हंस लम्बी उड़ानों के ,क्रांति पथ को सजा्ये हुए हैं।
छोड़ यादों का कारवां,आज ही होश आये हुए हैं ।।
साथी मिलते गये नए नए ,कुछ अपने पराये हुए हैं ।
फलसफा पेश है पुर नज़र ,लक्ष्य पै हम टिकाये हुए हैं ।।
युग युग से रहे जो प्यासे,आज क्षीर सिंधु में नहाये हुए हैं।।
अपनी चाहत के रंग बदरंग,खुद अपने सजाये हुए हैं।
औरों की खता कुछ नहीं है, गुल अपने खिलाये हुए हैं।।
जन्मों जन्मों किये धतकरम ,क़र्ज़ उसका चढ़ाए हुए हैं।
जख्म जितने भी हैं जिंदगी के, मर्ज़ अपने कमाए हुए हैं।।
खुद ही भूले हैं अपने ठिकाने,दोष गैरों पै लगाए हुए हैं।
वक्तने सबको ऐंसा है मारा,नींद खुद की उड़ाए हुए हैं।।
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