होशियार बनने के चक्कर में घोंचूराम एक बार ऑनलाइन ठगी का शिकार हो चुका है। उसके हाथ में स्मार्ट फोन देखकर उसके होशियार होने का वहम हो सकता है, पर वास्तव में वह ऑनलाइन, एटीएम, डिजिटल आदि शब्दों से अब घबराता है। कहीं फिर वह ठगी का शिकार न हो जाए।
पहले से वह कुछ सजग और होशियार तो हुआ है। पर उसे अपने होशियार होने की खुशफहमी नहीं है। बल्कि शिकार बनने का डर ही मन में ज़्यादा समाया हुआ है। एटीएम से पैसा निकालते समय खुटका लगा रहता है। पीछे कोई डिजिटल लुटेरा तो नहीं खड़ा है? पैसे निकालने के बाद वह क्लीयर बटन को कई बार दबा देता है। हाँ, लुटेरे के लिए अपने ट्रांजेक्शन के डेटा तक पहुँच की गुंजाइश क्यों रखी जाए? इतनी सावधानियों के बाद भी वह डरा रहता है। उसने फिल्मों में कंप्यूटर पर अरबों-खरबों रुपयों के खातों को पल भर में शून्य होते देखा है।
घोंचूराम के खाते में कोई खास रकम तो नहीं है। पर जो भी है वह गाढ़े समय में काम आ जाए बस इतनी ही उसकी चाहत है। पर डिजिटल लूट और बैंकों को खस्ताहाल होते देखकर वह निराश हो जाता है। पहले के डकैत घरों में रखे माल-असबाब और गहने-गाँठे और नकद ही लूट पाते थे। बैंक खातों का धन सुरक्षित रहता था। पर ऑनलाइन ट्रांजैक्शन में तो पूरा खाता साफ होने खतरा पैदा हो गया है। वह अपनी सामाजिक सुरक्षा को लेकर बड़ा चिंतित है। पर बेचारा चिंता के कारणों तक पहुँच ही नहीं पाता। उसने भी मान लिया है कि ठगना-ठगाना ही दुनिया की रीत है। और कारण के पीछे भागने से अच्छा भगवान के शरण जाना जाना है। उससे बढ़कर उबारने वाला कौन है?
घोंचूराम आजकल पूजा-पाठ में और ज़्यादा रमने लगा है। उसे असुरक्षा भय से मुक्ति तो नहीं मिलती, फिर भी अपने जैसे घोंचुओं को देखकर कुछ चैन पा है।
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