तो मुझे धन-दौलत के लिए झूठ-मूठ ही प्रेम का नाटक करना पड़ता है। और यह फल खाकर मैं भी क्या करूंगा। इसे मैं अपनी परम मित्र राज नर्तकी को दे देता हूं। वह कभी मेरी कोई बात नहीं टालती। मैं उससे प्रेम भी करता हूं। और यदि वह सदा युवा रहेगी, तो दूसरों को भी सुख दे पाएगी। उसने वह फल अपनी उस नर्तकी मित्र को दे दिया।
राज नर्तकी ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप वह अमर फल अपने पास रख लिया। कोतवाल के जाने के बाद उसने सोचा कि कौन मूर्ख यह पाप भरा जीवन लंबा जीना चाहेगा। हमारे देश का राजा बहुत अच्छा है, उसे ही लंबा जीवन जीना चाहिए। यह सोच कर उसने किसी प्रकार से राजा से मिलने का समय लिया और एकांत में उस फल की महिमा सुना कर उसे राजा को दे दिया। और कहा कि महाराज, आप इसे खा लेना।
राजा फल को देखते ही पहचान गया और भौंचक रह गया। पूछताछ करने से जब पूरी बात मालूम हुई, तो उसे वैराग्य हो गया और वह राज-पाट छोड़ कर जंगल में चला गया। वहीं उसने वैराग्य पर 100 श्लोक लिखे जो कि वैराग्य शतक के नाम से प्रसिद्ध हैं।
मतभिन्नता के बावजूद अधिकांश इतिहासकार और अकादमिक विद्वान मानते हैं कि इन्ही महान प्रतापी सन्यासी भर्तुहरि के अनुज *वीर विक्रमादित्य * ने न केवल हिंदुत्व का अपितु भारतवर्ष का भी मान बढ़ाया! इनके नवरत्नों में एक कविकुलगुरू कालिदास हुए हैं!
परम पूज्य भर्तुहरि के तीनों शतकों का सार ही इस संसार की वास्तविकता है। एक व्यक्ति किसी अन्य से प्रेम करता है और चाहता है कि वह व्यक्ति भी उसे उतना ही प्रेम करे। परंतु विडंबना यह कि वह दूसरा व्यक्ति किसी अन्य से प्रेम करता है। इसका कारण यह है कि संसार व इसके सभी प्राणी अपूर्ण हैं। सब में कुछ न कुछ कमी है। सिर्फ एक ईश्वर पूर्ण है। एक वही है जो हर जीव से उतना ही। प्रेम करता है, जितना जीव उससे करता है। बस हमीं उसे सच्चा प्रेम नहीं करते।

जिंदगी में किसी का साथ काफी है,, कंधे पर रखा हुआ हाथ काफी है,,,,

 एक मित्र ने भेजा था पसंद आया तो आप सब के बीच रख रहा हूं..

थोड़ा समय लगेगा लेकिन पढ़ना जरूर, आंसू आ जाए तो जान लेना आपकी भावनाएं जीवित हैं ....
बात बहुत पुरानी है।
.
आठ-दस साल पहले की है ।
मैं अपने एक मित्र का पासपोर्ट बनवाने के लिए दिल्ली के पासपोर्ट ऑफिस गया था।
उन दिनों इंटरनेट पर फार्म भरने की सुविधा नहीं थी। पासपोर्ट दफ्तर में दलालों का बोलबाला था
.
और खुलेआम दलाल पैसे लेकर पासपोर्ट के फार्म बेचने से लेकर उसे भरवाने, जमा करवाने और पासपोर्ट बनवाने का काम करते थे।
मेरे मित्र को किसी कारण से पासपोर्ट की जल्दी थी, लेकिन दलालों के दलदल में फंसना नहीं चाहते थे।
हम पासपोर्ट दफ्तर पहुंच गए, लाइन में लग कर हमने पासपोर्ट का तत्काल फार्म भी ले लिया।
.
