आजादी बंदूक के आगे से गाय की चर्बी हटाने के विरोध करने एवम चरखे के चलाने मात्र से नही मिली।
आजादी सिदो कानू, फूलो झानू, तिलका मांझी, वीर बुधु भगत, टंट्या भील, मानगढ़ के 1507 शहीद, बिरसा मुंडा और इनके जैसे अन गिनत गुमनाम नायकों के संघर्ष तथा राष्ट्रभक्ति के जुनूनी सहयोग से मिली है।।देश को अंग्रेजों से स्वतंत्रता दिलाने वाले आदिवासी अगुआ नायकों को भी सलामी, वंदन भावपूर्ण अभिवादन।*
*****
जैसे भी हो,गौ वध और कारतूस में उसकी चर्बी पर विद्रोह करने वाले शहीद मंगल पांडे को या विदेशी का विरोध व स्वदेशी की स्थापना हेतु चरखे वाले महात्मा गांधी को सारा संसार जानता है! उनके चरखे को भी सारा संसार जानता है! शहीद मंगल पांडे का नाम हर भारतीय को हौसला देता है !
किंतु जिन जिनके नाम आप गिना रहे हैं,उन्हें उन्ही के समाज के अफसर या नेता भी नहीं जानते, यकीन न हो तो किसी से एक बार पूछकर देखें -पता चल जाऐगा कि किसी दूसरे की रेखा मिटाकर आप अपनी रेखा बड़ी करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं!
दरसल अंग्रेजों ने तो मंगल पांडे के शरीर को मारा, लेकिन आपने कुछ विस्म्रत नामों का उल्लेख करने और अपनी हीनता के आवेग में महात्मा गांधी और मंगल पांडे की आत्मा को ही मार डाला !
बहरहाल एक सुलगता सवाल यह है कि आपसे किसने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों का योगदान नही है? यह आपसे किसने कहा कि आदिवासी समाज का स्वाधीनता संग्राम में किसी और समाज से कमतर योगदान है? यदि आप भारत का मध्ययुगीन इतिहास पढ़ेंगे तो पाएंगे कि यदि भील और अन्य जनजाति आदिवासी मदद नही करते तो राणा प्रताप और वीर शिवाजी अपने दुश्मनों से लोहा नही ले पाते!
गोंडवाना के एक शूरवीर गोंड राजा ने कालिंजर महोबा के चंदेल राजा (चंद्रवंशी सवर्ण ) की पुत्री दुर्गावती का हरण कर उसे अपनी रानी बनाया था,जो बाद में विधवा हो गई और मुगलों से अपनी अस्मत बचाते हुए मैदाने जंग में वीरगति को प्राप्त हुई! उसके सवर्ण सेनापति अधारसिंह ने रानी की रक्षा में प्राण न्यौछावर कर दिए!
रानी दुर्गावती ने किसी क्षत्रिय राजा या सवर्ण हिंदू की निंदा (आपकी तरह) करके नाम नही कमाया, बल्कि खुद मैदाने जंग में बर्बर मुगलों से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई और इतिहास में नाम अमर कर गई! इसी तरह रानी कमलापति भी आदिवासी थीं और ज़्यादा क्या लिखें वर्तमान महामहिम राष्ट्रपति मुर्मू महोदया भी किसी दिवंगत शहीद को कमतर बताकर या सवर्णों की निंदा कर इस उच्चतर मुकाम पर नही पहुंची!
आप औरों से तुलना करके या उनकी रेखा कम करके हमारे आदिवासी समाज को कमतर बताने पर आमादा क्यों हैं? बहुसंख्यक सवर्णों ने यदि संगठित मंच से कभी किसी गौड़ भील कोल किरात निषाद या अन्य आदिवासी समाज को अपने से प्रथक बताया हो तो बताओ! यदि प्रथक माना होता तो उन वानर, शबरी भील निषाद को संस्कृत वांग्मय में इतना अधिक सम्मान नही मिलता!
आपको बता दें कि भगवान आदिनाथ,भगवान शंकर,महर्षि जाबालि,महर्षि आरुणि,महर्षि बाल्मीकी,रिषि शरभंग इत्यादि अनेक महापुरुष आदिवासियों ने ही अधिकांश आगम शास्त्रों, पुराणों को संस्कृत वांग्मय के लिये कंटैंट दिया है!ब्राह्मणों ने तो सिर्फ उसका प्रचार प्रसार किया है और श्रद्धा विश्वास से उसे सीचकर -पुष्पित पल्लवित किया है!:-श्रीराम तिवारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें