भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का प्रयास रहता था कि उनके जमाने के कुछ दिग्गज विपक्षी नेता चुनाव जीतकर संसद में जरूर पहुंचें ! फिर चाहे वे ए .के गोपालन हों, राम मनोहर लोहिया हों,अटलबिहारी बाजपेयी हों,श्यामाप्रसाद मुखर्जी हों या बाबा साहिब भीमराव अंबेडकर हों! किंतु इस दौर के सत्तापक्ष ने राजनीति को इस कदर पतनोन्मुखी बना दिया है कि चाहे तालाबों में कमल खिले या न खिले किंतु भारतीय राजनीति में हर जगह केवल कमल ही खिलना चाहिए!
अब जब कोई मतदाता बटन दबाये तो EVM ऐंसी सैट हो कि केवल कमल ही खिलना चाहिये ! यदि कोई नेता मरे तो उसकी मौत का मातम इस कदर मनाओ कि वोटों का सैलाव आ जाये! यदि कोई आतंकी हमला हो और फौज उसका जबाब दे, तब भी भाजपा उसे भुनाने में अव्वल रही है!यदि गलवान में चीनी सैनिकों द्वारा 20 भारतीय जवान शहीद हो गये हों तो इस घटना पर भी इस तरह रियेक्ट किया गया, मानो यह भी सत्तापक्ष की उपलब्धि हो!
यदि विपक्ष या कोई व्यक्ति नीति गत विरोध करे तो उसे देशद्रोही घोषित कर दो! और यदि फिर भी कोई विरोधी चुनाव जीत जाए, तो गोवा,कर्नाटक ,एम.पी के दलबदलुओं की शैली में उसे खरीद फरोख्त कर डालो!
2014 के बाद भारतमें लोकतंत्र का मतलब है 'एकचालुकानुवर्तित्व' याने एकमेवोद्वतीय नास्ति! विपक्ष भी दिग्भ्रमित है वह सिर्फ उन मुद्दों पर सत्तापक्ष का विरोध कर रहा है जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा और भारतीय अस्मिता से जुड़े संवेदनशील विषय हैं! जबकि देश के बहुसंख्यक हिंदू समाज को विपक्ष का यह नकारात्मक रवैया बिल्कुल पसंद नही!
चाहे बाढ़ हो,सूखा हो,सर्जिकल स्ट्राइक हो, कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने का सवाल हो,तीन तलाक हो,CAA/NRC का कानून हो,हाऊड़ी मोडी हो,ट्रम्प का स्वागत हो 'राम लला मंदिर' निर्माण हो या कोरोना महामारी का संकट हो हर एक संदर्भ को लोकतांत्रिक जनादेश में बदलने की कला नरेंद्र मोदी को आती है!यद्पि विपक्ष का विरोध सही हो सकता है,किंतु वह जनता के गले कभी नही उतरा है!
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