पूरा फार्म भर लिया। इस चक्कर में कई घंटे निकल चुके थे, और अब हमें किसी तरह पासपोर्ट की फीस जमा करानी थी।
हम लाइन में खड़े हुए लेकिन जैसे ही हमारा नंबर आया बाबू ने खिड़की बंद कर दी और कहा कि समय खत्म हो चुका है अब कल आइएगा।
मैंने उससे मिन्नतें की, उससे कहा कि आज पूरा दिन हमने खर्च किया है और बस अब केवल फीस जमा कराने की बात रह गई है, कृपया फीस ले लीजिए।
बाबू बिगड़ गया। कहने लगा, "आपने पूरा दिन खर्च कर दिया तो उसके लिए वो जिम्मेदार है क्या? अरे सरकार ज्यादा लोगों को बहाल करे। मैं तो सुबह से अपना काम ही कर रहा हूं।"
मैने बहुत अनुरोध किया पर वो नहीं माना। उसने कहा कि बस दो बजे तक का समय होता है, दो बज गए। अब कुछ नहीं हो सकता।
मैं समझ रहा था कि सुबह से दलालों का काम वो कर रहा था, लेकिन जैसे ही बिना दलाल वाला काम आया उसने बहाने शुरू कर दिए हैं।
पर हम भी अड़े हुए थे कि बिना अपने पद का इस्तेमाल किए और बिना उपर से पैसे खिलाए इस काम को अंजाम देना है।
मैं ये भी समझ गया था कि अब कल अगर आए तो कल का भी पूरा दिन निकल ही जाएगा, क्योंकि दलाल हर खिड़की को घेर कर खड़े रहते हैं, और आम आदमी वहां तक पहुंचने में बिलबिला उठता है।
खैर, मेरा मित्र बहुत मायूस हुआ और उसने कहा कि चलो अब कल आएंगे।
मैंने उसे रोका। कहा कि रुको एक और कोशिश करता हूं।
बाबू अपना थैला लेकर उठ चुका था। मैंने कुछ कहा नहीं, चुपचाप उसके-पीछे हो लिया। वो उसी दफ्तर में तीसरी या चौथी मंजिल पर बनी एक कैंटीन में गया, वहां उसने अपने थैले से लंच बॉक्स निकाला और धीरे-धीरे अकेला खाने लगा।
मैं उसके सामने की बेंच पर जाकर बैठ गया। उसने मेरी ओर देखा और बुरा सा मुंह बनाया। मैं उसकी ओर देख कर मुस्कुराया। उससे मैंने पूछा कि रोज घर से खाना लाते हो?
उसने अनमने से कहा कि हां, रोज घर से लाता हूं।
मैंने कहा कि तुम्हारे पास तो बहुत काम है, रोज बहुत से नए-नए लोगों से मिलते होगे?
वो पता नहीं क्या समझा और कहने लगा कि हां मैं तो एक से एक बड़े अधिकारियों से मिलता हूं।
कई आईएएस, आईपीएस, विधायक और न जाने कौन-कौन रोज यहां आते हैं। मेरी कुर्सी के सामने बड़े-बड़े लोग इंतजार करते हैं।
मैंने बहुत गौर से देखा, ऐसा कहते हुए उसके चेहरे पर अहं का भाव था।
मैं चुपचाप उसे सुनता रहा।
फिर मैंने उससे पूछा कि एक रोटी तुम्हारी प्लेट से मैं भी खा लूं? वो समझ नहीं पाया कि मैं क्या कह रहा हूं। उसने बस हां में सिर हिला दिया।
मैंने एक रोटी उसकी प्लेट से उठा ली, और सब्जी के साथ खाने लगा।
वो चुपचाप मुझे देखता रहा। मैंने उसके खाने की तारीफ की, और कहा कि तुम्हारी पत्नी बहुत ही स्वादिष्ट खाना पकाती है।
वो चुप रहा।
मैंने फिर उसे कुरेदा। तुम बहुत महत्वपूर्ण सीट पर बैठे हो। बड़े-बड़े लोग तुम्हारे पास आते हैं। तो क्या तुम अपनी कुर्सी की इज्जत करते हो?
अब वो चौंका। उसने मेरी ओर देख कर पूछा कि इज्जत? मतलब?
मैंने कहा कि तुम बहुत भाग्यशाली हो, तुम्हें इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है, तुम न जाने कितने बड़े-बड़े अफसरों से डील करते हो, लेकिन तुम अपने पद की इज्जत नहीं करते।
उसने मुझसे पूछा कि ऐसा कैसे कहा आपने? मैंने कहा कि जो काम दिया गया है उसकी इज्जत करते तो तुम इस तरह रुखे व्यवहार वाले नहीं होते।
देखो तुम्हारा कोई दोस्त भी नहीं है। तुम दफ्तर की कैंटीन में अकेले खाना खाते हो, अपनी कुर्सी पर भी मायूस होकर बैठे रहते हो,
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लोगों का होता हुआ काम पूरा करने की जगह अटकाने की कोशिश करते हो।
मान लो कोई एकदम दो बजे ही तुम्हारे काउंटर पर पहुंचा तो तुमने इस बात का लिहाज तक नहीं किया कि वो सुबह से लाइऩ में खड़ा रहा होगा,
और तुमने फटाक से खिड़की बंद कर दी। जब मैंने तुमसे अनुरोध किया तो तुमने कहा कि सरकार से कहो कि ज्यादा लोगों को बहाल करे।
मान लो मैं सरकार से कह कर और लोग बहाल करा लूं, तो तुम्हारी अहमियत घट नहीं जाएगी?
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हो सकता है तुमसे ये काम ही ले लिया जाए। फिर तुम कैसे आईएएस, आईपीए और विधायकों से मिलोगे?
भगवान ने तुम्हें मौका दिया है रिश्ते बनाने के लिए। लेकिन अपना दुर्भाग्य देखो, तुम इसका लाभ उठाने की जगह रिश्ते बिगाड़ रहे हो।
मेरा क्या है, कल भी आ जाउंगा, परसों भी आ जाउंगा। ऐसा तो है नहीं कि आज नहीं काम हुआ तो कभी नहीं होगा। तुम नहीं करोगे कोई और बाबू कल करेगा।
पर तुम्हारे पास तो मौका था किसी को अपना अहसानमंद बनाने का। तुम उससे चूक गए।
वो खाना छोड़ कर मेरी बातें सुनने लगा था।
मैंने कहा कि पैसे तो बहुत कमा लोगे, लेकिन रिश्ते नहीं कमाए तो सब बेकार है।
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क्या करोगे पैसों का? अपना व्यवहार ठीक नहीं रखोगे तो तुम्हारे घर वाले भी तुमसे दुखी रहेंगे। यार दोस्त तो नहीं हैं,
ये तो मैं देख ही चुका हूं। मुझे देखो, अपने दफ्तर में कभी अकेला खाना नहीं खाता।
यहां भी भूख लगी तो तुम्हारे साथ खाना खाने आ गया। अरे अकेला खाना भी कोई ज़िंदगी है?
मेरी बात सुन कर वो रुंआसा हो गया। उसने कहा कि आपने बात सही कही है साहब। मैं अकेला हूं। पत्नी झगड़ा कर मायके चली गई है।
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बच्चे भी मुझे पसंद नहीं करते। मां है, वो भी कुछ ज्यादा बात नहीं करती। सुबह चार-पांच रोटी बना कर दे देती है, और मैं तनहा खाना खाता हूं।
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रात में घर जाने का भी मन नहीं करता। समझ में नहीं आता कि गड़बड़ी कहां है?
मैंने हौले से कहा कि खुद को लोगों से जोड़ो। किसी की मदद कर सकते हो तो करो।
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देखो मैं यहां अपने दोस्त के पासपोर्ट के लिए आया हूं। मेरे पास तो पासपोर्ट है।
मैंने दोस्त की खातिर तुम्हारी मिन्नतें कीं। निस्वार्थ भाव से। इसलिए मेरे पास दोस्त हैं, तुम्हारे पास नहीं हैं।
वो उठा और उसने मुझसे कहा कि आप मेरी खिड़की पर पहुंचो। मैं आज ही फार्म जमा करुंगा।
मैं नीचे गया, उसने फार्म जमा कर लिया, फीस ले ली। और हफ्ते भर में पासपोर्ट बन गया।
बाबू ने मुझसे मेरा नंबर मांगा, मैंने अपना मोबाइल नंबर उसे दे दिया और चला आया।
कल दिवाली पर मेरे पास बहुत से फोन आए। मैंने करीब-करीब सारे नंबर उठाए। सबको हैप्पी दिवाली बोला।
उसी में एक नंबर से फोन आया, "रविंद्र कुमार चौधरी बोल रहा हूं साहब।"
मैं एकदम नहीं पहचान सका। उसने कहा कि कई साल पहले आप हमारे पास अपने किसी दोस्त के पासपोर्ट के लिए आए थे, और आपने मेरे साथ रोटी भी खाई थी।
आपने कहा था कि पैसे की जगह रिश्ते बनाओ।
मुझे एकदम याद आ गया। मैंने कहा हां जी चौधरी साहब कैसे हैं?
उसने खुश होकर कहा, "साहब आप उस दिन चले गए, फिर मैं बहुत सोचता रहा।
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मुझे लगा कि पैसे तो सचमुच बहुत लोग दे जाते हैं, लेकिन साथ खाना खाने वाला कोई नहीं मिलता।
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सब अपने में व्यस्त हैं। मैं
साहब अगले ही दिन पत्नी के मायके गया, बहुत मिन्नतें कर उसे घर लाया। वो मान ही नहीं रही थी।
वो खाना खाने बैठी तो मैंने उसकी प्लेट से एक रोटी उठा ली,
कहा कि साथ खिलाओगी? वो हैरान थी।
रोने लगी। मेरे साथ चली आई। बच्चे भी साथ चले आए।
साहब अब मैं पैसे नहीं कमाता। रिश्ते कमाता हूं। जो आता है उसका काम कर देता हूं।
साहब आज आपको हैप्पी दिवाली बोलने के लिए फोन किया है।
अगल महीने बिटिया की शादी है। आपको आना है।
अपना पता भेज दीजिएगा। मैं और मेरी पत्नी आपके पास आएंगे।
मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा था कि ये पासपोर्ट दफ्तर में रिश्ते कमाना कहां से सीखे?
तो मैंने पूरी कहानी बताई थी। आप किसी से नहीं मिले लेकिन मेरे घर में आपने रिश्ता जोड़ लिया है।
सब आपको जानते है बहुत दिनों से फोन करने की सोचता था, लेकिन हिम्मत नहीं होती थी।
आज दिवाली का मौका निकाल कर कर रहा हूं। शादी में आपको आना है।
बिटिया को आशीर्वाद देने। रिश्ता जोड़ा है आपने। मुझे यकीन है आप आएंगे।
वो बोलता जा रहा था, मैं सुनता जा रहा था। सोचा नहीं था कि सचमुच उसकी ज़िंदगी में भी पैसों पर रिश्ता भारी पड़ेगा।
लेकिन मेरा कहा सच साबित हुआ। आदमी भावनाओं से संचालित होता है। कारणों से नहीं। कारण से तो मशीनें चला करती हैं
पसंद आए तो अपनें अज़ीज़ दोस्तों को जरुर भेजें एंव इंसानियतन की भावना को आगे बढ़ाएँ
पैसा इन्सान के लिए बनाया गया है, इन्सान पैैसै के लिए नहीं बनाया गया है!!
""" जिंदगी में किसी का साथ ही काफी है,, कंधे पर रखा हुआ हाथ ही काफी है,,,,
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दूर हो या पास क्या फर्क पड़ता है,, क्योंकि अनमोल रिश्तों का तो बस एहसास ही काफी है *** । ।
अगर आपके दिल को छुआ हो तो इस मैसेज से कुछ सीखने की कोशिश करना ,,
शायद आपकी दुनिया भी बदल जाये ।।।
अगर मरने के बाद भी जीना चाहो तो एक काम जरूर करना, पढ़ने लायक कुछ लिख जाना या लिखने लायक कुछ कर जाना I
याद रखना, पैसा तो सबके पास हैं, किसी के पास कम है, तो किसी के पास ज्यादा है,ये सोचो कि रिश्ते किसके ज्यादा है।।।।।। आप भी रिश्ते बनाइये.......
सदा खुश रहिये.....❤